गणतंत्र बने साठ साल से ज्यादा हो गए पर अंग्रेजों की दी गई निशानी अंग्रेजी भाषा से हम भारतीयों का प्रेम सालों साल दोगुनी चौगुनी रफ़्तार से बढ़ रहा है। हालत ये है कि उसे हम हर हाल में अपनाने को तैयार रहते हैं चाहे उसमें रत्ती भर की महारत ना हासिल हो। अंग्रेजी की कौन कहे हिंदी में भी आलम यही है। इसलिए आप देश के किसी भी हिस्से में जाएँ हिंदी के साइनबोर्ड और विज्ञापनों में आपको तमाम गलतियाँ मिल जाएँगी। ख़ैर मैं बात भारतीयों के अंग्रेजी प्रेम की कर रहा था। कई बार इसका नतीजा ये होता है कि अंग्रेजी के अधकचरे ज्ञान के बावज़ूद इसका प्रयोग करने की चाहत अर्थ का अनर्थ कर देती है। ऐसा ही एक प्रयोग मुझे पिछले हफ्ते बनारस में नज़र आया।
हुआ यूँ कि पिछले हफ्ते कुछ काम से बनारस का चक्कर लगा। संयोग से पहले दिन व शाम का समय खाली मिल गया तो सोचा जरा उस समय का सदुपयोग बनारस के मंदिरों और घाटों के दर्शन में बिताया जाए। दुर्गा कुंड और मानस मंदिर से आगे जाती मुख्य सड़क पर एक मंदिर दिखा जिसे अपनी पिछली बनारस व सारनाथ यात्रा में मैं नहीं देख सका था। अंदर जाकर पता चला कि इसे बनारस के राजस्थानी समुदाय द्वारा बनाए गया है और इसका नाम त्रिदेव मंदिर है।
त्रिदेव मंदिर को देखकर वापस लौट ही रहा था कि मेरी नज़र एक सैलून पर पड़ी। सैलून के मुख्य साइनबोर्ड पर उसका नाम देखकर मुस्कुराए बिना रहा नहीं जा सका। एक ज़माना था जब कबूतर पत्रवाहकों का काम करते थे । आज इस इंटरनेट के इस युग में ई मेल से संदेशों का आदान प्रदान यानि messaging आम हो गई है। पर अगर कोई संदेश के माध्यम से शरीर को ही इधर से उधर पहुँचाने की जिम्मेदारी ले तो इससे उन्नत तकनीक भला और क्या हो सकती है? वैसे भी इहलोक से परलोक जाने के लिए लोग जन्म जन्मांतर से काशी प्रस्थान करते रहे हैं। पर कम से कम बनारसियों ने आधुनिक तकनीक से बॉडी को मैसेज करना सीख लिया है। क्या कहा यक़ीन नहीं आता। तो फिर नीचे के इन चित्रों पर गौर कीजिए
अब मसॉज लिखना आता नहीं और मालिश लिखने में शर्म आती है तो क्या करें भाई बॉडी मैसेज सेंटर से ही काम चला लिया।
वैसे ख़ोज की जाए तो ऐसे या इससे भी ख़तरनाक अंग्रेजी प्रेम के दृष्टांत देश के हर हिस्से में मिल जाएँगे। लार्ड मैकाले ने भी नहीं सोचा होगा कि उनका बोया बीज आज ये रंग लाएगा। बेचारे का हर दिन कब्र में करवटें लेते बीतता होगा।
बनारस में इस बार घाटों की सैर भी की और दशाश्वमेध घाट की महाआरती भी देखी पर वो विवरण फिर कभी। आप फेसबुक पर भी इस ब्लॉग के यात्रा पृष्ठ (Facebook Travel Page) पर इस मुसाफ़िर के साथ सफ़र का आनंद उठा सकते हैं।
उम्दा प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत बधाई...६४वें गणतंत्र दिवस पर शुभकामनाएं...
जवाब देंहटाएंदेखिये न, कितने मैसेज भेजती है, बॉडी भी..
जवाब देंहटाएंवन्देमातरम् !
जवाब देंहटाएंगणतन्त्र दिवस की शुभकामनाएँ!
:-)ऐसे बड़े सारे उदाहरण है हमारे पास....
जवाब देंहटाएंसबको जमा करके एक पोस्ट बनाने का आईडिया आ गया दिमाग में :-)
अनु
हाँ फेसबुक पर आपके द्वारा नीचे दिए गए मजेदार उदहारण पढ़े।
हटाएंहमारे शहर में तकरीबन हर स्कूल बस के पीछे लिखा है for any "RUSH" driving call ---------------- :)
हमारे यहाँ हर सिटी ट्रांसपोर्ट की मिनी बसेस के ड्राईवर के गेट पर लिखा रहता है - Poilet :)
हँसते हँसते बुरा हाल हो गया।
And what is that "RUSH"?
हटाएंNisha jee "RUSH" driving means rash driving :)
हटाएंक्या करे मनीष भाई साहब ये मेकाले साहेब ने जो सोचा था वह हो रहा है यहाँ तो आलम ये है, आये या ना आये बात तो अंग्रेजी मे ही होनी चाहिए आप जैसे कुछ लोगो की वजह से हिंदी का अस्तित्व बचा है.
जवाब देंहटाएं:) :)
जवाब देंहटाएंहमारे घर के नजदीक एक फोटो स्टूडियो है.. जहां videography, still photography, Xerox इत्यादि किए जाते हैं। तो उन्होंने वहां बोर्ड पर लिखा है:
STEEL PHOTOGRAPHY
:) तो मैं वहां गया था एक बार Steel photograph के लिए..
:)
चलो उसे मैं भी जाकर देखता हूँ :) सच अगर पूरे देश में घूम घूम कर ऐसे दृष्टांतों का संकलन किया जाए तो एक बेस्ट सेलर हमारे हाथ में होगा।
हटाएंभाई मनीष जी बहुत अच्छा आलेख पढ़ने को मिला |आभार
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