सोलह नवंबर की सुबह बादलों से भरी थी। सुबह तरो ताज़ा होने के बाद हमारा पहला लक्ष्य गुरुशिखर था। माउंट आबू आने के पहले मैंने गुरुशिखर के बारे में खास सुन नहीं रखा था। पर जो मानचित्र मुझे स्थानीय पर्यटन केंद्र से मिला था उसमें देलवाड़ा मंदिर के आगे गुरु शिखर की ओर जाती सड़क का उल्लेख अवश्य था। नक़्शे को ध्यान से देखने से स्पष्ट था कि अगर सबसे पहले हम माउंट आबू से पन्द्रह किमी दूर स्थित इस शिखर को देख लें तो वापस लौटते समय इसी रास्ते में पड़ने वाले ब्रह्माकुमारी शांति उद्यान (पीस पार्क) और देलवाड़ा मंदिर को देख सकते हैं।
पिछला दिन और शाम हमने नक्की झील के आस पास के इलाके में गुजारी थी। सच कहूँ तो शहर का मुख्य हिस्सा आपको इस बात का अहसास नहीं करा पाता कि आप एक सुंदर से हिल स्टेशन में पधारे हैं। पर सुबह हम मुख्य मार्ग छोड़ कर जैसे ही शहर से चार पाँच किमी आगे बढ़े तब जाकर वो खूबसूरती दिखाई दी जिसकी उम्मीद हम पिछले दिन से ही लगाए बैठे थे। अरावली की छोटी छोटी पहाड़ियों के बीच पतली सी सड़क पर बढ़ती हमारी गाड़ी जब इस झील की बगल से गुजरी तो इसे देखकर मन प्रसन्न हो गया। चारों ओर से हरे भरे पेड़ों से घिरी इस झील का जल बिल्कुल शांत था। न पर्यटकों की भीड़ , ना नौकाओं की हलचल। ऐसा लगता था मानो इस हरियाली के बीच वो अपने आप में ही रमी हुई हो।
यहाँ के लोग इसे छोटी नक्की झील (Mini Nakki Lake) या ओरिया झील (Oriya Lake) भी कहते हैं। ये प्राकृतिक झील नहीं है। दशकों पहले इस इलाके में लगातार आ रहे अकालों से निबटने के लिए यहाँ सरकार ने झील के लिए खुदाई शुरु करायी। मजदूरों को इस खुदाई के बदले निर्माण अवधि में रसद मुहैया कराई गयी। इस झील से थोड़ा आगे बढ़ने पर ओरिया का चेक पोस्ट आ जाता है। यहाँ से दो रास्ते अलग होते हैं एक दाहिनी ओर अचलगढ़ (Achalgarh) को चला जाता है।