सुबह सुबह हम कोट्टायम से त्रिवेंद्रम जाने वाले रास्ते की ओर चल पड़े। केरल के शहरों और कस्बों को पार करने में एक बात बड़ी अच्छी लगती है और वो है अलग अलग धर्मों के लोगों का शांतिपूर्ण सहअस्तित्व। केरल की आबादी पर गौर करें तो २००१ की जनगणना के हिसाब से केरल में ५६ प्रतिशत हिन्दू, २५ प्रतिशत मुसलमान और १९ प्रतिशत ईसाई निवास करते हैं। पूरे रास्ते में एक से एक भव्य चर्च, मंदिर और मस्जिद दिखते रहे। दिन में जब हम कोल्लम में एक भोजनालय में गए तो कैश काउंटर के ठीक ऊपर ईसा मसीह, गणेश और मस्जिद की एक ही फोटो फ्रेम में ये तसवीर दिखी। देख कर मन खुश हुआ और दिल में ये भाव आया कि काश ये जज़्बा सारे देश में बना रहता!
कोट्टायम से कायामकुलम (Kayamkulam) होते हुए हम राष्ट्रीय राजमार्ग NH47 से जा मिले। हमें उम्मीद थी की भारत के दक्षिणी पश्चिमी समुद्र तट के किनारे किनारे चलने वाले इस रास्ते में सड़क के एक ओर हमें समुद्र के दर्शन जरूर होते रहेंगे। पर कोल्लम पहले का (Quilon) को छोड़कर समुद्र बिना दिखे करीब करीब चलता रहा। रास्ता काफी व्यस्त था। अपने इस सफर पर अलसायी आँखों से झपकी
लेनी शुरु ही की थी कि रंगों की इस छटा ने मेरी तंद्रा तोड़ दी। दक्षिण भारत में चटक पीला रंग खूब चलता है। हाल में धोनी के धुरंधरों को चेन्नई वाली टीम में तो आपने देखा ही होगा। पर हमने धर्मावलंबियों की लंबी कतारें भी इसी रंग से रँगी देखीं।
केरल का तटीय इलाका बाकी हिस्सों से अपेक्षाकृत धनी है। और इस धनाढ़यता का असर किसी एक वर्ग विशेष पर ना होकर पूरे समाज में फैला दिखता है। पलक्कड़ से एरनाकुलम की ट्रेन यात्रा और कोट्टायम से त्रिवेंद्रन की सड़क यात्रा में एक बात स्पष्ट दिखती है वो ये कि कोई बाहरी व्यक्ति ये नहीं बता सकेगा कि कब कोई गाँव खत्म होता है और शहर शुरु। उत्तर भारत के हिदी हर्टलैंड की तरह ना तो गाँवों में बिजली की अनुपलब्धता नज़र आती है और ना ही कच्चे पक्के मकानों में विभेद।
त्रिवेंद्रम या अभी के तिरुअनंतपुरम में बिना घुसे हम कोवलम के रास्ते निकल गए।
हमारा रहने का अड्डा मुख्य बीच के पास ही था। यहाँ की बुकिंग पहले की। धूप बेहद कड़ी थी पर समुद्र को पास से देखने की उत्कंठा भी थी। करीब साढ़े तीन बजे हम सब बीच की ओर चल पड़े। हमारे होटल से बीच तक पहुँचने के लिए करीब ५० मीटर नीचे की ओर उतरना पड़ा और ये बात वापसी में बेहद खली। बीच पर डेढ़ दो घंटे तक मस्ती की गई। लहरों के साथ कूदते फाँदते समय कैसे बीता पता ही नहीं चला। कोवलम के इस समुद्री तट के बारे में अगली पोस्ट पर चर्चा होती रहेगी।
शाम को हम फिर दुबारा रात्रि भोज के लिए समुद्री तट की ओर बढ़े । समुद्र के किनारे भोजनालय तो कई थे पर उनमें किसी में कोई भारतीय बैठा नहीं दिखाई दिया। दूसरी अचरज की बात ये दिखी कि विदेशियों की भीड़ तो पूरी थी पर उनमें से इक्का दुक्का को छोड़ शायद ही कोई खाता दिखाई दिया।
इस बात का मर्म तब हमें समझ आया जब हम खाने के लिए एक अच्छे खासे सो कॉल्ड पंजाबी ढ़ाबे में घुसे। आर्डर लेने के बीस पचीस मिनट बाद भी जब कोई पानी तक देने नहीं आया तो हमने पूछा कि भाई ये माज़रा क्या है।
"..उत्तर मिला कि आप क्यू (Queue) में हैं। यहाँ हम लोग एक समय में एक ही टेबुल के दिए गए आर्डर को बनाते हैं. एक बनाना खत्म होगा फिर दूसरा शुरु करेंगे। अभी चौथे का नंबर चल रहा है और आपका नंबर सातवाँ है.... "
हम अपने आप को मन ही मन कोसते हुए वहाँ से बिना खाए निकल गए पर दूसरी जगह भी हालत वैसी ही निकली। नतीजा ये रहा कि नौ बजे के निकले हमें सवा ग्यारह बजे भोजन का स्वाद चखने को मिला। चलते-चलते कम से कम आप को ये तो दिखा ही दें कि क्या क्या था मेनू में :)
>इस श्रृंखला की सारी कड़ियाँ
- यादें केरल की : भाग 1 - कैसा रहा राँची से कोचीन का 2300 किमी लंबा रेल का सफ़र
- यादें केरल की : भाग 2 - कोचीन का अप्पम, मेरीन ड्राइव और भाषायी उलटफेर...
- यादें केरल की : भाग 3 - आइए सैर करें बहुदेशीय ऍतिहासिक विरासतों के शहर कोच्चि यानी कोचीन की...
- यादें केरल की : भाग 4 कोच्चि से मुन्नार - टेढ़े मेढ़े रास्ते और मन मोहते चाय बागान
- यादें केरल की : भाग 5- मुन्नार में बिताई केरल की सबसे खूबसूरत रात और सुबह
- यादें केरल की : भाग 6 - मुन्नार की मट्टुपेट्टी झील, मखमली हरी दूब के कालीन और किस्सा ठिठुराती रात का !
- यादें केरल की : भाग 7 - अलविदा मुन्नार ! चलो चलें थेक्कड़ी की ओर..
- यादें केरल की भाग 8 : थेक्कड़ी - अफरातरफी, बदइंतजामी से जब हुए हम जैसे आम पर्यटक बेहाल !
- यादें केरल की भाग 9 : पेरियार का जंगल भ्रमण, लिपटती जोंकें और सफ़र कोट्टायम तक का..
- यादें केरल की भाग 10 -आइए सैर करें बैकवाटर्स की : अनूठा ग्रामीण जीवन, हरे भरे धान के खेत और नारियल वृक्षों की बहार..
- यादें केरल की भाग 11 :कोट्टायम से कोवलम सफ़र NH 47 का..
- यादें केरल की भाग 12 : कोवलम का समुद्र तट, मछुआरे और अनिवार्यता धोती की
- यादें केरल की समापन किश्त : केरल में बीता अंतिम दिन राजा रवि वर्मा की अद्भुत चित्रकला के साथ !
Beautiful photographs.
जवाब देंहटाएंThat yellow procession for sure is eye catching.
जवाब देंहटाएं@ Meet : Thanks
जवाब देंहटाएं@ Mridula : Down south there is deep fascination for bright yellow colour.