चाँदीपुर के समुद्र तट पर शाम बिताने के बाद कुछ देर विश्राम कर हम फिर पेट पूजा के लिए नीचे आए। शाम को समुद्र की तरफ बने लॉन में ही गोल टेबुल व कुर्सियाँ लगा दी जाती हैं। बादल भरी रात होने की वज़ह से समुद्र एक बारगी फिर दूर चला गया था। दूर अँधेरे में कुछ दिख भी नहीं रहा था। फिर भी समुद्र के हर रूप में देखने की इच्छा हमें भोजन के पश्चात एक बार फिर हम समुद्र की ओर बने वॉच टावर की ओर ले गई।
शांत समुद्र को हम यूँ ही बहुत देर निहारते रहे कि अचानक हमें समुद्र के स्याह जल के बीच थोरी थोड़ी दूर पर सफेद आकृतियाँ दिखाई पड़ीं। आकृति दूर से इतनी छोटी दिखाई दे रही थी कि वो क्या है ये किसी की समझ में नहीं आ रहा था। सफेद रंग की वो आकृति पल भर में अपनी जगहें यूँ बदल रही थी मानों उसकी सतह पर बड़ी तेजी से तैर रही हो। इतने कम पानी में इतनी तेजी से तैरती मछली का अनुमान हमारे गले नहीं उतर रहा था। इसलिए रात के अँधेरे में समूह के सबसे युवा सदस्य को तहकीकात करने के लिए नीचे भेजा गया। थोड़ी देर बाद उसने ऊपर आकर कर उसने रहस्य खोला कि वो सफेद आकृति कोई मछली नहीं पर पानी की सतह के समानांतर उड़ती छोटी सफेद चिड़िया है जो कीड़े मकोड़ों और नन्ही मछलियों को अपना शिकार बना रही है।
थोड़ी दूर और समय बिताने के बाद हम वापस चले गए इस कार्यक्रम के साथ की भोर होते ही फिर समुद्र में वॉक पर निकल पड़ना है। सुबग पाँच बजे जब नींद खुली तो तेज हवा चलने की आवाज़ आई। बालकोनी का दरवाजा खोला तो पाया कि तेज हवा के साथ मूसलाधार बारिश भी हो रही है। घंटे भर की बरिश के बाद बादल तितर बितर हो गए।
सात बजते बजते हल्की सी धूप भी निकल आई। बारिश से धुली ये वाटिका कुछ और हरी भरी महसूस हो रही थी।पाँच दस मिनट के भीतर ही हम सुबह की सैर पर निकल आए। सबुह हमने समुद्र में पिछली शाम की तरह अंदर ना जा कर उसके समानांतर टहलने का निश्चय किया। अगर गूगल मैप से देखें तो हमारी सुबह की सैर का इलाका कुछ यूँ दिखाई पड़ेगा।
पहले हम अपने अतिथि गृह सागर दर्शन के दाँयी ओर मुड़े। इस इलाके में DRDO के ही कुछ और पुराने बने गेस्ट हाउस हैं। समुद्र के कटाव को रोकने के लिए पूरे तट पर पत्थरों से बाँध बनाया गया है जिसके पीछे नारियल के वृक्षों की कतार दूर तक दिखाई देती है।
करीब तीन चार सौ मीटर बढ़ने के बाद एक बार फिर से बादल घिर आए तो हमने दूसरी दिशा में चलना शुरु किया। दरअसल चाँदीपुर का मुख्य समुद्र तट इसी दिशा में है। बादलों के आ जाने से समुद्र में टहलना और अच्छा लग रहा था। तट के किनारे पानी लगभग स्थिर था इसलिए हम हल्की लहरों वाले हिस्से में बहते जल में चलने लगे। देखिए दोनों जल राशियाँ कितनी पृथक लग रही हैं...
सागर दर्शन गेस्ट हाउस से चलते चलते हम अब PWD के गेस्ट हाउस तक आ चुके थे। चाँदीपुर तट का बालू वाला किनारा भी पार्श्व में नज़र आने लगा था। इसी तट के आस पास ही यहाँ के होटल अवस्थित हैं। ऊपर चित्र में मेरे पीछे जो बिन्दुनुमा काली आकृतियाँ दिख रही हैं वो मुख्य तट पर आए सैलानियों की हैं।
हल्के नीले सफेद बादलों ने अपना रंग बदलना शुरु कर दिया था। दूर से आते बादलों की कालिमा बारिश के आने का संकेत दे रही थी। हाथों में कैमरे होने की वजह से हम बारिश में भींफने का खतरा नहीं उठा सकते थे सो हम वापस लौटने लगे।
आधे रास्ते पहुँचते पहुँचते बारिश की रिमझिम शुरु हो गई थी। कारे कारे बदरा किस तरह बारिश की फुहारों को छोड़ रहे थे वो नज़ारा भी देखने लायक था।
तट के बिल्कुल किनारे जहाँ से समुद्र गायब हो चुका था वहाँ ठोस रेत में पानी के कटाव से बड़ी मोहक आकृतियों का निर्माण हो गया था
सुबह की इस सैर तो हो गई पर अब तक हम समुद्र में छपाका नहीं लगा पाए थे। अब समुद्र में आएँ और उसके पानी से अठखेलियाँ ना की जाएँ तो फिर बात अधूरी रह जाएगी। बारह बजे तेज धूप में अंतिम बार हम फिर तट की ओर निकले। क्या किया इस बार हमने ये देखिए इस श्रृंखला की आखिरी कड़ी में..
इस श्रृंखला की सारी कड़ियाँ
दिलचस्प वर्णन और मनभावन चित्र...आनंद आ गया...
जवाब देंहटाएंनीरज
चित्रों के साथ सजा हुआ सुन्दर यात्रा संस्मरण!
जवाब देंहटाएंवाह क्या बात है. चित्रों ने जान डाल दी.
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा. रेत में ऐसी आकृतियाँ चिदंबरम के पास के पिचावरम मेंग्रोव के पास देखी थीं.
जवाब देंहटाएंचित्र बहुत ही आकर्षक हैं | आपके वर्णन ने मन मोह लिया, कभी जाना हुआ तो आपका ब्लॉग सहायता करेगा |
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