माउंट आबू का ये सफ़र अधूरा रहेगा अगर मैं आपको यहाँ के बाजारों की सैर ना कराऊँ। वैसे तो शिमला. मसूरी और दार्जीलिंग जैसे हिल स्टेशनों की तुलना में माउंट आबू के बाजारो में वो चमक दमक नहीं पर यहाँ की दुकानों में महिलाओं की भीड़ को देखकर आप ये जरूर अंदाजा लगा सकते हैं कि यहाँ उनके काम का सामान बहुतायत में मिलता होगा।
आबू का मुख्य बाजार यहाँ नक्की झील को जाने वाली सड़क पर लगता है। इसलिए यहाँ रात की चहल पहल का अंदाजा लगाने के लिए और अपनी भार्या का मूड सफ़र के अगले पड़ाव तक दुरुस्त रखने के लिए रोज़ शाम को एक चक्कर मार लिया करते थे।
वैसे खरीददारी की शुरुआत अगर मुन्ना भाई की इस दुकान से की जाए तो कैसा रहे?
माउंट आबू के मुख्य माल पर पर्यटकों की भारी भीड़ रहती है। लाज़िमी है कि इसमें सबसे ज्यादा हिस्सा गुजराती पर्यटकों का है। भीड़ के केंद्र में है चूड़ियों की दुकानें। ढेर सारी फ्लोरोसेंट लाइटों की जगमाहट के बीच जब किन्हीं हाथों में ये चूड़ियाँ उतरती हैं तो दुकान की चकमकाहट और भी बढ़ जाती है। दुकानदार एक बार जब अपना माल दिखाना शुरु कर दे तो रंग और चमक के इस दोहरे आकर्षण का जादू ऐसा कि शायद ही कोई ग्राहक खाली हाथ लौटे।
चलिए चूड़ियाँ तो खरीद लीं पर साथ में मैंचिंग कपड़े, पर्स या बैग और जूती ना हो तो कोरम पूरा कैसे होगा?
नक्की झील के पास ही यहाँ का प्रसिद्ध रेस्ट्राँ अर्बुदा है जो मध्यम और उच्च वर्ग में खासा लोकप्रिय है। वैसे पहली बार इसका नाम पढ़कर मुझे अज़ीब लगा था पर जब आबू पर्वत की कहानी पढ़ी तो इसके नामाकरण का मतलब समझ आया।
वैसे माउंट आबू की मेन रोड पर इससे जेब पर कम भारी पड़न वाले भोजनालयों की कमी नहीं। आबू में गुजारी हुई दो रातों में हमने खाना अपने छोटे से गेस्ट हाउस में खाया इसलिए इन भोजनालयों को परखने की जरूरत नहीं पड़ी।
वैसे मुख्य सड़क से नक्की झील की ओर मुड़ने वाले रास्ते के ठीक पहले एक और खाने पीने की अच्छी जगह दिखती है। नाम भी बड़ा रोचक यानि चाचा कैफे।
वैसे ये मत समझ लीजिएगा कि यहाँ मर्दों ने भी चूड़ियाँ पहन रखी हैं। उनके शगल अलग हैं तो हाथों को सजाने का अंदाज भी तो दूसरा होगा।
वैसे तो माउंट आबू में दो रातें रहना पर्याप्त है पर अगर आपके पास उतना भी समय नहीं तो कम से कम देलवाड़ा मंदिर और गुरु शिखर अवश्य जरूर जाएँ। मैं तो आबू को इन्हीं दो जगहों के लिए याद रखूँगा। वैसे आप जब भी आबू आएँ पहले से आरक्षण जरूर कराएँ। छोटी जगह होने के कारण पर्व त्योहारों और छुट्टियों के समय यहाँ होटल के दाम बेतहाशा बढ़ जाते हैं। वैसे आप जब भी आबू आएँ पहले से आरक्षण जरूर कराएँ। छोटी जगह होने के कारण पर्व त्योहारों और छुट्टियों के समय यहाँ होटल के दाम बेतहाशा बढ़ जाते हैं। हालांकि मैं RTDC के किसी भी होटल में ठहरा तो नहीं पर राजास्थान जाने के पहले ये जरूर दिख गया था कि सारे राज्य में सबसे ज्यादा किराया उनके आबू के विश्राम गृह में था।
आबू के बाद हमारे सफ़र का अगला पड़ाव था जोधपुर जहाँ अपनी राजस्थान यात्रा की अगली दो रातें बितायीं। इस यात्रा श्रृंखला की अगली कड़ी में तय करेंगे आबू से जोधपुर का सफ़र... मुसाफिर हूँ यारों हिंदी का यात्रा ब्लॉग...
रंग रंगीलो राजस्थान
जवाब देंहटाएं:)
हटाएंI am not much of a shopper but this changes when I go to Rajasthan! Lovely colorful pictures.
जवाब देंहटाएंIs it so...qt unlike your species :)
हटाएंजानकारीपरक यात्रावृतांत
जवाब देंहटाएंनिरामिष: शाकाहार संकल्प और पर्यावरण संरक्षण (पर्यावरण दिवस पर विशेष)
धन्यवाद...
हटाएंलेख से गतवर्ष की गयी आबू के यात्रा और वहाँ के बाजार याद आ गए....| फोटो में दिखा अर्बुदा रेस्तरा भी याद आ गया क्योंकि इक दिन हमने हमने रात का खाना यही खाया था....|
जवाब देंहटाएंरेस्त्राँ आप को कैसा लगा था?
हटाएंमनीष जी आबू के बाजारों की बहुत अच्छी सैर करवाई हैं आपने. अर्बुदा रेस्टोरेंट, चचा कैफे, चूडियो की दुकान, बन्दूको की दुकान, अच्छा लगा. धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंसराहने का शुक्रिया !
हटाएंवाह आपके चित्र तो एकदम जीवंत हैं
जवाब देंहटाएंशुक्रिया काजल भाई।
हटाएंwow ! rangilo rajsthan ...
जवाब देंहटाएं:) :)
हटाएंrajasthani chudiyan bhi bahut sundar hoti hai
जवाब देंहटाएंJi bilkul..waise Abu mein to kya Rajsthani kya Gujrati donon terah ki chudiyan dukanon mein uplabdh hain.
हटाएंआपके छायाचित्र लुभा कर माउन्ट आबू आने का आमन्त्रण दे रहे हैं...
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया
जवाब देंहटाएं