चाँदीपुर ओडीसा का एक बेहद खूबसूरत समुद्र तट है। दशकों पहले एक बार यहाँ जाना हुआ था और उस यात्रा में समुद्र के रातों रात गायब होने और फिर सुबह में वापस अवतरित होने की कहानी भी आप सब से साझा की थी। पर उस बार चाँदीपुर से समुद्रतट से हुई मुलाकात सुबह के उन चंद घंटों की ही थी और साथ में कैमरा भी नहीं था कि आपको समुद्र के बदलते रूप को प्रत्यक्ष दिखा पाता। पिछले साल जब उड़ीसा गया तो पारादीप के बंदरगाह से लौटते वक़्त बालासोर भी जाना हुआ।
ओडीसा के उत्तर पूर्वी हिस्से में स्थित इस जिले से चाँदीपुर मात्र पन्द्रह किमी दूर है। इसके तटीय जिले के पूर्व में बंगाल की खाड़ी और पश्चिम में मयूरभंज का इलाका आता है जबकि इसे उत्तरी सिरे पर बंगाल का मेदनीपुर जिला आ जाता है। बंगाल के सबसे लोकप्रिय समुद्र तट दीघा से बालासोर की दूरी लगभग सौ किमी की है। दीघा से बालासोर का समुद्रतट बेहद छिछला है। यानि आप समुद्र के अंदर मीलों चलते रहें पानी घुटनों से ऊपर नहीं जाएगा। चाँदीपुर के समुद्रतट की यही विशिष्टता इसे बाकी सभी समुद्र तटों से अलग कर देती है। वैसे चाँदीपुर मिसाइल प्रक्षेपण केंद्र के लिए भी मशहूर है। यह केंद्र यहाँ १९८९ में स्थापित किया गया था। भारत में बनी अधिकतर मिसाइल जैसे त्रिशूल, आकाश, नाग व हाल फिलहाल में जमीन से जमीन तक मार करने वाली मिसाइल पृथ्वी और अग्नि का प्रक्षेपण भी यहीं से किया गया था।
बालेश्वर से चाँदीपुर पहुँचते पहुँचते पौने पाँच बज चुके थे। इस बार चाँदीपुर में किसी होटल में ना ठहरकर हम डीआरडीओ के विश्रामगृह में ठहरे। ये गेस्ट हाउस समुद्र के ठीक किनारे बसा हुआ था। उद्यान को पार करिए और सामने समुद्र हाज़िर। वैसे प्रथम तल्ले की बालकोनी से भी समुद्र की गतिविधियाँ साफ दिखाई देती थीं। रूम में सामान रखकर हम लगभग पाँच बजे समुद्र की ओर चल पड़े। सूर्यास्त अभी नहीं हुआ था। पर सूरज बादलों की ओट में छुपा हुआ था। हमारे आने के पहले ही वहाँ बारिश भी हुई थी। चाँदीपूर में सूर्यास्त के पहले का समुद्र बेहद शांत होता है। जब तक सागर को चाँद ना दिखे उसका दिल हिलोरें लेने को मानता ही नहीं है। गेस्ट हाउस के वाच टॉवर से नीचे उतरकर हम नंगे पाँव समुद्र में चहलकदमी करने चल पड़े। पीछे दिख रहा है डी आर डी ओ का गेस्ट हाउस।
समुद्र के अंदर मैंने करीब दो सौ मीटर का फासला तय कर लिया था पर पानी का स्तर मेरे तलवों से भी ऊपर नहीं आया था।
सूर्यास्त के पहले एक हल्की सी रोशनी बादलों के बीच से आई तो मैंने कैमरे का रुख ऊपर की ओर मोड़ा।
अब तक समुद्र में चलते चलते हमें बीस मिनट हो चले थे। इस इलाके के समुद्र तट कि एक खास बात ये भी है कि यहाँ की सतह ठोस होती है और बालू बेहद महीन जिससे आपको समुद्र में चलने में जरा भी तकलीफ़ नहीं होती। गेस्ट हाउस से तकरीबन हम लोग एक डेढ़ किमी दूर थे पर हमने चलना जारी रखा।
डूबता सूरज आकाश को लाल नारंगी आभा से दीप्त किए दे रहा था। हमें समुद्र में चलते चलते पैंतीस मिनट हो चुके थे। दाएँ, बाएँ और सामने जहाँ तक नज़र जाती थी दूर दूर तक समुद्र का मटमैला पानी दिख रहा था। पीछे देखने पर गेस्ट हाउस पहले से और बौना प्रतीत हो रहा था। पानी का स्तर तलवों से बढ़ गया था पर दो किमी चलने के बाद भी घुटनों से नीचे था।
पर कुछ ही मिनटों में एकदम से अँधेरा हो गया। जो लहरें शांत दिख रही थीं उनमें एक हलचल सी दिखाई देने लगी। शायद उन्हें चाँद की झलक मिल चुकी थी। हम सब भी वापस गेस्ट हाउस की ओर लौटने लगे। इस इच्छा को मन में दबाए हुए कि अगली सुबह फिर तेरा रूप देखने लौंटेंगे।
इस श्रृंखला की सारी कड़ियाँ
Sea can be so soothing and such lovely colors!
जवाब देंहटाएंकमाल है ऐसा समुद्र तट जहाँ दो की.मी. अन्दर जाने के बावजूद भी पानी सिर्फ घुटनों तक ही आ पाया है...इंतज़ार है सुबह की सैर का...जल्दी करवाइए...
जवाब देंहटाएंनीरज
यहाँ तट पर आ धमकते लाल केकड़ों की फ़ौज मुझे भूलती नहीं!
जवाब देंहटाएंMridula : Absolutely
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी : अच्छा लगा जानकर
नीरज भाई : जरूर करवाते हैं
मिश्रा जी : यहाँ तो नहीं पर बगल के दीघा में लाल केकड़ों की फौज से भिड़ने का मौका मिला था।
अंतिम पंक्ति में एक सुधार. सुबह की जगह शाम कर लें. चांदीपुर समुद्र तट की विशेषता से अवगत हुए. आभार.
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