सज्जनगढ़ से लौटने वक़्त शाम ढल आयी थी। नवंबर का महिना होने के बाद भी सर्दी ना के बराबर थी। हमने जिस होटल विनायक में पनाह ले रखी थी वो भी ऍसा ना था जिसमें चुपचाप वक़्त गुजारने का मन करे। वैसे भी आप प्रतिदिन मात्र पाँच -छः सौ रुपये देकर उदयपुर जैसे शहर में पीक सीजन में उम्मीद भी क्या रख सकते हैं। इसलिए ज्यादा समय बगैर गँवाए हम रात के उदयपुर की सैर पर निकल गए।
अब रात के उदयपुर की जगमगाहट देखनी हो तो करणी माता मंदिर तक पहुँचाने वाले रोपवे से अच्छी जगह हो ही नहीं सकती। दूधतलाई स्थित इस रोपवे के जब हम पास पहुँचे तो आशा के विपरीत वहाँ जरा भी भीड़ नहीं थी। वैसे ये रोपवे सुबह नौ बजे से रात्रि के नौ बजे तक खुला रहता है। प्रति व्यक्ति तिरसठ रुपये का टिकट आम आदमी पर भारी जरूर पड़ता है पर उदयपुर के जो नज़ारे इसकी सवारी करने के बाद मिलते हैं उससे पूरा पैसा वसूल समझिए।
रोपवे के ठीक ऊपर एक रेस्टोरेन्ट है और साथ ही एक बरामदा भी जहाँ चाय की चुस्कियों के साथ पिछोला झील में चमकते दमकते महलों का दृश्य आप आसानी से क़ैद कर सकते हैं। थोड़ी चढ़ाई और चढ़ने पर यहाँ करणी माता का एक मंदिर भी है।
अगर आपके कैमरे में रात के दृश्यों को क़ैद करने की क्षमता है तो यहाँ उसकी परीक्षा हो जाएगी। ये बताना आवश्यक होगा कि रात के चित्रों को लेने के लिए कैमरे के आलावा त्रिपाद (ट्राइपॉड) का होना बहुत जरूरी है। मैं ट्राइपॉड लेकर यहाँ नहीं आया था जिसका अफ़सोस हुआ फिर भी उसके बिना भी हाथ स्थिर कर कुछ चित्र ठीक ठाक आ गए। तो चलिए देखें तो रात में पिछोला किन रंगों में रँगी रहती है?
अँधेरे में डूबी झील में सबसे पहले नज़र ठहरती है झील के मध्य में स्थित होटल लेक पैलेस पर।
अँधेरे में डूबी झील में सबसे पहले नज़र ठहरती है झील के मध्य में स्थित होटल लेक पैलेस पर।
जहाँ लेक पैलेस के चारों ओर श्वेत आभा थी वहीं जग मंदिर स्वर्णिम प्रकाश से नहाया हुआ लगता था।
नीचे की तसवीर उस वक़्त दूध तलाई से दिखते मंज़र का सबसे सही परिदृश्य उपस्थित करती है। चित्र में बाँयी ओर दिख रहा है लेक पैलेस और दाँयी ओर है सिटी पैलेस। दरअसल अगर आप रात में उदयपुर हवाई अड्डे पर उतरें तो कुछ ऐसा ही दृश्य आकाश से भी दिखता है।
वैसे कुछ दिनों पहले जब DLF समूह के सिरमौर का जन्मदिन था तो शकीरा के कार्यक्रम के उपलक्ष्य में जग मंदिर की विशेष सजावट की गई थी। इस चित्र के छायाकार हैं तारा
उदयपुर में अपने प्रवास के दूसरे दिन हमने राजस्थान के सबसे बड़े किले चित्तौड़गढ़ का रुख किया। लौटते वक़्त उदयपुर से बाइस किमी दूर स्थित भगवान शिव के मंदिर एकलिंग गए और यहीं मुझे मन में उठते इस प्रश्न का जवाब मिला कि उदयपुर के शासक अपने आप को महाराजा ना कह कर महाराणा क्यूँ कहा करते थे? दरअसल सातवीं शताब्दी में बप्पा रावल के समय से मेवाड़ के शासक इस मंदिर में पूजा करते आए हैं। मेवाड़ नरेशों की परंपरा के अनुसार एकलिंग जी मेवाड़ के असली राजा हैं और उनका ख़ुद का किरदार सिर्फ एकलिंग जी के इस प्रदेश की रक्षा करने का है। राजा और दीवान के इस प्रतीकात्मक संबंध को दिखाने के लिए मेवाड़ के शासकों ने अपने को महाराणा कहा।
एकलिंग जी के इस मंदिर तक पहुँचने के लिए अरावली पहाड़ी की घाटियों के बीच से गुजरना पड़ता है। पूरे मंदिर के आहाते में मुख्य मंदिर के आलावा सौ से ज्यादा छोटे छोटे मंदिर हैं। बप्पा रावल द्वारा इस मंदिर के प्रारंभिक निर्माण के बाद ये मंदिर कई बार बनाया और बढ़ाया गया। मंदिर में एकलिंगी जी के दर्शन के बाद हम एक बार फिर जा पहुँचे सिटी पैलेस जहाँ बड़ी मुश्किल से हमें रात के ध्वनि प्रकाश कार्यक्रम को देखने का मौका मिला था। जब तक हम त्रिपोलिया गेट तक भागते दौड़ते पहुँचे कार्यक्रम शुरु हो चुका था।
नीचे के चित्र में दिख रही सफेद कुर्सियों पर बैठकर ही देखा जाता है ये कार्यक्रम...
महाराणा उदय सिंह,पन्ना धाय,रानी रुक्मणी,राणा प्रताप की कहानियों के साथ मेवाड़ के गौरवमयी इतिहास से परिचय कराता कार्यक्रम वाकई बेहतरीन है। साथ में महल के विभिन्न हिस्सों को अलग अलग प्रकाशित होते देखना भी एक अद्भुत अनुभव रहा।
तो आइए मेरे कैमरे की नज़र से देखिए सिटी पेलेस के बदलते प्रकाश संयोजन के कुछ दृश्य
तो कैसा लगा आप को रात का उदयपुर ! इस यात्रा के अगले भाग में आपका परिचय कराएँगे चित्तौड़गढ़ के इतिहास से...
इस श्रृंखला में अब तक
umda...mujhey apni visit yaad aa gayi
जवाब देंहटाएंआपने उदयपुर के इतने सुन्दर चित्र लिए हैं कि दिल की धड़कने की बढ़ गयी। बेहद खूबसूरत। आपने एकलिंग जी का जिक्र किया है आप एकलिंगी लिख रहे हैं। इसे जरा ठीक कर लें। उदयपुर के राजा एकलिंग जी ही हैं यहाँ के राजा उनके दरबारी हैं। करणीमाता से उदयपुर बेहद खूबसूरत लगता है। ऐसे ही दीनदयाल पार्क से भी बेहद खूबसूरत फोटों आती हैं।
जवाब देंहटाएंUdaipur ka raja ekling Ji hi tha
हटाएंपारुल शुक्रिया.. मुझे आपकी वो पोस्ट याद है जिसमें आपने सहेलियों की बाड़ी और चोखी धानी का ज़िक्र किया था।
जवाब देंहटाएंअजित जी धन्यवाद मैंने आपके कहे अनुसार सुधार कर दिया है। वैसे हम लोग दीनदयाल पार्क नहीं गए और ना ही किसी ने उसका जिक्र किया।
Lovely description.. have to go to udaipur..
जवाब देंहटाएंमनीष जी, आपने जहाँ से करणी माता के लिए रोप-वे लिया था, बस उसी जगह पर दीनदयाल पार्क है। वहाँ से उदयपुर बहुत सुन्दर दिखायी देता है। रात को फाउण्टेन शो भी होता है वहाँ पर।
जवाब देंहटाएंअच्छा तब तो हमें वो रोपवे से दिखा था पर लोग उसका नाम कुछ और बता रहे थे। ज्यादा रात होने की वज़ह से हम वहाँ नहीं गए थे।
जवाब देंहटाएंपिछले दिनोंमैं भी दो तीन दिनों के लिये वहां गया था, मगर रोप वे के बारे में पता नहीं चला. अभी फ़िर से पिछले हफ़्ते एक दिन के लिये गया तो सुबह ही व्यावसायिक काम हो गया था. बाद में पता चला रोप वे के बरे में, इसलिये सिर्फ़ नये माल में जाकर गाडी चढ गया रात को.
जवाब देंहटाएंTruly mesmerizing! Loved the one with the blue hues.
जवाब देंहटाएंजहाँ मनीष भाई नहीं गये वहाँ मार्च में हम चले जायेंगे।
जवाब देंहटाएंउदयपुर देखने का मौका लगा। अच्छे से देखा,गर्मी के दिनों में सिटी पैलेस में खिड़कियों से पिछौला की ठंडी हवा बड़ा सुकून देती थी।
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