मसूरी की माल रोड पर रौशन जगमगाती दुकानों में ताक झाँक करते हम जा पहुँचे थे होटल क्लार्क के पास। माल रोड की ऊँचाई से देहरादून की घाटी असंख्य जुगनुओं की टिमटिमाहट सदृश दिख रही थी। पेट में चूहे नुक्कड़ पर छनती जलेबियों को देखने के बाद वैसे ही कुलबुलाने लगे थे। होटल के सामने ही सबको एक रेस्ट्राँ दिखा। नाम था चिक चॉकलेट (Chick Chocolate)! सबने सोचा कि क्यूँ ना चॉकलेट के साथ एक एक कप कॉफी हो जाए।
रेस्ट्राँ में घुसते ही पिज्जा, बर्गर और हॉट डॉग के बोर्ड के साथ मेनू चार्ट पेपर पर लिखे मिले। चॉकलेट के साथ चिकेन रेसपी देख कर ऐसा लगा मानो इसीलिए इस रेस्ट्राँ का नाम ऐसा है। पर इस नाम के पीछे एक और अनसुलझी कहानी छिपी होगी तब क्या जानते थे। ख़ैर वो कहानी तो इस प्रविष्टि की आख़िर में आपसे बाँटेगे ही, चलिए पहले आपको इस भोजनालय की दिलचस्प आंतरिक सज्जा की झांकी दिखला दी जाए
हमें अंदाजा नहीं था कि बाहर से आम से दिखने वाले रेस्ट्राँ की अंदर की सजावट कुछ इस तरह की होगी।
अगली बार अगर आप यहाँ जाएँ तो अपनी पसंद का मेनू पहले से ही चुन लें..
दीवारों को भी पुराने ज़माने की इमारत का रंग ढंग दिया गया था।
शायद इस साज सज्जा के पीछे विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करने की मंशा रही हो। जो भी हो हमारे समूह ने एक एक कर अपने पसंदीदा पोस्टरों के साथ तसवीरें खिचवाईं।
Customer Feedback के लिए इन छोटी छोटी चिप्पियों में ग्राहकों के अनुभवों को बाँटने का ये तरीका मुझे बेहद पसंद आया।
पीछे सफेद दाढ़ी में जो सज्जन दिख रहे हैं वो इस रेस्ट्राँ के मालिक हैं।
तनिक ठहरिए जरा चॉकलेट तो खा लें आखिर यहाँ आए तो इसीलिए थे..फिर बताते हैं आपको इस भोजनालय के नाम से जुड़ा एक रोचक तथ्य।
दरअसल चिक चाकलेट ये नाम संगीतप्रेमियों के लिए एक अलग मायने भी रखता है। 1916 में गोवा में जन्मा एंटोनिया जेवियर वॉज नाम का ये शख़्स एक प्रसिद्ध जॉज़ संगीतज्ञ था। चालीस के दशक में वॉज़ ने अपना नया नामाकरण किया चिक चॉकलेट का। हिंदी फिल्मों में पश्चिमी रिदम को सबसे पहले लाने वालों में चिक चॉकलेट अग्रणी थे। शोला जो भड़के, ऍ दिल मुझे बता दे, गोरे गोरे ओ बाँके छोरे जैसे तमाम अमर गीतों की लोकप्रिय धुनों के पीछे चिक चॉकलेट का ही हाथ था। मजे की बात तो ये है कि चालिस के दशक में जब ये रेस्ट्राँ खुला , चिक चाकलेट ने अपना एक कान्सर्ट मसूरी में किया था । क्या ऐसा नहीं हो सकता कि उसी Chic Chocolate की प्रेरणा से ये Chick Chocolate खुला?
कानाताल की इस श्रृंखला को विराम देने का वक़्त आ गया है। जल्द ही ये मुसाफ़िर लौटेगा एक नए सफ़र के अनुभवों को बाँटने के लिए आपके साथ। आप फेसबुक पर भी इस ब्लॉग के यात्रा पृष्ठ (Facebook Travel Page) पर इस मुसाफ़िर के साथ सफ़र का आनंद उठा सकते हैं।
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इस श्रृंखला की सारी कड़ियाँ
- Conclay @ Kanatal : पहला दिन लंबी यात्रा और वो शाम की मस्ती!
- Un conference @ Kanatal : कैसा रहा हमारा विचार विमर्श ?
- आइए दिखाएँ आपको गढ़वाल हिमालय (Garhwal Himalayas) के ये शानदार पर्वतशिखर !
- कानाताल (Kanatal) की वो खूबसूरत सुबह !
- टिहरी बाँध (Tehri Dam) : इंजीनियरिंग कार्यकुशलता का अद्भुत नमूना !
- क्यूँ निराश किया हमें धनौल्टी (Dhanoulti) ने ?
- Chick Chocolate मसूरी : आख़िर क्या खास है इस रेस्ट्राँ में ?
मनीष भाई...चिक चोकलेट रेस्तरा अच्छा लगा....| एक बताओ कि आपको मसूरी कैसा लगा....?
जवाब देंहटाएंमसूरी इससे पहले दो बार जाना हो चुका है। इस बार तो बस शाम की तफ़रीह के लिए गए थे। अत्याधिक शहरीकरण से मसूरी की प्राकृतिक सुंदरता मसूरी की चौहद्दियों से दूर सी चली गयी है।
हटाएंOh I have to send you some of your photos... one of them was in this restaurant. :)
जवाब देंहटाएंआपकी बात से याद आया कि मुझे भी दीपक को कई चित्र देने है। :)
हटाएंsundar yaatravritt
जवाब देंहटाएंशुक्रिया !
हटाएंसंभव है, नयी जानकारी..
जवाब देंहटाएंहमने तो नहीं पूछा पर नेट पर अन्य घुमक्कड़ों ने इस बात का जिक्र किया है कि फिलहाल जो रेस्ट्राँ मालिक हैं वो अपने रेस्ट्राँ के नामाकरण के पीछे के राज से अनिभिज्ञ हैं।
हटाएंManish you are too good. Thanks for sharing your travelogues with us. Great job.
जवाब देंहटाएंThx Samir foryour kind & encouraging words !
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