इधर पिछले हफ्ते पुणे जाना हुआ। जाते वक्त मेरे विमान के पुणे पहुँचने का समय आधी रात में था। इस लिए आसमान से पुणे की जगमगाती आभा तो दिखी पर उसके पीछे का शहर टिमटिमाते कुंकुमों की रोशनी में छुपा ही रह गया। अगला दिन एक सेमिनार में शिरकत करने में बीता। चाय पीने के लिए जब पहला विराम हुआ तो वहाँ से सामने ही पुणे का मनोरम सा दृश्य नज़र आ रहा था।
पार्श्व में पश्चिमी घाट की पहाड़ियाँ और उनके आगे फैला हुआ शहर अभी तक हरियाली को यहाँ वहाँ अपने में समेटे हुए है। बाहर मानसूनी बादल ठंडी हवाओं की सेना ले कर पूरे शहर का मुस्तैदी से मुआयना कर रहे थे।
विमान से दिल्ली लौटते वक्त भारत के इस आठवें सबसे बड़े शहर पर उन्हीं मानसूनी बादलों का साया था और खिड़की के बाहर का दृश्य बड़ा ही मनमोहक लग रहा था। सोचा आपके भी क्यूँ ना इस छटा के दर्शन करवाता चलूँ..
डर यही है कि बड़ी बड़ी इमारतों के बीच इन खूबसूरत हरे भरे हिस्सों का आकार छोटा होते होते खत्म ना हो जाए जैसा कि दिल्ली में हुआ है। नई दिल्ली और दिल्ली रिज का इलाका छोड़ दें तो ऊपर से दिल्ली कंक्रीट के जंगलों से भरी बेदिल दिल्ली की तरह ही लगती है। खैर दिल्ली के बारे में बाद में बात करते हैं।
समुद्र तल से 560 मीटर ऊंचाई पर बसे इस शहर के बीचों बीच मुला व मुठा नदियाँ का प्रवाह होता है। (नीचे चित्र में देखें।) पर वहाँ के समाचार पत्रों में पढ़ा कि वहाँ के उद्योग प्रदूषित सीवेज का एक बड़ा हिस्सा इन नदियों में छोड़ रहे हैं। अगर पुणेवासियों ने मिलकर इसके खिलाफ़ प्रयास नहीं किए तो वो अपनी इन प्राकृतिक धरोहरों का वही हाल होता देखेंगे जो दिल्ली में यमुना का हुआ है।
पुणे की इस हरियाली का रसास्वादन कर ही रहे थे कि बादलों के काफ़िले ने हमारे विमान को घेर लिया।
एक घंटे बाद जब विमान से फिर नीचे के दृश्य दिखने लगे तो परिदृश्य एकदम भिन्न था। दिल्ली के पास जो पहुँच गए थे। कैसी दिखी ऊपर से आपकी दिल्ली ये जानने के लिए इंतज़ार कीजिए अगली पोस्ट का !
बहुत सुन्दर..
जवाब देंहटाएंबहुत ही मनोरम. पुणें किसी समय सेवानिवृत्ति के बाद बसने योग्य शहर मानी जाती थी. परन्तु अब यह शहर मुंबई से भी महँगी है. आभार.
जवाब देंहटाएंपुणे में बादल और बादलों से निकले तो दिल्ली। यानी पुणे से दिल्ली तक बादल ही छाये रहे। लेकिन इधर बरस क्यों नहीं रहे?
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी तसवीरें , बहुत मेहनत से ली है
जवाब देंहटाएंपुणे मात्र साथ की.मी. दूर ही तो है हमारा हरा भरा खोपोली...अगली बार ध्यान रखियेगा....
जवाब देंहटाएंनीरज
हम तो इन्हीं बादलों से घिरे बैठे हैं आपने हमें याद ही नहीं किया :)
जवाब देंहटाएंनीरज जाट भाया एक घंटे में छः सौ किमी की दूरी बदलने से क्या नहीं बदल जाएगा। आजकल तो एक दो किमी में ही एक जगह बारिश होति है और दूसरी जगह नहीं।
जवाब देंहटाएंनीरज भाई चाय की चुस्कियों के बीच पहाड़ों की ओर देखते ही ध्यान आया कि उसके उस ओर नीरज जी अपने आलीशान कक्ष में काम के साथ प्रकृति की सुंदरता का आनंद भी उठा रहे होंगे। पर क्या करें तीस घंटों के प्रवास में कोई गुंजाइश ही नहीं थी।
अभिषेक इस बलिया वाले के बारे में मेरे मन में ध्यान रहता हे कि ये तो विदेश में ही होगा। सच बिल्कुल ध्यान से उतर गया कि तुम वहाँ हो। तुमसे तो मुलाकात शायद हो ही जाती। पर मैंने जी टाक और फेसबुक पर स्टेटस मेसेज चार दिन पहले से ही चिपका रखा था कि मैं पुणे बाइस को रहूँगा. लगता है तुम भी आनलाइन नहीं हुए तब। चलो फिर कभी।
good ! v. good infact !
जवाब देंहटाएंबहुत मनोरम दृश्य .. कमाल की फोटोग्राफी है !!
जवाब देंहटाएंbeautiful pics
जवाब देंहटाएंseems you enjoyed pune trip
सुन्दर चित्र. धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंहाँ ऑनलाइन तो नहीं था बहुत दिनों से वर्ना पता चला होता !
जवाब देंहटाएंऔर अब मैं पुणे छोड़ आया.... खैर मुलाकात तो होगी ही कभी इस छोटी सी दुनिया में :)
बहुत सुन्दर तरह से आपने पुणे कि सैर करा दी !
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