ज़मीनी दुनिया की तो यात्राएँ हम करते ही रहते हैं। पर इस दुनिया के ऊपर भी एक रहस्यमय दुनिया है इस आकाशगंगा की, जिसे समझने और देखने के लिए खगोलशास्त्री और बड़ी ताकतवर दूरबीनों की जरूरत पड़ती है। अब आम आदमी करे भी तो क्या करे बेचारा चाह कर भी वो इन चाँद सितारों की दुनिया के किरदारों को खगोलशास्त्रियों की मिल्कियत मान किनारा कर लेता है।
पर ये जो आकाशगंगा का मालिक है ना उसने भले ही इन खगोलविदों को सीधी हॉटलाइन दे रखी हो पर वो भी समझता है कि अपने मंत्रियों को बीच बीच में दूर से ही सही, पर आम प्रजा को दर्शन के लिए भेजना जरूरी है। नहीं तो Out of sight out of mind की तर्ज पर ग्रहों की लीला से उसकी प्रजा का विश्वास कहीं डगमगा ना जाए।
तो इसी क़वायद के तहत प्रभु ने अपने प्रधानमंत्री ग्रहों में सबसे बड़े वृहस्पति यानि जुपिटर को हमारी पृथ्वी के निकट से चक्कर लगाने को कहा। वो तो भला हो Times of India को तीन दिसंबर को छपी खबर का जिस पर पहली नज़र आफिस से आकर चाय की चुस्कियाँ लेते पड़ी। ख़बर में लिखा था कि वृहस्पति, सूर्य के डूबते ही अपनी शानदार चमक के साथ आकाशगंगा में अवतरित होंगे। वैसे वृहस्पति से पृथ्वी की न्यूनतम दूरी 588 मिलियन किमी तथा अधिकतम दूरी 967 मिलियन किमी है पर तीन दिसंबर को ये दूरी घट कर 608 मिलियन किमी हो गई।
सांझ तो पहले ही ढल चुकी थी घड़ी की सुइयाँ साढ़े सात का वक़्त दिखला रही थीं। दो घंटे का विलंब हो चुका था पर गुरु की विशाल काया का कुछ भाग शायद अब भी दृष्टिगोचर हो यही सोच मैंने तुरंत कैमरा निकाला और चल पड़ा छत पर इस दिव्य दर्शन के लिए।
सांझ तो पहले ही ढल चुकी थी घड़ी की सुइयाँ साढ़े सात का वक़्त दिखला रही थीं। दो घंटे का विलंब हो चुका था पर गुरु की विशाल काया का कुछ भाग शायद अब भी दृष्टिगोचर हो यही सोच मैंने तुरंत कैमरा निकाला और चल पड़ा छत पर इस दिव्य दर्शन के लिए।
अखबार में जिस दिशा में देखने को कहा गया था उसी दिशा में एक बड़ा चमकता तारा दिखा। अब अपने Point and Shoot कैमरे की जूम से जब फोकस किया तब बिना tripod के चार पाँच प्रयासों के बाद महामंत्री वृहस्पति की छवि क़ैद हो पाई.
रात बारह बजे फिर इच्छा हुई कि सोने से पहले ग्रहराज का एक और दर्शन कर लिया जाए। बारह डिग्री की सर्द हवाओं के बीच बस वृहस्पति का रथ अपने पहले की स्थिति से आगे बढ़ चुका था पर चमक अभी भी लगभग वैसी ही थी।
आप सोच रहे होंगे मैं पाँच दिनों बाद ये सब आपको क्यूँ बता रहा हूँ । क्या करें जनाब चार तारीख से कार्यालय के कामों से चार पाँच दिन बाहर जाना पड़ा। इसीलिए आज लौटते ही सोचा कि गुरु वृहस्पति से अपनी इस मुलाकात का मंज़र आप से भी बाँटूँ।
तो अगली बार इनके स्वागत के लिए आप भी तैयार रहिएगा। इतने नजदीक प्रधानमंत्री जी अब शायद नौ साल बाद आएँ !आप फेसबुक पर भी इस ब्लॉग के यात्रा पृष्ठ (Facebook Travel Page) पर इस मुसाफ़िर के साथ सफ़र का आनंद उठा सकते हैं।
One night when largest planet Jupiter came close to Earth मुसाफिर हूँ यारों , मुसाफिर हूं यारों
One night when largest planet Jupiter came close to Earth मुसाफिर हूँ यारों , मुसाफिर हूं यारों
अहा
जवाब देंहटाएंवाह बहुत खूब ..
जवाब देंहटाएंआपके कैमरे ने तो कमाल कर दिया ..
मैं तो ग्रह नक्षत्रों के प्रभाव को भी समझती हूं ..
इसलिए मेरे लिए इनकी चाल बहुत ही मायने रखती है !!
हाँ संगीता जी नक्षत्रों की चाल ढाल में आपकी विशेषज्ञता से तो समूचा हिंदी ब्लॉगिंग समुदाय और आपको जानने वाले वाक़िफ़ हैं। वृहस्पति को खुद की आँकों से देखना मेरे लिए बेहद रोमांचक था।
हटाएंआँकों की जगह 'आँखों' पढ़ा जाए
हटाएंबहुत सुंदर ....
जवाब देंहटाएंशु्क्रिया !
हटाएंवाह
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट लेखन !!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद रजनीश !
हटाएंघूम-घूमकर देखिए, अपना चर्चा मंच
जवाब देंहटाएं। लिंक आपका है यहीं, कोई नहीं प्रपंच।।
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज सोमवार के चर्चा मंच पर भी है!
सूचनार्थ!
शु्क्रिया चर्चा मंच में मुसाफ़िर हूँ यारों को स्थान देने के लिए !
हटाएंआपके लेखों में हर बार कुछ नया होता है। इसे देखकर मन प्रसन्न हो गया। आपका सफर इसी प्रकार हमारे लिए कुछ नया लाए, हम इसी प्रतीक्षा में बैठे रहते हैं। अब आपके अगले लेख की प्रतीक्षा रहेगी।
जवाब देंहटाएंसावित्री जी जानकर खुशी हुई कि गुरु वृहस्पति की ये झलक आपको पसंद आई। अगली प्रविष्टि में कानाताल और उसके आस पास की प्राकृतिक सुंदरता को आप सब के साथ बाँटूगा।
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