कीटाक्यूशू शहर में आए हमें कुछ ही दिन हुए था। जून का आख़िरी हफ्ता था। जापान के इस दक्षिण पश्चिमी भूभाग में बारिश का मौसम शुरु हो चुका था। तापमान तीस से पैंतिस के बीच डोल रहा था। जैसे जैसे पहला सप्ताहांत पास आ रहा था हमारा समूह इसी उधेड़बुन में था कि आख़िर जापान दर्शन कहाँ से शुरु किया जाए? हमारी ये मुश्किल तब आसान हुई जब एक ट्रेनिंग इंसट्रक्टर (Training Instructor) ने अपनी कक्षा में आसपास की पसंदीदा जगहों में मोज़ीको का नाम लिया। दरअसल मोज़ी को (Mojiko) या जापानी में मोजी़ कू (Moji Ku) का मतलब मोज़ी का बंदरगाह है। उन्नीसवीं सदी की आख़िर (1889) में ये जापान के व्यस्ततम बंदरगाहों में एक था। पर आज इसे बंदरगाह से ज्यादा मोज़ीको रेट्रो टाउन (Mojiko Retro Town) के रूप में जाना जाता है क्यूँकि जापानियों ने यहाँ लगभग सौ साल पुरानी इमारतें सुरक्षित बचा रखी है और जापान के लिए ये एक बड़ी बात है। द्वितीय विश्व युद्ध की तबाही के बाद इस इलाके में गिनती की पुरानी इमारतें रह गयी हैं।
शनिवार के दिन हमें हिदायत दी गई कि मौसम के पूर्वानुमान के अनुसार आज
मोज़ीको सहित पूरे कीटाक्यूशू (Kitakyushu) में भारी बारिश हो सकती है। मैंने सोचा कि
आख़िर ये मौसम विज्ञानी अपने भारतीय समकक्षों से अलग थोड़े ही ना होंगे। सो
हो सकता है आज बारिश ना ही हो। मोज़ीको (Mojiko) जाने के लिए हमें पास के
याहाता (Yahata) स्टेशन से ट्रेन पकड़नी थी। जापान से ट्रेन में सफ़र करने का ये पहला
अनुभव था। जापानी भाषा की अभी तक मात्र एक क्लास हुई थी सो भाषा का भी
लोचा था। वैसे तो सभी स्टेशनों पर अधिकांश टिकट स्वचालित मशीनों से खरीदे
जाते हैं पर हमें लगा कि स्टेशन पर टिकट संग्राहक से सीधे टिकट खरीदने का
विकल्प बेहतर रहेगा।
स्टेशन कार्यालय में दो युवक बैठे थे । उम्र होगी यही कोई बीस के आस पास। आठ लोगों की विदेशी फौज़ को अपनी ओर आते देख वे थोड़ा सकपकाए। अपनी भारतीय बुद्धि का प्रयोग कर हम सामूहिक टिकट की छूट के बारे में पूछना चाहते थे। पर पाँच मिनट के परिश्रम के बाद हम उन्हें सिर्फ गन्तव्य स्थान का नाम बताने में ही सफल हो सके। वापसी में जब बिना कुछ बोले छूट मिली तो सब बड़े प्रसन्न हुए। ट्रेन के टिकटों का जब आप जापानी मूल्य देखेंगे तो आपको लगेगा कि इतनी दूरी के लिए पैदल ही चल लेते तो ही बेहतर होता। भारत में जहाँ दस रुपये का टिकट लगता होगा वो जापान में 150 येन से कम में नहीं मिलेगा।
दो मिनट के इंतज़ार के बाद हम ट्रेन के अंदर थे। भीड़ ज्यादा नहीं थी। पौन घंटे के सफ़र के बाद हम मोज़ीको पहुँच गये। ये इस लाइन का वैसे भी आखिरी स्टेशन है सो पूरी ट्रेन ही यहाँ खाली हो गई।
घड़ी की सुइयाँ जापानी समय के अनुसार 11.10 AM का समय दिखा रही थीं और हम मोज़ीको स्टेशन के सामने थे। कहते हैं जापानियों ने इस स्टेशन को रोम के पुराने टर्मिनी स्टेशन (Termini Station, Rome) की शक़्ल देनी चाही थी। टर्मिनी के उस पुराने स्टेशन की श्वेत श्याम तसवीर देखने के बाद मुझे तो यही लगता है कि जापानी अपनी इस कोशिश में बस आंशिक रूप से कामयाब हुए थे। पुराने टर्मिनी स्टेशन की अपेक्षा मोज़ीको की इमारत छोटी थी पर उस समय की यूरोपीय शैली का अक़्स इसकी बनावट में जरूर दिखता है।
स्टेशन के आहाते में उस समय के हाथ से चलाए जाने वाले रिक्शों को देखने के लिए रखा गया है। वैसे रेट्रो सिटी में इन खूबसूरत रिक्शों पर किराया देकर आप इस कस्बे का चक्कर लगा सकते हैं।
मोज़ीको आने की हमारी उत्सुकता का एक कारण ये भी था कि हमें बताया गया था कि यहीं समुद्र के नीचे से लगभग साढ़े तीन किमी लंबी दो सुरंगें बनाई गयी हैं जिनमें से एक में पैदल और दूसरे में बुलेट ट्रेन से जाया जा सकता है। समुद्र के नीचे की इस सुरंग का सामरिक महत्त्व ये है कि ये जापान के दो प्रमुख द्वीपों होन्शू (Honshu) और क्यूशू (Kyushu) को आपस में जोड़ती है।
स्टेशन के सूचना कक्ष से मिले मानचित्र से हमें ये पता लग गया था कि उस
सुरंग तक समुद्र के किनारे किनारे चलने वाली ट्रेन से पहुँचा जा सकता है। सूचना केंद्र पर तो स्टेशन का रास्ता नहीं समझ आया पर बाहर आते ही जब इन जापानी महिलाओं से हमने स्टेशन का रास्ता पूछा तो उनमें से एक ने जवाब अंग्रेजी में देने की कोशिश की। इतना ही नहीं अपना काम छोड़कर वो हम सबको स्टेशन तक ले गयीं। जापान में हम जहाँ भी गए नब्बे फीसदी जगहों में लोग सहायता करने को आतुर दिखे और इसमें भाषा की दीवार कभी भी आड़े ना आ सकी।
जापानी महिलाएँ मौसम संबंधी अनुमान को कितनी गंभीरता से ले रही थीं ये इसी बात से स्पष्ट है कि सब के हाथ में अलग अलग रंगों की एक छतरी जरूर थी।
रेलवे स्टेशन पर ये नीली चमकदार ट्रेन हमारे स्वागत के लिए तैयार खड़ी थी। ट्रेन राइड पन्द्रह मिनट की थी पर पैसे बचाने के लिए निश्चय किया गया कि एक ओर ट्रेन से जाएँगे और वापस पैदल आएँगे।
रेलवे स्टेशन पर ये नीली चमकदार ट्रेन हमारे स्वागत के लिए तैयार खड़ी थी। ट्रेन राइड पन्द्रह मिनट की थी पर पैसे बचाने के लिए निश्चय किया गया कि एक ओर ट्रेन से जाएँगे और वापस पैदल आएँगे।
पूर्वानुमान के उलट जैसी कि हमें आशा थी बाहर का मौसम साफ था और धूप भी निखरी हुई थी। ट्रेन में दो गाइड थे जो हमारे लिए किसी काम के नहीं थे क्यूँकि वे सिर्फ जापानी में बात कर रहे थे।
तीन चार स्टेशन पर रुकने के बाद हम केनमोन ब्रिज (Kanmon Bridge) के पास आ गए। यह वही पुल है जो होन्शू और क्यूशू के द्वीपों को जोड़ता है।
ट्रेन से उतरकर कुछ दुर चलने पर सुरंग की ओर जाने का रास्ता था। सुरंग तक जाने के लिए पहले लिफ्ट से काफी नीचे उतरना पड़ता है। सुरंग पानी की सतह से काफी नीचे से जाती है। हम थोड़ी दूर सुरंग के रास्ते आगे बढ़े पर उस भूमिगत रास्ते में ऐसी कोई खास बात हमें नहीं दिखाई दी, सो करीब आधा किमी चलने के बाद हम सब वापस आ गए। वापसी का रास्ता हमें मालूम नहीं था। हाथ में सिर्फ मानचित्र था जिसके सहारे हम Mojiko Retro City की ओर बढ़ रहे थे।
बरसात की उमस भरी गर्मी को झेलते हुए हम कैसे मोज़ीको की रेट्रो सिटी में पहुँचे उसकी दास्तान इस यात्रा की अगली कड़ी में... आप फेसबुक पर भी इस ब्लॉग के यात्रा पृष्ठ (Facebook Travel Page) पर इस मुसाफ़िर के साथ सफ़र का आनंद उठा सकते हैं।
मनीष जी....बहुत अच्छा लगा आपके साथ जापान की रेट्रो सिटी घूमकर....
जवाब देंहटाएंजानकर खुशी हुई।
हटाएंसचमुच मजा आ गया..
जवाब देंहटाएंचलो मेरी मेहनत सार्थक हुई !
हटाएं150 येन बोले तो कितने भारतीय रूपये?
जवाब देंहटाएंजब हम वहाँ गए थे तो 100 Yen, Rs 80 के बराबर था यानि 150Yen = Rs 120.
हटाएंआज के दिन में येन रुपये के मामले कमजोर पड़ा है 100 Yen =55 Rs !
हटाएंticket ke anusar hi train ka safar bhi rha hoga
जवाब देंहटाएंट्रेन साफ सुथरी और चकाचक थी और भीड़ भी ज्यादा नहीं पर फिर भी हमें भारत से आए हुए हफ्ता भर ही तो हुआ था। सो टकट दर अखर रही थी।
हटाएंLovely It is Manish ji. :-)
जवाब देंहटाएंThx Saurabh for appreciation.
हटाएंबहुत अच्छा लगा यात्रा वृतांत...जापानियों की विनम्रता और सहायता के लिए तत्पर रहने की सीख, हर देश को लेनी चाहिए.
जवाब देंहटाएंजी बिल्कुल हम भले ही अपने देश में अतिथि देवो भवः का राग आलापते हैं पर इसका ज़िंदगी में क्रियान्चयन जापान में ही देखा। हमारे होस्ट द्वारा हमारी छोटी से छोटी जरूरतों का ध्यान रखना, अजनबियों द्वारा अपना काम छोड़कर हमारी सहायता करना हमारे दिल को छू गया।
हटाएंआपकी यह प्रस्तुति कल के चर्चा मंच पर है
जवाब देंहटाएंकृपया पधारें
दिलबाग जी आभार चर्चा मंच में इस यात्रा वृत्तांत को जगह देने के लिए !
हटाएंreally awesome................
जवाब देंहटाएंThx Amit !
हटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंनवसम्वत्सर-२०७० की हार्दिक शुभकामनाएँ स्वीकार करें!
आपको भी हिन्दी नव वर्ष की शुभकामनाएँ शास्त्री जी।
हटाएंजापान का अनुभव मुझे भी बहुत मँहगा लगा कि संसार में सबसे अधिक कीमतें यहीं वसूल की जाती है.पर वहां पश्चिमी देशों से भिन्न संस्कृति का आभास मिला -कुछ कुछ भारत जैसा .सड़क के किनारे मठियाँ बौद्ध धर्म के हीनयान पंथ की मूर्तियाँ वाली ,सड़कें भी जैसे लोग चुपके से कुछ कूड़ा टाइप का फेंक देते हों.अंग्रेज़ी से काम नहीं चलता वहाँ !
जवाब देंहटाएंजापान में नब्बे सर ज्यादा फीसदी खाद्यान्न आयात होता है। उनके पास तेल व कोयले जैसे ईंधनों का भी अभाव है , पर औद्योगिक विकास की वज़ह से तनख़्वाह का स्तर भी जबरदस्त है। धर्म के मामले में बहुत कुछ शिन्टोइज़्म और हिंदू धर्म में समानता है जिसके बारे में आगे की कड़ियों में विस्तार से चर्चा करूँगा। चालिस दिनों के प्रवास में मुझे तो सारी जगहें साफ सुथरी ही दिखाई दीं।
हटाएंसुन्दर चित्र, रोचक वर्णन
जवाब देंहटाएंशुक्रिया प्रवीण चित्रों के साथ लेख को पसंद करने के लिए !
हटाएंHow are the people of japan do they like Indians,can an Indian stay there comfortably ?
जवाब देंहटाएंजापान में मेहनती और अनुशासन प्रिय लोगों की कद्र है क्यूँकि उनका समाज इन्हीं दो मूलभूत सिद्धातों पर चलकर इतना विकसित हो सका है। दुनिया के एक सुदूर कोने में होने की वज़ह और वहाँ के सम्राटों के बाहरी लोगों को आने की पाबंदियों से ये देश विदेशियों से कटा कटा रहा। पर जापान में सारे अतिथियों का स्वागत और सहायता करने की जो परंपरा है वो भारत से कहीं ज्यादा सदृढ़ है। हमेने जो प्रेम वहाँ के लोगों से मिला उसकी कहानियाँ आगे आती रहेंगी। हमारे रहन सहन , धर्म में काफी समानताएँ हैं जिनके बारे में आगे विस्तार से चर्चा करूँगा । हाँ एक बात जरूर है कि खान पान में भारत और जापान में जमीन आसमान का अंतर है।
हटाएंthankyou manish ji please keep updating
हटाएंiss warnan se aapne Japan jane ki ek ichcha mann mein utpan kardi hai
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा जानकर सिफ़र !
हटाएंcould you please tell me Is last week of June month good to visit Japan,I am planning to go there with family. Osaka region or Tokyo,which is better to visit?,,,
जवाब देंहटाएंLast week of June will be fine especially in Tokyo. Basically end of June is rainy season throughout Japan more so in its southern part.The weather is quite similar to that of India. Osaka will be relatively hot & humid but quite bearable when compared to Indian conditions.
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