गुरुवार, 20 अक्तूबर 2011

रंगीलो राजस्थान: राँची से उदयपुर तक का सफ़र !

अपनी उम्र के बच्चों के विपरीत स्कूल में इतिहास और भूगोल मेरा प्रिय विषय रहे थे। अक्सर लोग इतिहास के नाम से इसलिए घबराते थे कि एक तो इस विषय में महत्त्वपूर्ण तारीख़ों को याद रखने के लिए अच्छी खासी क़वायद करनी पड़ती थी और दूसरे इम्तिहान में चाहे जितना जोर लगाओ, सारे सवालों का हल पूरा करने के पहले कॉपी भी छिन जाती थी। हाथ की उँगलियों में जो दर्द कई दिनों तक नुमाया रहता था, सो अलग। ऐसा नहीं कि मुझे इन सब बातों से चिढ़ नहीं होती थी। पर परीक्षा के माहौल से गुजरने और तारीखों के जंजालों से इतर भी मुझे ये विषय बड़ा प्रिय लगता था। शायद इसमें मेरी शिक्षिका का योगदान हो या अपने अतीत में झाँकने की मेरी स्वभावगत उत्सुकता, पर ये प्रेम कॉलेज के बाद तकनीकी क्षेत्र में जाने के बाद भी बना रहा।

और भारत के किसी एक प्रदेश में आज भी अगर ऐतिहासिक इमारतें उसी बुलंदी से खड़ी हैं तो वो है राजस्थान। इसी लिए मेरे घुमक्कड़ी मन में राजस्थान जाने के लिए काफ़ी उत्साह था। ऐसा नहीं कि इससे पहले मैंने राजस्थान की धरती पर कदम नहीं रखा था। एक बार कार्यालय के काम से और एक बार घूमने के लिए जयपुर जा चुका था। पर जयपुर देख कर राजस्थान की मिट्टी, वहाँ के रहन सहन , बोल चाल को महसूस कर पाना मुमकिन नहीं है।

दो साल पहले काफी कोशिशों के बाद भी ऐन वक़्त पर वहाँ जाने का कार्यक्रम रद्द करना पड़ा था पर पिछले साल दीपावली के तुरंत बाद नवंबर में जब राजस्थान जाने का कार्यक्रम बनाना शुरु किया तो दिल्ली के बाद अपना पहला पड़ाव मैंने उदयपुर रखा। ग्यारह दिनों के इस कार्यक्रम में उदयपुर, को केंद्र बनाकर हम चित्तौड़गढ़ , रनकपुर और कुंभलगढ़ गए और फिर माउंट आबू होते हुए, जोधपुर, जैसलमेर और बीकानेर की तरफ निकल गए। अगर मानचित्र में देखें तो मेवाड़ से लेकर मारवाड़ तक के दक्षिण पश्चिमी राजस्थान को हमने अपनी इस यात्रा में देखने की कोशिश की।

ग्यारह तारीख के दिन हम हवाई यात्रा कर शाम पाँच बजे दिल्ली पहुँचे। राँची से दिल्ली तक तेज धूप में चमकते बादलों के साथ हमारा सामना होता रहा ।


हमारे परिवार का आरक्षण चेतक एक्सप्रेस में था जो कि उत्तर पश्चिमी दिल्ली के सराय रोहिल्ला स्टेशन से खुलती है। दिल्ली से कई यात्राएँ करने के बावजूद इस स्टेशन पर मैं पहले कभी नहीं गया था। मेरे टैक्सीवाले का भी शायद यही अनुभव था क्यूंकि स्टेशन तक पहुँचने वाली तंग रोड और गलियों में वो भी रास्ता भूल गया। वैसे भी सराय रोहिल्ला बाहर से स्टेशन कम सराय ज्यादा लगता है और क्यूँ ना लगे आख़िर मुगलों के जमाने में इस जगह का उपयोग सराय की तरह ही होता था। राजस्थान और हरियाणा की ओर निकलने वाली काफी गाड़ियाँ इस सुनसान की हद तक शांत स्टेशन से शुरु होती हैं।

रात्रि के निर्धारित समय पर चेतक एक्सप्रेस उदयपुर की ओर निकल पड़ी। सुबह जब आँख खुली तो देखा कि बाहर हल्की बूँदा बाँदी हो रही है। ट्रेन रावली की पहाड़ियों के सामानांतर भाग रही थी। सुबह नौ बजे जब हम उदयपुर में पहुँचे तो आसमान साफ हो चुका था। स्टेशन से बाहर निकलने के साथ ही हमारी नाम की तख्ती लिए, सफेद वस्त्र और कान में बाली पहने एक मोटा सा शख्स दिखाई पड़ा। पूछने पर पता चला कि उसका नाम दातार सिंह है। सामान रखवाते ही उसने कहा कि आज तो आप पूरा दिन आराम ही करोगे। हमारा माथा ठनका कि हमें इसने क्या विदेशी सैलानी समझ रखा है। ख़ैर अगले ग्यारह दिन तक साथ रहकर दातार सिंह समझ गया कि अबकि देशी घुमक्कड़ों से पाला पड़ा है।

दीपावली के बाद की छुट्टियाँ गुजरात में चल रही थीं इसलिए गुजरात से सटे राजस्थान के इस इलाके में पर्यटकों की भारी भीड़ थी। दो तीन घंटे आराम करने के बाद हमने उदयपुर के सिटी पैलेस जाने का मन बनाया। सिटी पैलेस के घुमावदार रास्ते पर पर्यटकों की गाड़ियों का लंबा जाम लगा था। गाड़ी को बीच में ही छोड़कर हम लोग ऊंचे नीचे मगर छोटे रास्ते से महल के टिकट घर तक पहुँचे। वहाँ उम्मीद से भी ज्यादा भीड़ थी और टिकट के लिए पचास सौ लोगों की लंबी कतार लगी हुई थी। एक परिचित के सौजन्य से हम लोग किसी तरह सिटी पैलेस के अंदर पहुँचे..

राजस्थान भ्रमण से जुड़ी इस श्रृंखला की अगली कड़ी में आपको मैं ले चलूँगा महाराज उदय सिंह के बनाए हुए सिटी पैलेस के अंदर..
इस श्रृंखला में अब तक

16 टिप्‍पणियां:

  1. अपने शहर के बारे में दूसरे की कलम से पढना बड़ा रोमांचक होता है। आगे की कडी का इंतजार रहेगा।

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  2. राजस्थान पहले आपकी नजरों से देख लें फिर कभी हो भी आएंगे :)

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  3. Sounds like a great trip. I went to Udaipur very long back but I still remember the city palace quite well.

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  4. आज ही छै भागों में एक अन्य ब्लॉग पर राजस्थान की यात्रा की थी. परन्तु वह बात नहीं बनी क्योंकि भाषा का प्रश्न था. अच्छा लगा आपके इस प्रथम पोस्ट को पढ़ कर. हाँ उस ब्लॉग का फोटो कवरेज अच्छा लगा. आप भी देख सकते हैं. http://magictravels.blogspot.com

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  5. Magiceye बेहतरीन फोटोग्राफर हैं। शुक्रिया लिंक देने के लिए सुब्रमनियन जी। मुझे पूरी यात्रा में चित्र खींचने में सबसे ज्यादा संतुष्टि जैसलमेर में हुई। वहाँ की हवेलियाँ और सुनहरा किला देखते ही बनता है।

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  6. अजित गुप्ता सही कहा आपने। अपने शहर के बारे में दूसरों से सुनना वाकई उत्सुकता जगाने वाला होता है।

    अभिषेक इतनी कंजूसी ठीक नहीं।

    मृदुला हाँ ये एक आनंददायक यात्रा रही। खासकर उदयपुर और जैसलमेर की बात ही निराली थी।

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  7. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    --
    यहाँ पर ब्रॉडबैंड की कोई केबिल खराब हो गई है इसलिए नेट की स्पीड बहत स्लो है।
    सुना है बैंगलौर से केबिल लेकर तकनीनिशियन आयेंगे तभी नेट सही चलेगा।
    तब तक जितने ब्लॉग खुलेंगे उन पर तो धीरे-धीरे जाऊँगा ही!

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  8. आगे की यात्रा का इंतज़ार है

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  9. the first travel blog i encountered in Hindi...its very much appreciated...the next Rahul Shankrityanan in making...

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  10. मनीष कुमार जी मैं शालिनी पाण्डेय आपको अवगत कराना चाहती हूँ कि मेरा एक रिसर्च प्रोजकट चल रहा है 'हिन्दी के यात्रा-वृतान्त प्रकृति और प्रदेय', जिसके एक अध्याय में हम ब्लॉगों के भी यात्रा-वृत्ता का शामिल कर रहे हैं। इसके एक हेडिंग ब्लॉग पर स्थित यात्रा-वृतन्त, उनके लेखक परिचय और समीक्षण में हम आपको भी शामिल करना चाहते हैं। आपका नाम हमें श्री समीरलाल जी ने सुझाया। हम उनके आभारी हैं। वाकई बिना आपका सन्दर्भ दिए यात्रा-वृत्तान्तों का परिचय अधूरा ही रहता। हमें आपसे अपेक्षा है कि आप विस्तृत रूप से अपने परिचय तथा अपने सभी यात्रा-वृत्तान्तों का नाम सहित URL हमें हमारे email id- pandey.shalini9@gmail.com पर मेल कर देंगे तो अति कृपा होगी। इसे मैं जिस रूप में अपने शोध में ले रही हूँ उसे आप मेंरे ब्लॉग 'हिन्दी भाषा और साहित्य' http://shalinikikalamse.blogspot.com/2011/10/blog-post.html पर देख सकते हें। सादर-
    -शालिनी पाण्डेय

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  11. मनीष जी आपके पद चिह्नों पर पुनः गुजरने का प्लान मैं भी कर रहा हूँ, अतः श्रृंखला शीघ्र आगे बढ़ाएं. :-)

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  12. बहुत बढिया। इस बार समुद्र तट को छोडकर पहाडियों में।
    कभी हिमालय में दो-चार दिन की पैदल यात्रा कीजिये। आपके स्टाइल में पढकर बडी खुशी मिलेगी।

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  13. शास्त्रीजी, अनुराग जी, विनीता, राहुल, मुनीश पोस्ट पसंद करने के लिए धन्यवाद।
    शालिनी आपको वांछित जानकारी मेल कर दी है.
    नीरज अभी तो पिछले महिने ही नैनीताल, बिनसर और कौसानी की सैर कर के लौटे हैं।
    अभिषेक क्या करूँ गाड़ी आगे बढ़ाने के लिए जो समय चाहिए वो नहीं मिल पाता।

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  14. भाई आपकी लेखनी का मैं शुरू से ही कायल रहा हूँ.यानी जब से आपके ब्लॉग पर निगाह पडी.यह साल भर पहले की बात है.आपके शहर में मैं इतने ही दिनों से हूँ.ब्लॉग मीट आनन् फानन में हुई.बावजूद मैंने आपके बारे में कई लोगों से कहा क़ि उन्हें भी खबर की जाए.लेकिन यह संभव न हो सका.अपन मुआफी चाहते हैं.मेरा न है 8083557257 आप ज़रूर अपना न दें.

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