दिसंबर की किसी सुबह का ख्याल आते ही आपका मन में कड़कड़ाती ठंड की याद आना स्वाभाविक है जिसमें रजाई से बाहर ना निकलने का आलस्य भी समाहित रहता है। पर समुद्र के पास वैसी ठंड नहीं होती। पर ये भी नहीं कि आप सूर्य उगने के पहले उठें और बिना किसी ऊनी कपड़े के चलते बने। पंद्रह दिसंबर को हम सभी को वापस लौटना था और अभी तक मैंने सुबह का सूर्योदय नहीं देखा। फिर नए दीघा के आस पास के समुद्र तट में तफ़रीह की इच्छा भी जोर मार रही थी। नए दीघा से बाँयी ओर का रास्ता पुराने दीघा तक ले जाता है। पर ये रास्ता ना तो साफ है और ना ही शहरीकरण से अछूता। दाँयी ओर का रास्ता दीघा से बाहर को जाता है।
सुबह छः बजे उठ कर स्वेटर डाल हम उसी रास्ते पर निकल लिए। हम लोगों को पता नहीं था कि ये रास्ता हमें कहाँ ले जाएगा ? बच्चन की पंक्तियाँ याद आने लगीं
पूर्व चलने के बटोही
बाट की पहचान कर ले
हम दो थे इसलिए इन पंक्तियाँ को अनसुना करते हुए हम अपने अनजाने गन्तव्य की ओर बढ़ चले..
नए दीघा के समुद्र तट पर पहुँचे तो ऐसा लगा कि दीघा के सारे पर्यटक ही हमसे पहले उठ कर आ पहुँचे हों। लोगों की लंबी कतार सूर्य देव की प्रतीक्षा में आसमान की ओर अपलक निहार रही थी पर सूर्य महोदय बादलों के घर चाय पीने में तल्लीन थे। आखिर जाड़े के दिनों में आलस्य क्या सिर्फ मानव जाति तक ही सीमित रहता होगा? नए दीघा में भीड़ के साथ समुद्र तट भी उतना साफ नहीं रहता इसलिए हमलोग तट के समानांतर दीघा के बाहर जाने वाले रास्ते में आगे बढ़ गए।
कुछ ही देर में हमें मछुआरों की एक टोली मिली जो सुबह में पकड़ी गई मछलियों को अपने विक्रेताओ तक पहुँचाने में तल्लीन थी। कोई झोलों में मछलियाँ भर रहा था तो कोई प्लास्टिक की ट्रेज में। प्लास्टिक ट्रेज मोटरसाइकिल पर लाद कर विक्रेता फर्राटे से अपने ठिकानों पर जा रहे थे। ऍसी सुविधा बंगाल की खाड़ी से लगे बंगाल और उड़ीसा के तटों में ही देखने को मिलती है।
मछुआरों को छोड़ कर आगे बढे ही थे कि सूर्य देव के दर्शन हो गए।
हम लोगों ने बारी बारी से सूर्य को अपनी मुट्ठियों में क़ैद करने की कोशिश की। जो नतीजा आया वो सामने है।
अब समुद्र तट बिल्कुल सुनसान हो चला था। दाँयी ओर अचानक ही पेड़ों की कतार शुरु हो गई थी। इस सन्नाटे में एक मन हुआ कि वापस लौट चलें पर समुद्र तट की ये शांति अंदर ही अंदर मन को प्रफुल्लित भी कर रही थी। हम इसी उहापोह में थे कि दूर तट पर नाव की कतारें दिखाई पड़ीं। हम एक बार फिर मछुआरों की किसी बस्ती के पास पहुँच रहे थे। नावों के थोड़े और पास आने पर हमें सब जाना पहचाना लगने लगा।
अरे कल दिन में यहीं तो हम आए थे यानि हम पैदल चलते हुए उदयपुर के उस तट पर पहुँच चुके थे जहाँ मैंने बच्चों के साथ समुद्र में डुबकी लगाई थी। नए दीघा से पैदल चल कर उदयपुर के तट पर पहुँचने में हमें करीब पचास मिनट लगे थे।
अब और आगे बढ़ने से हम कहाँ पहुंचेगे ये उत्सुकता मन में जग चुकी थी। आगे बढ़ने का फैसला लेने में हमें तब आसानी हुई जब एक अधेड़ युगल को और आगे हमने टहलते जाते देखा। हमने वापस आठ बजे होटल तक पहुँचने का लक्ष्य रखा था इसलिए अपनी गति बढ़ा दी। करीब आधे घंटे हम समुद्र और किनारे के पेड़ों की कतारों के बीच के चौरस तट पर चलते रहे।
हम दोनों खुशी से चिल्लाए कि ये तो तालसरी है यानि हम अब उड़ीसा की सीमा के अंदर थे। जिस नदी को हमने पार किया था वो समुद्र की उस धारा के पीछे दिख रही थी। यानि दस बारह किमी के रोड के रास्ते से पिछले दिन हम जिस तालसरी तक पहुँचे थे उसे पैदल हमने डेढ़ घंटे में ही निबटा दिया था।
तालसरी के पास समुद्र धाराओं के दो भागों में बँटने से उत्पन्न हुआ दृश्य बड़ा ही मनमोहक था। नदी की लाई मिट्टी और रेत के होने से वहाँ एक दुबला पतला पेड़ भी खड़ा हो गया था। तालसरी के मुहाने के कुछ दूर पहले से ही हम वापस लौटने लगे। लौटते समय जहाँ मेरा मित्र शंखों और सीपों को चुनने में व्यस्त हो गया वहीं मैंने समुद्र तट के किनारे चलने वाले उस विरल जंगल के बीच से अपनी राह बना ली।
नए दीघा तक जब हम वापस पहुँचे साढ़े आठ बजने को थे। तट पर भीड़ और बढ़ गई थी। घोड़े वाले घोड़ों को सुसज्जित कर घुमाने को तैयार थे।
हमारी अन्तर्राज्यीय मार्निंग वॉक समाप्त हो चुकी थी पर ये वाक़या मुझे वर्षों याद रहने वाला था।
दो घंटे बाद हम अपने समूह के सदस्यों को फिर उसी रास्ते पर ले गए। इस बार नहाने के लिए हमने उदयपुर और नए दीघा के बीच का समुद्र तट चुना। घंटे दो घंटे हम सभी ने एक बार फिर जम कर समुद्र में स्नान किया। ये स्नान हमारी दीघा यात्रा का पटाक्षेप भी था।
आशा है दीघा के इस सफ़र में आपको भी आनंद आया होगा। मेरी आपको यही सलाह है कि जब भी आप दीघा जाएँ नए दीघा से पुराने दीघा का समुद्र तट छोड़कर मंदारमणि, शंकरपुर उदयपुर के सुंदर और साफ समुद्र तटों पर स्नान करें। इससे यात्रा का आनंद और बढ़ जाएगा। इसी वज़ह से दीघा की हमारी ये दूसरी यात्रा पहली यात्रा की अपेक्षा ज्यादा आनंददायक रही।
इस श्रृंखला की सारी कड़ियाँ
Those slender tress with sun shining through looks gorgeous.
जवाब देंहटाएंआपके साथ इस यात्रा में हमें भी कम आनंद नहीं आया...इसी तरह घुमाते रहिये...
जवाब देंहटाएंनीरज
जीवंत यात्रा वृतांत.
जवाब देंहटाएंvery wonderful memory, please continue ur travelogue
जवाब देंहटाएंमधुरम मधुरम
जवाब देंहटाएंfrom pictures I thought it was Naogaon in Maharashtra.
जवाब देंहटाएंWriting in Hindi has its own charm. :)
चित्र और यात्रा वृतांत दोनो ही अच्छे लगे ।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया इस यात्रा में बने रहने के लिए ! अगला सफ़र होगा भारत के अभियंताओं द्वारा बनाए गए एक खूबसूरत बाँध का !
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