28 अप्रैल 2008 को मैंने यात्रा लेखन को विषय बनाकर एक अलग ब्लॉग की शुरुआत की थी। कल मुसाफ़िर हूँ यारों (Musafir Hoon Yaaron) ने इंटरनेट पर अपने इस सफ़र के पाँच साल पूरे कर लिए। विगत कुछ वर्षों में यात्रा ब्लॉगिंग के स्वरूप में विस्तार हुआ है। पिछले साल ब्लॉग की चौथी वर्षगाँठ पूरी होने पर मैंने हिंदी में यात्रा ब्लॉगिंग के औचित्य को ले कर चर्चा की थी। उन बातों को मैं आज फिर दोहराना नहीं चाहता पर वे आज भी उतनी ही माएने रखती हैं जितनी की पिछले साल थीं। इसलिए आज बात करना चाहूँगा कि पिछला साल बतौर यात्रा लेखक मेरे लिए कैसा रहा?
यात्रा ब्लॉगिंग में मेरे लिए पिछला साल अनेक नए अवसरों को सामने ले कर आया। पहली बार एक लंबी विदेश यात्रा पर चालिस दिनों के लिए जापान जाने का अवसर मिला । जापान की अनुशासनप्रियता ने जहाँ मुझे अचंभित किया वहीं उनके धर्म और संस्कृति में मुझे भारत से मिलती जुलती कई साम्यताएँ भी दिखीं। फिलहाल अपने लेखों के ज़रिए उस यात्रा के अनुभवों को आपसे बाँट भी रहा हूँ।
जापान से वापस आने के बाद पिछले साल क्लब महिंद्रा द्वारा मसूरी के निकट कानाताल में आयोजित भारत के यात्रा ब्लागर्स सम्मेलन Conclay : Unconference @ Kanatal में भाग लेने का अवसर मिला। इस सम्मेलन के माध्यम से देश के विभिन्न भागों से आए यात्रा लेखकों से मुलाकात हुई। साथ ही उनके अनुभवों से बहुत कुछ सीखने समझने का अवसर मिला। हिंदी के ब्लॉगर सम्मेलनों में जो अपरिपक्वता और एक दूसरे को नीचा दिखाने की प्रवृति दिखाई देती है वो यहाँ नदारद थी। सभी प्रतिभागियों को अपने अनुभवों को बाँटने के लिए पर्याप्त समय दिया गया। हर वक्तव्य के बाद प्रश्नोत्तर का सिलसिला भी होता था जो प्रस्तुत विषय को नए आयाम देता था। ये पहला मौका था कि किसी हिंदी ब्लॉगर को ऐसे सम्मेलन में शिरक़त करने का आमंत्रण मिला हो। अपने वक्तव्य में हिंदी में हो रहे यात्रा लेखन के बारे में मैंने सबको विस्तारपूर्वक बताया।
यात्रा ब्लॉगर के लिए मसला आज भी वही है कि क्या यात्रा लेखन इतना फायदेमंद है कि आप सिर्फ घूमने की इच्छा पूरी करते हुए अपने लेखों और ब्लॉगिंग के ज़रिए अपनी जीविका चला सकें? ऐसे बहुत से प्रश्न मुझसे भी मेरे पाठक पूछते रहे हैं। कानाताल में जब मेरी मुलाकात अंग्रेजी के वरिष्ठ ब्लॉगरों से हुई तो मैंने पाया कि ये काम असंभव तो नहीं पर बेहद मुश्किल जरूर है। अंग्रेजी हो या हिंदी, आज भी यात्रा से जुड़ी कंपनियाँ ब्लॉगर्स को प्रिंट मीडिया के समकक्ष नहीं मानती। हालांकि विदेशों में ये स्थिति बदल रही है पर जब ये हाल अंग्रेजी में लिखने वालों का है तो फिर हिंदी लेखन की तो 'ग्लोबल अपील' भी नहीं है। कुल मिलाकर मुझे तो यही महसूस हुआ कि ब्लॉग पर उत्कृष्ट यात्रा लेखन से अगर आप पाठकों की अच्छी जमात हासिल करते हैं तो आपके लिए कुछ नए मौकों के द्वार खुलते जरूर हैं पर उसके लिए भी आपको वर्षों तक मेहनत करनी पड़ती है।
पिछले साल मुझे घुमक्कड़ पर साल के घुमक्कड़ (Ghumakkar of the Year) का चुनाव करने के लिए जूरी का दायित्व निभाने का अवसर भी मिला। मुझे लगता है कि किसी भी पुरस्कार की घोषणा के बाद जब भी नतीजे सामने आते हैं तो उसमें जितने लोगों का उत्साहवर्धन नहीं होता उससे ज्यादा जो उस सूची में नहीं आ पाते वो हताश हो जाते हैं। दरअसल अगर आपको अपने लेखन पर भरोसा है तो फिर लिखते रहिए। आखिर आपका सबसे बड़ा पुरस्कार आपके लेख को पढ़ने वाले पाठक हैं। आज अगर आठ दस घंटों की नौकरी करते हुए, परिवार को समय देते हुए भी रोज़ दो तीन घंटे ब्लॉगिंग में झोंक रहे हैं तो आखिर किस लिए ? क्यूँकि हमें प्यार है उस शौक़ से ! और यही प्रेम हमें अपने लेखन के लिए समर्पित करता है।सच मानिए अगर आपके लेखन में दम है तो देर से ही सही वक़्त आने पर उसे उचित सम्मान जरूर मिलेगा।
ख़ैर मैं बात कर रहा था यात्रा ब्लागिंग से नए मौकों के खुलने की। ब्लागर्स सम्मेलन की बात तो मैंने की ही पहली बार पिछले साल बतौर ब्लॉगर मुझे निजी कंपनियों द्वारा प्रायोजित पोस्ट करने के प्रस्ताव मिले जिसमें से मैंने कुछ को स्वीकार भी किया। हिंदी ब्लॉग होते हुए भी 'मुसाफ़िर हूँ यारों' को ये अवसर मिला ये मेरे लिए गर्व का विषय है। सच बात तो ये है कि पैसों से ज्यादा मुझे इस बात का संतोष है कि इस चिट्ठे की अनुशंसा करने वाले साथियों और निजी कंपनियों ने मेरे लेखन को इस लायक समझा।
मुसाफ़िर हूँ यारों पर मैंने यात्रा पुस्तकों से जुड़े एक नए स्तंभ की भी शुरुआत की है। इस स्तंभ की शुरुआत इस वज़ह से हुई कि मुझे लद्दाख से जुड़ी पुस्तक की एक प्रति निशुल्क भेजी गई ये कहते हुए कि इस पर आप अपनी निष्पक्ष राय रखिए। एक शाम मेरे नाम पर तो समय समय पर मैं पुस्तकों की चर्चा किया ही करता था तो मुझे लगा कि समय समय पर यात्रा से जुड़ी पुस्तकों के बारे में लिखा जाए तो उससे आप सब को भी फ़ायदा होगा।
अपने यात्रा संस्मरणों का एक बहुत बड़ा जख़ीरा मन के कोने में दफ़न पड़ा है। आफिस की व्यस्तताओं के बीच मेरी ये कोशिश रहती है कि कम से कम हफ्ते में एक बार अपने इस चिट्ठे पर कुछ नया आपके सम्मुख रख सकूँ। इस साल आपके साथ आगामी कुछ महीनों में जैसलमेर, बीकानेर, क्योटो, टोकियो, हिरोशिमा,बनारस, नैनीताल, कौसानी, बिनसर के अपने यात्रा विवरणों को साझा करने का इरादा है।
अपने लेखों में मेरा ये प्रयास रहता है कि उस जगह की ख़ासियत आप तक पहुँचा सकूँ। कई बार ऐसा भी होता है कि लेख के इतर भी आपके मन में उस जगह या उसके पास की किसी अन्य जगह से जुड़े सवाल उठते हों। आप अपने सवाल मुझे संबंधित पोस्ट में टिप्पणी के रूप में या जो लोग फेसबुक पर हैं वो 'मुसाफ़िर हूँ यारों' के फेसबुक पेज़ पर पूछ सकते हैं। आशा है इस सफ़र में आगे भी आप सबका साथ मिलता रहेगा।
यात्रा ब्लॉगिंग में मेरे लिए पिछला साल अनेक नए अवसरों को सामने ले कर आया। पहली बार एक लंबी विदेश यात्रा पर चालिस दिनों के लिए जापान जाने का अवसर मिला । जापान की अनुशासनप्रियता ने जहाँ मुझे अचंभित किया वहीं उनके धर्म और संस्कृति में मुझे भारत से मिलती जुलती कई साम्यताएँ भी दिखीं। फिलहाल अपने लेखों के ज़रिए उस यात्रा के अनुभवों को आपसे बाँट भी रहा हूँ।
जापान से वापस आने के बाद पिछले साल क्लब महिंद्रा द्वारा मसूरी के निकट कानाताल में आयोजित भारत के यात्रा ब्लागर्स सम्मेलन Conclay : Unconference @ Kanatal में भाग लेने का अवसर मिला। इस सम्मेलन के माध्यम से देश के विभिन्न भागों से आए यात्रा लेखकों से मुलाकात हुई। साथ ही उनके अनुभवों से बहुत कुछ सीखने समझने का अवसर मिला। हिंदी के ब्लॉगर सम्मेलनों में जो अपरिपक्वता और एक दूसरे को नीचा दिखाने की प्रवृति दिखाई देती है वो यहाँ नदारद थी। सभी प्रतिभागियों को अपने अनुभवों को बाँटने के लिए पर्याप्त समय दिया गया। हर वक्तव्य के बाद प्रश्नोत्तर का सिलसिला भी होता था जो प्रस्तुत विषय को नए आयाम देता था। ये पहला मौका था कि किसी हिंदी ब्लॉगर को ऐसे सम्मेलन में शिरक़त करने का आमंत्रण मिला हो। अपने वक्तव्य में हिंदी में हो रहे यात्रा लेखन के बारे में मैंने सबको विस्तारपूर्वक बताया।
यात्रा ब्लॉगर के लिए मसला आज भी वही है कि क्या यात्रा लेखन इतना फायदेमंद है कि आप सिर्फ घूमने की इच्छा पूरी करते हुए अपने लेखों और ब्लॉगिंग के ज़रिए अपनी जीविका चला सकें? ऐसे बहुत से प्रश्न मुझसे भी मेरे पाठक पूछते रहे हैं। कानाताल में जब मेरी मुलाकात अंग्रेजी के वरिष्ठ ब्लॉगरों से हुई तो मैंने पाया कि ये काम असंभव तो नहीं पर बेहद मुश्किल जरूर है। अंग्रेजी हो या हिंदी, आज भी यात्रा से जुड़ी कंपनियाँ ब्लॉगर्स को प्रिंट मीडिया के समकक्ष नहीं मानती। हालांकि विदेशों में ये स्थिति बदल रही है पर जब ये हाल अंग्रेजी में लिखने वालों का है तो फिर हिंदी लेखन की तो 'ग्लोबल अपील' भी नहीं है। कुल मिलाकर मुझे तो यही महसूस हुआ कि ब्लॉग पर उत्कृष्ट यात्रा लेखन से अगर आप पाठकों की अच्छी जमात हासिल करते हैं तो आपके लिए कुछ नए मौकों के द्वार खुलते जरूर हैं पर उसके लिए भी आपको वर्षों तक मेहनत करनी पड़ती है।
पिछले साल मुझे घुमक्कड़ पर साल के घुमक्कड़ (Ghumakkar of the Year) का चुनाव करने के लिए जूरी का दायित्व निभाने का अवसर भी मिला। मुझे लगता है कि किसी भी पुरस्कार की घोषणा के बाद जब भी नतीजे सामने आते हैं तो उसमें जितने लोगों का उत्साहवर्धन नहीं होता उससे ज्यादा जो उस सूची में नहीं आ पाते वो हताश हो जाते हैं। दरअसल अगर आपको अपने लेखन पर भरोसा है तो फिर लिखते रहिए। आखिर आपका सबसे बड़ा पुरस्कार आपके लेख को पढ़ने वाले पाठक हैं। आज अगर आठ दस घंटों की नौकरी करते हुए, परिवार को समय देते हुए भी रोज़ दो तीन घंटे ब्लॉगिंग में झोंक रहे हैं तो आखिर किस लिए ? क्यूँकि हमें प्यार है उस शौक़ से ! और यही प्रेम हमें अपने लेखन के लिए समर्पित करता है।सच मानिए अगर आपके लेखन में दम है तो देर से ही सही वक़्त आने पर उसे उचित सम्मान जरूर मिलेगा।
ख़ैर मैं बात कर रहा था यात्रा ब्लागिंग से नए मौकों के खुलने की। ब्लागर्स सम्मेलन की बात तो मैंने की ही पहली बार पिछले साल बतौर ब्लॉगर मुझे निजी कंपनियों द्वारा प्रायोजित पोस्ट करने के प्रस्ताव मिले जिसमें से मैंने कुछ को स्वीकार भी किया। हिंदी ब्लॉग होते हुए भी 'मुसाफ़िर हूँ यारों' को ये अवसर मिला ये मेरे लिए गर्व का विषय है। सच बात तो ये है कि पैसों से ज्यादा मुझे इस बात का संतोष है कि इस चिट्ठे की अनुशंसा करने वाले साथियों और निजी कंपनियों ने मेरे लेखन को इस लायक समझा।
मुसाफ़िर हूँ यारों पर मैंने यात्रा पुस्तकों से जुड़े एक नए स्तंभ की भी शुरुआत की है। इस स्तंभ की शुरुआत इस वज़ह से हुई कि मुझे लद्दाख से जुड़ी पुस्तक की एक प्रति निशुल्क भेजी गई ये कहते हुए कि इस पर आप अपनी निष्पक्ष राय रखिए। एक शाम मेरे नाम पर तो समय समय पर मैं पुस्तकों की चर्चा किया ही करता था तो मुझे लगा कि समय समय पर यात्रा से जुड़ी पुस्तकों के बारे में लिखा जाए तो उससे आप सब को भी फ़ायदा होगा।
अपने यात्रा संस्मरणों का एक बहुत बड़ा जख़ीरा मन के कोने में दफ़न पड़ा है। आफिस की व्यस्तताओं के बीच मेरी ये कोशिश रहती है कि कम से कम हफ्ते में एक बार अपने इस चिट्ठे पर कुछ नया आपके सम्मुख रख सकूँ। इस साल आपके साथ आगामी कुछ महीनों में जैसलमेर, बीकानेर, क्योटो, टोकियो, हिरोशिमा,बनारस, नैनीताल, कौसानी, बिनसर के अपने यात्रा विवरणों को साझा करने का इरादा है।
अपने लेखों में मेरा ये प्रयास रहता है कि उस जगह की ख़ासियत आप तक पहुँचा सकूँ। कई बार ऐसा भी होता है कि लेख के इतर भी आपके मन में उस जगह या उसके पास की किसी अन्य जगह से जुड़े सवाल उठते हों। आप अपने सवाल मुझे संबंधित पोस्ट में टिप्पणी के रूप में या जो लोग फेसबुक पर हैं वो 'मुसाफ़िर हूँ यारों' के फेसबुक पेज़ पर पूछ सकते हैं। आशा है इस सफ़र में आगे भी आप सबका साथ मिलता रहेगा।
चरैवेति-चरैवेति
जवाब देंहटाएंपांच साल के 'स्थाईत्व' लेखन की हार्दिक शुभेच्छा...
शुक्रिया दीपक जी !
हटाएंMany Many Congratulations...
जवाब देंहटाएंThx Vineeta
हटाएंcongratulation hope we see 50 year celebration also. i m going on kerala trip from 4 may to 11 may give suggestion if any
जवाब देंहटाएंAmar Singh Solanki Aap neeche ki link par jayein asha hai wahan dee gayi jaankari ye aapko apna karyakram tay karne mein madad karegi.
हटाएंhttp://travelwithmanish.blogspot.in/2008/07/blog-post.html
Waise Kerala se judi sari posts aap yahan bhi padh sakte hain
http://travelwithmanish.blogspot.in/search/label/Kerala
badhai
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
हटाएंआपके ब्लॉग के पांच साल के पूरे करने पर आपको बधाई मनीष जी....
जवाब देंहटाएंधन्यवाद रितेश!
हटाएंआपको पढ़ना घुमक्कड़ी जैसा ही अनुभव देता है। बधाई ५ वर्ष पूरे होने के।
जवाब देंहटाएंजानकर खुशी हुई प्रवीण !
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएं"...पहली बार पिछले साल बतौर ब्लॉगर मुझे निजी कंपनियों द्वारा प्रायोजित पोस्ट करने के प्रस्ताव मिले जिसमें से मैंने कुछ को स्वीकार भी किया। हिंदी ब्लॉग होते हुए भी 'मुसाफ़िर हूँ यारों' को ये अवसर मिला ये मेरे लिए गर्व का विषय है। सच बात तो ये है कि पैसों से ज्यादा मुझे इस बात का संतोष है कि इस चिट्ठे की अनुशंसा करने वाले साथियों और निजी कंपनियों ने मेरे लेखन को इस लायक समझा।..."
जवाब देंहटाएंनियमित, प्रतिबद्ध ब्लॉगिंग का यही असली प्रतिफल और सफलता है.
बधाई व शुभकामनाएँ!
रविशंकर जी धन्यवाद ! सहमत हूँ आपकी बात से। ब्लॉगिंग की शुरुआत से इस प्रतिबद्धता पर आप बल देते रहे हैं और आप ख़ुद इसके एक अनुकरणीय उदाहरण रहे हैं।
हटाएंCongrats , I have followed it since inception
जवाब देंहटाएंYeah I know it Ajay. आशा है ये साथ आगे भी बना रहेगा।
हटाएंबहुत बहुत बधाईयाँ और शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंशुक्रिया ललित जी !
हटाएंcongratulation, keep travelling.
जवाब देंहटाएंकोशिश तो यही है...:)
हटाएंbadhai, aage ki yatra ke liye shubhkamnayein...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया संजीत !
हटाएंSunita
जवाब देंहटाएंCongratulations.Nice blog.Keep it up..
Thx Sunita for dropping in.
हटाएंबेहतरीन और जानकारी से परिपूर्ण हैं आपके ब्लॉग
जवाब देंहटाएंतारीफ़ के लिए शुक्रिया अनिरुद्ध !
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