पिछली बार सिक्किम में ट्रैवेल ब्लॉगर कांफ्रेस में ना जाने का अफ़सोस था पर जापान की यात्रा ऐसे अवसर पर आ गई थी कि मेरे पास दूसरा कोई विकल्प भी नहीं बचा था। पर अक्टूबर के दूसरे हफ्ते में जब CLAY की ओर से दूसरी बार ऐसी ही एक कांफ्रेस में शामिल होने की गुजारिश की गई तो मेरे मुँह से पहले ना ही निकला क्यूँकि जिन तिथियों पर CONCLAY का आयोजन हो रहा था उस अंतराल में मैं पहले ही दक्षिण महाराष्ट्र के लिए अपना सपरिवार घूमने का कार्यक्रम बना चुका था। 29 को मुंबई से राँची वापसी की टिकट भी हो चुकी थी। पर अचानक ही ये ख्याल आया कि दक्षिण महाराष्ट्र की यात्रा तो 26 रात तक खत्म हो रही है। बाकी दिन तो रिश्तेदारों और दोस्तों से मिलने के लिए रखे थे। अगर श्रीमतीजी को वापस अकेले लौटने को तैयार कर लिया जाए और क्लब महिंद्रा वाले मुंबई से मुझे पिक अप कर लें तो कानाताल जाना संभव हो सकता है।
जब मैंने घुमक्कड़ ब्लॉगरों की इस कांफ्रेंस के बारे में पत्नी को बताया तो वो अनिच्छा से ही सही राजी हो गयीं। क्लब महिंद्रा वाले मेरे मुंबई से यात्रा करने के लिए पहले ही हामी भर चुके थे। गणपतिपूले, सिंधुदुर्ग, कोल्हापुर, पुणे होते हुए हम 26 अक्टूबर की आधी रात को मुंबई से करीब अपने अड्डे अंबरनाथ पहुँचे। मेल चेक करने पर पता लगा कि मुझे अपने साथियों से 28 की सुबह पाँच बजे मुंबई हवाई अड्डे पर मिलना है। पाँच बजे का मतलब था कि अंबरनाथ से रात तीन बजे ही निकल चलूँ। अब जहाँ छुट्टियों के लिए भाई बहनों के सारे परिवार एक जगह वर्षों बाद इकठ्ठा हों वहाँ रात के बारह एक बजे से पहले कहाँ सोना हो पाता है। रात डेढ़ बजे से एक घंटे के लिए बस आँखें भर बंद कीं। नींद ना आनी थी, ना आई। करीब सवा तीन बजे मैं सबसे विदा ले कर घर से निकल पड़ा। यूँ तो अंबरनाथ (जो कि कल्याण से लगभग दस किमी दूर है) से मुंबई हवाईअड्डे का सफ़र आम तौर पर ट्रैफिक की वज़ह से दो ढाई घंटे में पूरा होता है पर सुबह का वक़्त होने की वज़ह से मैं सवा घंटे में ही पहुँच गया। बीच में अँधेरी में सड़क किनारे गाड़ी रुकवा चाय की चुस्कियाँ भी लीं। सुबह के साढ़े चार बजे जब हवाई अड्डे पर पहुँचा तो वहाँ कोई जाना पहचाना चेहरा दिख नहीं रहा था। वैसे भी मुंबई से जिन चार लोगों को जाना था उनमें से किसी से पहले मैं मिला भी नहीं था। पर ये जरूर था कि अपनी मुखपुस्तिका यानि फेसबुक की बदौलत इनमें से कुछ की शक़्लों का खाका दिमाग में था।
पहले सोचा सबकी प्रतीक्षा कर ली जाए फिर बोर्डिंग पॉस एक साथ ही ले लेंगे। थोड़ी देर कुर्सी पर बैठा ही था कि तुरंत एयर इंडिया के कर्मचारी पास आ गए। कहने लगे कि कि अगर आपको दिल्ली जाना है तो जल्द ही चेक इन कर लीजिए। सो ना चाहते हुए भी मुझे उठना पड़ा। ये निर्णय सही था क्यूँकि बाद में पता चला कि पाँच बजे के बाद एयरपोर्ट पर चेक इन के लिए कतारें बेहद लंबी हो जाती हैं। बोर्डिंग पास लेने के बाद मुझे एक जाना पहचाना चेहरा दूर की पंक्ति में नज़र आया। मुझे लगा कि ये निशा झा हो सकती हैं। पूरे समूह में मैं अगर ब्लॉग के माध्यम से किसी को सबसे ज्यादा जानता था तो निशा जी को ही। निशा जी के साथ चेक इन करने के बाद बस में मुलाकात हुई अरुण नायर से। निशा उन्हें पहले से जानती थीं पर मुझे उनके बारे में पहले से कुछ भी पता नहीं था। अरुण क्लब महिंद्रा से हैं और पिछले कई वर्षों से सोशल नेटवर्किंग के माध्यम बाजार में उपस्थिति दर्ज कराने के तरीकों में अच्छी महारत हासिल कर चुके हैं।
अब हमें सिर्फ दीपक अमेमबल और हमारे टूर कार्डिनेटर अक्षत की तलाश थी। पता चला कि वे अभी बाहर कतार में ही फँसे हैं। हमारा विमान समय से था। अंदर अंतरराष्ट्रीय उड़ानों की तरह 2+4+2 की तरह बैठने की व्यवस्था थी। चूंकि हम सब ने अलग अलग समय में चेक इन किया था इस वज़ह से हमारी सीटें भी बिखरी थीं। सबसे ख़तरनाक सीट निशा जी को मिली थी। उनके ठीक आगे ओलंपिक कांस्य पदक विजेता पहलवान सुशील कुमार बैठे थे और उन्हें एकानामी क्लॉस की सीट में अपने आप को समेटने में कष्ट का सामना करना पड़ रहा था। निशा जी चिंतित रहीं कि कही सुशील जी ने शरीर का भार सीट पर दे दिया तो उसका ख़ामियाजा बेवज़ह उनको चुकाना ना पड़ जाए :)। CONCLAY में भाग लेने वाले बाकी तीन सदस्यों में से दो हमें दिल्ली एयरपोर्ट पर और एक सीधे कानाताल में मिलने वाले थे।
बेंगलूरू से दिल्ली की फ्लॉइट में लक्ष्मी शरत और नंदिता अय्यर आ रही थीं। उनकी फ्लॉइट हमारी फ्लॉइट से आधे घंटे बाद पहुँची। देहरादून के लिए हमारी अगली उड़ान टर्मिनल 1A से थी। सो हमने इंटर टर्मिनल ट्रांसफर वाली बस सेवा का फ़ायदा उठाया। हमारी देहरादून की उड़ान दो घंटे विलंबित हो गई थी। टर्मिनल 1A पर पहुँच कर पहला काम पेट पूजा का किया गया। गर्मागरम छोले भटूरे खाने के बाद , नींद भगाने का एकमात्र ज़रिया था एक दूसरे से बातें करना।
अरुण उत्तर कोरिया से जुड़ी पुस्तक जिसे वो पढ़ रहे थे की चर्चा करने लगे। फिर उन्होंने अपनी हाल की थिम्पू यात्रा की तसवीरें दिखायीं जो हर लिहाज़ से शानदार थीं। पूरी यात्रा के दौरान अरुण और दीपक की फोटोग्राफी की अच्छी जानकारी का सबने फ़ायदा उठाया। ग्यारह बजे की बजाय आख़िरकार हमारी स्पाइसजेट की उड़ान करीब डेढ़ बजे दिल्ली से रवाना हुई। नतीजन दो बजे हम जॉली ग्रान्ट (Jolly Grant Airport) हवाईअड्डे पहुँचे जबकि इस समय तक क़ायदे से हमें कानाताल में होना चाहिए था। हवाई अड्डे से निकलते ही हम राजाजी पार्क के घने जंगलों में थे। रास्ते के दोनों ओर फैले इन जंगलों से हाथियों के झुंड सड़क पर आ जाते हें। पर गनीमत रही कि ऐसा हमारे साथ नहीं हुआ। ॠषिकेश से होते हुए हम नरेंद्र नगर पहुँचे। पहाड़ी घुमावदार रास्ता शुरु हो चुका था। सफ़र की थकान मिटाने के लिए चाय विराम लिया गया। चाय की चुस्कियों के साथ गपशप चलती रही।
नरेंद्र नगर के बाद अगला पड़ाव चंबा था। पर इसे हिमाचल वाला चंबा समझने की भूल ना कर लीजिएगा। दरअसल मसूरी से करीब 50 किमी दूरी पर उत्तराखंड में एक और चंबा है। यहीं से टिहरी जाने का मार्ग अलग होता है। बीच में सड़क बारिश में हुए भू स्खलन की वजह से जगह जगह कटी हुई थी। चंबा के पास ही हमें हिमालय की श्वेत धवल चोटियों के प्रथम दर्शन हुए। फटाफट गाड़ी रुकवाकर तसवीरें ली गयीं।
शाम साढ़े पाँच बजे जब हम कानाताल पहुँचे सूरज कमरे की बॉलकोनी से दिखती हुई पहाड़ियों के पीछे दुबक चुका था। स्पाइसजेट की विलंबित विमान सेवा की वज़ह से हमारी सरकुंडा देवी मंदिर की निर्धारित यात्रा का कार्यक्रम रद्द कर देना पड़ा था। कानाताल में हमारी मुलाकात कनाडा से ताल्लुक रखनेवाली मेरीएलेन से हुई जो हमसे पहले ही वहाँ पहुँच चुकी थीं। मैरी भारत प्रेमी हैं और कनाडा के ठंड के मौसम से दूर यहाँ के प्यारे सूरज का आकर्षण उन्हें हर साल उन छः महिने के लिए भारत ले आता है।
शाम साढ़े पाँच बजे जब हम कानाताल पहुँचे सूरज कमरे की बॉलकोनी से दिखती हुई पहाड़ियों के पीछे दुबक चुका था। स्पाइसजेट की विलंबित विमान सेवा की वज़ह से हमारी सरकुंडा देवी मंदिर की निर्धारित यात्रा का कार्यक्रम रद्द कर देना पड़ा था। कानाताल में हमारी मुलाकात कनाडा से ताल्लुक रखनेवाली मेरीएलेन से हुई जो हमसे पहले ही वहाँ पहुँच चुकी थीं। मैरी भारत प्रेमी हैं और कनाडा के ठंड के मौसम से दूर यहाँ के प्यारे सूरज का आकर्षण उन्हें हर साल उन छः महिने के लिए भारत ले आता है।
शाम की चाय के बाद भी घड़ी की सुइयाँ सिर्फ सात बजा रही थीं। खाने के वक़्त में अभी भी देरी थी। बाहर ठंड भी बढ़ गई थी। सबकी राय बनी की समय का सही सदुपयोग करने के लिए रिसार्ट में उपलब्ध सुविधाओं का जायज़ा लिया जाए। पहाड़ी पर बनें इस रिसार्ट में छोटी ही सही एक क्रिकेट पिच भी है। ये अलग बात थी कि तीन दिनों में हम सब उसके लिए वक़्त नहीं निकाल सके। जिम, स्पॉ और वाटर थेरेपी की सुविधाओं को देखने के बाद हम कैरोके रूम पहुँचे। अब तक मित्रों से पता लग चुका था कि हमारे बीच अरुण और नंदिता जैसे अच्छे गायक गायिका मौज़ूद हैं। सो निश्चय किया गया कि भोजन के बाद हम इसी कक्ष को गुलज़ार करेंगे।
दिन भर के लंबे सफ़र के बाद भूख भी लग आई थी और वैसे भी खाना ज़ायकेदार था। नंदिता पालक पनीर पर अपना दिल दे बैठी थीं। मैं मिश्रित दाल की गहराइयों में डूबा था। अरुण, दीपक निशा साथ साथ सामिष भोजन का भी आनंद ले रहे थे। ख़ैर घंटे भर में अपनी क्षुधा शांत करने के बाद हम कैरोके रूम की ओर मुख़ातिब थे। वहाँ पहले ही रिसार्ट में ठहरे कई परिवार अपने अंदर छुपी गायन प्रतिभा को बाहर निकालने के लिए तत्पर थे। हमारे लीड सिंगर अरुण अपनी बारी की बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहे थे। एक बार अरुण ने माइक पकड़ा फिर तो हम सभी यानि निशा, नंदिता , लक्ष्मी और मैं कोरस में साथ हो गए।
बदन पे सितारे लपेटे हुए... से शुरु हुई महफिल रिमझिम गिरे सावन से ....होती हुई बैयाँ ना धरो मोरे घनश्याम ...तक पहुँच गई। गा हम जैसा भी रहे हों आनंद सब ले रहे थे। दीपक भाई घंटे भर की इस महफिल में चुपचाप अलग अलग कोणों से हमारी तसवीरें लेते रहे और हमें पता भी नहीं चला।
देखिए दीपक जी की फोटोग्राफी का कमाल Elvis Presley साहब खुद सुर में सुर मिलाते लग रहे हैं।
बदन पे सितारे लपेटे हुए... से शुरु हुई महफिल रिमझिम गिरे सावन से ....होती हुई बैयाँ ना धरो मोरे घनश्याम ...तक पहुँच गई। गा हम जैसा भी रहे हों आनंद सब ले रहे थे। दीपक भाई घंटे भर की इस महफिल में चुपचाप अलग अलग कोणों से हमारी तसवीरें लेते रहे और हमें पता भी नहीं चला।
देखिए दीपक जी की फोटोग्राफी का कमाल Elvis Presley साहब खुद सुर में सुर मिलाते लग रहे हैं।
अरुण से फिर कमान हाथ में ली नंदिता ने..
निशा और लक्ष्मी ने भी हर गीत में गर्मजोशी से साथ दिया। सोचिए तो अगली रात इस तिकड़ी से अंत्याक्षरी का मुकाबला करना कितना मुश्किल रहा होगा !
महफिल और भी चलती पर कैरोके रूम का समय समाप्त हो आया था। अगली सुबह दस बजे से हम सब का अनौपचारिक विचार विमर्श था जिसे अरुण और अक्षत ने Unconference का तमगा दिया था। प्रत्येक आमंत्रित प्रतिभागी को बोलने का पौन घंटे का समय दिया गया था। हमें क्या पता था कि हमारी यात्रा का ये सबसे संतोषजनक दिन होने वाला था। कैसे बीता हमारा कानाताल में दूसरा दिन उसका विवरण ले कर शीघ्र हाज़िर होता हूँ... मुसाफिर हूँ यारों हिंदी का एक यात्रा ब्लॉग
इस श्रृंखला की सारी कड़ियाँ
- Conclay @ Kanatal : पहला दिन लंबी यात्रा और वो शाम की मस्ती!
- Un conference @ Kanatal : कैसा रहा हमारा विचार विमर्श ?
- आइए दिखाएँ आपको गढ़वाल हिमालय (Garhwal Himalayas) के ये शानदार पर्वतशिखर !
- कानाताल (Kanatal) की वो खूबसूरत सुबह !
- टिहरी बाँध (Tehri Dam) : इंजीनियरिंग कार्यकुशलता का अद्भुत नमूना !
- क्यूँ निराश किया हमें धनौल्टी (Dhanoulti) ने ?
- Chick Chocolate मसूरी : आख़िर क्या खास है इस रेस्ट्राँ में ?
वाह, हर दिल जो प्यार करेगा..वह गाना गायेगा।
जवाब देंहटाएंसही कहा प्रवीण !
हटाएंWah! Aapnay to sunherey yaadein phir say taazay kar di! Dhanyavaad!
जवाब देंहटाएंवाह दीपक भाई आपकी हिंदी तो लाजवाब है !
हटाएंTou aap ne lhub maaje kiye!
जवाब देंहटाएंLot of discussions too as you will get to know in the next part. As for fun whenever there are like minded people masti to sath mein hogi hi :)
हटाएंKahna Khub chatete the!
जवाब देंहटाएंLove it!
जवाब देंहटाएंpublic land, maps, wildlife
Thx
हटाएंबहुत ही सुन्दर वर्णन किया है आपने । धन्यवाद् । लगता ही नहीं कि यह बात दो हफ्ते से ज्यादा पुरानी हो चली है । ये चित्र क्या आपके cellphone से हैं? Photos do say a lot. :)
जवाब देंहटाएंI will also try to upload all the photos in a day or two.
हाँ मोबाइल कैम के ही हैं। पैनासोनिक वाले shots तो मेमोरी कार्ड की भेंट चढ़ गए।
हटाएंबहुत खूब...बढ़िया विवरण...आनंद आ गया पढ़कर ,
जवाब देंहटाएंयही तो आभासी दुनिया का सच है,लगता ही नहीं पहली बार मिल रहे हैं
अगली पोस्ट की प्रतीक्षा
सही कह रही हैं रश्मि जी पर आभासी दुनिया में भी मजा तब आता है जब आप अपने किसी एक रुचि से आपस में जुड़े होते हैं और मन में एक दूसरे के प्रति सम्मान की भावना हो। हम सभी घुमक्कड़ी के तारों से जुड़े थे..सारे व्यक्तित्व ऐसे जिनसे आपस में सीखने समझने का अवसर हो। कानाताल में तीन दिनों की इस unconference के इन्हीं पहलुओं ने हम सबको एक दूसरे से जोड़ दिया।
हटाएंवाह जी बहुत बढ़िया . अच्छा लगा पढ़ कर.
जवाब देंहटाएंशु्क्रिया काजल जी !
हटाएंI spent a good 20 minutes, revising my Hindi reading abilities - it was such a delight to read your post where your attention to detail, as usual, stood out. Waiting for part 2 now...aur yeh kya - palak paneer ko Nandita iyer dil de baiti :D
जवाब देंहटाएंAs for palak paneer thing..jab main wo line likh raha tha to pata tha ki Nandita react karegi :) but the way you enjoyed the softness of paneer nothing else came to my mind while writing about it. :)
हटाएंबहुत सुन्दर . मैं इस महीने के आखिर मे गढ़वाल जाने प्रोग्राम बना रहा हूँ . कानाताल भी जाने की सोच रहा हूँ . कानाताल के बारे मे कुछ और जानकारी दे तो कृपा होगी .
जवाब देंहटाएंबिल्कुल आगे की पोस्ट्स में कानाताल से आसपास की जगहों के बारे में जरूर लिखूँगा। बहरहाल इस संबंध में आपको एक मेल कर दिया है।
हटाएंbahut sundar yatra vivaran diya hai . foto badhiya hai ...
जवाब देंहटाएंपसंद करने का शुक्रिया महेंद्र जी !
हटाएंDunno about you, Manish, but if I even so much hinted at such a solution to attend some xyz conference, wifey would D me
जवाब देंहटाएंहा हा हा अनुराग मैं इस बारे में थोड़ा भाग्यशाली हूँ। वैसे बाकी रिश्तेदारों ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी इस परिस्थिति में आग में घी लगाने की :)
हटाएंBahut Badiya Sir..The last time I read a long narrative in Hindi was in college..
जवाब देंहटाएंThx for appreciation Lakshmi. I hope to make that interval smaller :)
जवाब देंहटाएंUttrakhand is certainly the place to get fallen in love with. It is just because of fine-looking hills and nature’s beauty.
जवाब देंहटाएंYou are right Manya but the same is true for three more states namely Himachal, Sikkim & Arunachal Pradesh.
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