बुधवार, 15 जून 2011

आइए विचरण करें रामोजी फिल्म सिटी की 'एकदमे फिलमी' दुनिया में...

पिछले हफ्ते आपने 'मुसाफ़िर हूँ यारों' पर सैर की रामोजी फिल्म सिटी के मुगल गार्डन, फंडूस्तान और हवा महल की। पर फिल्म सिटी का जो असली आनंद है वो है यहाँ बने नकली सेटों को देखना और फिल्म निर्माण की बारीकियों का समझना। रामोजी में कार्यरत कर्मचारियों की बात पर यकीन किया जाए तो यहाँ बीस अंतरराष्ट्रीय और चालिस देशी फिल्में एक साथ बन सकती हैं।


हवा महल पर पहुँचने के ठीक पहले एक बस हमें इन भव्य फिल्म सेटों की सैर पर ले गई। फिल्म सिटी में कुछ बार बार प्रयुक्त होने वाले दृश्यों के लिए स्थायी सेट बने हैं और कुछ जरुरत के हिसाब से तुरत फुरत बना लिए जाते हैं। रास्ते में हमने स्ट्रकचरल फ्रेम से बने बने ये विशालकाए ढाँचे दिखे। गाइड ने पूछने पर बताया कि इन्हीं फ्रेमों पर बड़े बड़े सेट खड़े किए जाते हैं।

गाइड बड़ा मज़ेदार था। हर सेट को दिखाते समय वो ये भी तुरत बताता था कि यहाँ किस चर्चित हिंदी या दक्षिण भारतीय फिल्म की शूटिंग हुई है। अब ये इलाका मुस्लिम महल्लों की शूटिंग के लिए प्रयुक्त होता है।

ये आपको कहीं अपने शहर का भव्य इलाक़ा तो नज़र नहीं आ रहा। वैसे इन दीवारों की खूबसूरती पर मत जाइएगा। ये अंबुजा सीमेंट से नहीं बल्कि थर्मोकोल सरीखी सामग्री से बनी हैं। वैसे ऐसा भी नहीं कि इनमें घुसते ही ये भरभराकर गिर जाएँ।

वैसे आप तो जानते ही हैं कि अगर हमारी फिल्मों की नायिका इन भव्य इमारतों में रहेगी तो हमारे खस्ता हाल नायक को मस्तान स्टील शॉप और देवी इलेक्ट्रिकल जैसी दुकानों के ऊपर की खोली ही रहने को नसीब होगी। सो उसका भी इंतजाम है फिल्म सिटी में

याद कीजिए सत्तर और अस्सी के दशक की वो फिल्में जिनकी शुरुआत का पहला शॉट जेल की चारदीवारी को अपने कैमरे में क़ैद कर रहा होता था। थोड़ी चरमराहट के बाद मुख्य गेट खुलता था और बड़ी दाढ़ी, आँखों में आक्रोश लिये पटकथा के अनुरूप हमारा हीरो या विलेन बाहर निकलता था।

क्या आप कभी ये सोच सकते थे कि जिस जेल में उसने अपनी सज़ा के सार साल बिताये हैं वो चारदीवारी ना होकर एक ही दीवार रही हो। विश्वास नहीं होता तो नीचे देखिए..


हमारी फिल्मों में भाग दौड़ बहुत होती है। खासकर जब नायिका बिना बोले शहर छोड़ने की तैयारी कर चुकी होती है और नायक को अंतिम समय में इसकी जानकारी होती हो। नायक दौड़ता गिरता पड़ता स्टेशन पर पहुँचता है और उधर नायिका की गाड़ी खिसकने लगती है।
अब बार बार रेलवे स्टेशन और एयरपोर्ट की भीड़भाड़ में शूटिंग कैसे हो? ऐसे दृश्यों को फिल्माने के लिए रामोजी वालों ने ना केवल फिल्म सिटी में हैदराबाद रेलवे स्टेशन बना रखा है साथ में रेलगाड़ी के कुछ डिब्बे भी रख छोड़े हैं । फर्क सिर्फ इतना है कि इन डिब्बों के नीचे रबर के टॉयर हैं।

हवाई अड्डे के साथ एक पूरे हवाई जहाज का प्रारूप भी हैं यहाँ पर..

अब हवाई जहाज़ पर चढ़ा दिया तो उतरना तो विदेश में ही पड़ेगा ना। तो फिक्र काहे की। अगला शॉट इस हरी दूब की मखमली कालीन और अंग्रेजी स्थापत्य से बने इन मकानों के बीच ले लेते हैं..


कौन कहेगा कि ये किसी यूरोपीय देश की झांकी नहीं है..

ऐसे ही कुछ बेहतरीन सेटों का अवलोकन कर हम गुड्डे गुड़ियों के रंगीन संसार में घुसे। उसकी एक झलक देखिएगा इस श्रृंखला की अगली कड़ी में...

इस श्रृंखला की सारी कड़ियाँ

7 टिप्‍पणियां:

  1. इस पोस्ट के लिए बहुत इंतज़ार करवाया आपने...कोई बात नहीं खूबसूरत चित्रों से इंतज़ार की पीड़ा कम हो गयी...आनंद आ रहा है इस सैर में...

    नीरज

    जवाब देंहटाएं
  2. मैंने इस फिल्म सिटी के बारे में बहुत सुना था, आज दर्शन हो गए। धन्यवाद ......

    आपका ब्लॉग बहुत सुंदर है।

    जवाब देंहटाएं
  3. नीरज भाई नौकरी के साथ साथ दो दो ब्लॉगों की खिवैया में अंतराल तो आ ही जाता है। फिर भी आप साथ बने हुए हैं इस बात की प्रसन्नता है।

    सव्यसाची जी आपको ब्लॉग अच्छा लगा जानकर खुशी हुई

    जवाब देंहटाएं
  4. एक अलग ही दुनिया फिल्म वालों की। जो चाहा, जैसा चाहा बना दिया।

    जवाब देंहटाएं
  5. मनीष जी, फ़िल्मी दुनिया के नजारे ही गजब के हैं, रामोजी ने एक और स्टुडियो विशाखापत्तनम के भीमली बीच के पास की पहाड़ी पर बनाया है। मैं गया था तब निर्माण चल रहा था।

    एक मुसाफ़िर यहां भी इंतजार कर रहा है।

    जवाब देंहटाएं
  6. नीरज जाटः सही कहा आपने !
    ललित शर्मा जी अच्छा Vizag गये अर्सा हो गया। इस पोस्ट को अपनी चर्च में शामिल करने के लिए धन्यवाग !

    जवाब देंहटाएं