इससे पहले रबर के जंगल हमने अंडमान में देखे थे तो वही दृश्य फिर आँखों के सामने घूम गया। थोड़ी ही दूर आगे बढ़े थे की रबर निकालने की प्रक्रिया सामने खुद ही दृष्टिगोचर हो गई। हमारे मलयाली ड्राइवर ने तुरत गाड़ी रोकी ताकि कैमरे से हम चित्र उतार सकें। जैसा कि आप देख सकते हैं, रबड़ निकालने के लिए पेड़ के तने में घुमावदार चीरा लगाया जाता है जिसके रास्ते रबर, एक पात्र में जमा होता है। रबर के जंगल खत्म हुए ही थे कि अनानास के खेत दिखने लगे। हमारे पूरे समूह के लिए ये एक नया और अद्भुत नज़ारा था।
लगभग ग्यारह बजे हम कोठामंगलम (Kothamangalam) की व्यस्त सड़कों के बीच से गुज़र रहे थे।
केरल का भूगोल अपने आप में अनूठा है। यूँ तो इसकी तट रेखा 580 किमी. लंबी है पर इसकी चौड़ाई पूरे राज्य में मात्र 35 से 120 किमी. के बीच है। इस चौड़ाई के एक तरफ़ तो समुद्र है तो दूसरी और 1500 से 1600 तक औसत ऊँचाई वाले पश्चिमी घाट। इसलिए जब भी आप पूर्व से पश्चिम या पश्चिम से पूर्व की ओर सफ़र करेंगे, आपको काफी घुमावदार रास्तों से विचरण करना होगा। इसलिए इन रास्तो पर चलने के पहले उल्टी की दवा खाकर चलना श्रेयस्कर है। यूँ तो हमारे दल के सदस्यों ने एवोमीन ली थी पर देर से लेने की वज़ह से मेरे पुत्र वोमिटिंग का शिकार हो गया।
हम नेरिएमंगलम (Neriamanglam) से कुछ दूर आगे एक नर्सरी में रुके। कोच्चि से मुन्नार के रास्ते में कुछ छोटे जलप्रपात भी आते हैं जिसके बगल में बैठकर आप सफ़र की थकान मिटा सकते हैं। आदिमाली (Adimali) जो कोच्चि से करीब 100 किमी की दूरी पर है, तक पहुँचते-पहुँचते हम सब की हालत खराब हो रही थी। सब यही सोच रहे थे कि इन सर्पीलेकार, चक्करदार रास्तों से कब मुक्ति मिलेगी ? मुन्नार शहर से करीब १२ किमी पहले एक विउ प्वांट पर हमने आधे घंटे का ब्रेक लिया ताकि चकराते सिर को पहाड़ों से आती हल्की ठंडी हवा की खुराक दी जा सके। अब हम पहाड़ों के बिलकुल करीब आ चुके थे। हरे भरे पहाड़ों और जंगलों की गोद में मुन्नार के मशहूर चाय बागान अपनी झलक दिखला रहे थे।
बाहर फेरीवाला एक अलग तरह का फल बेच रहा था। नाम ऐसा कि आप खाने से अपने आप को रोक ना पाएँ। चौंकिए मत,एक सामान्य नीबू से आकार में दुगने बड़े इस फल का नाम था पैशन (Passion Fruit)। अब इस फल का नाम कैसे पड़ा ये तो मालूम नहीं पर इसे खाने का तरीका भी कुछ अलग सा है। फल को लम्बवत काटिए और इसके लिज़लिज़े हिस्से को हाथों या चम्मच से निकाल कर इसका मज़ा लीजिए। इसका स्वाद तो मुझे हल्के मीठे साइट्रस फ्रूट की तरह का लगा पर बच्चों में ये ऍसा जमा की जहाँ जाते इस फल की माँग कर बैठते। बाद में मुझे पता चला कि ये फल केरल ही नहीं वरन् विश्व के अन्य भागों में भी खाया जाता है। यहाँ देखें
थोड़ी देर में हम मुन्नार शहर में थे। चारों ओर की छटा निराली हो चुकी थी पर हमारा ध्यान कहीं और था। रास्ते के हिचकोलों ने पेट में एक अलग तरह का संग्राम मचाया हुआ था। सो पहले हल्की पेट पूजा की । हल्की इसलिए कि हमारी यात्रा मुन्नार पहुँचने तक ही खत्म नहीं होने वाली थी। बल्कि हमें शहर से २५ किमी दूर मुन्नार से थेक्कड़ि (Thekkady) जाने वाले रास्ते में देवीकुलम से थोड़ा आगे स्थित चांसलर रिसार्ट में रहना था। दूसरे दिन के लिए आरक्षण नहीं था। बजट के अंदर होटल ढूंढने में हमें एक घंटा लगा। कोई हजार दो हजार से नीचे की बात ही नहीं कर रहा था। पर मलयाली ड्राइवर की कुशलता से इतने पीक सीजन में हमें ७०० रुपये का कमरा मिला पर वो भी एक।
खैर कल की कल देखी जाएगी कह कर हम अपने ठिकाने की तरफ निकल पड़े। मुन्नार से थेक्कड़ी की तरफ़ निकलने वाले रास्ते में थोड़ी दूर बढ़े ही थे कि चाय के हरे भरे बागान हमारे बिल्कुल करीब आ गए। पहाड़ की ढलानों के साथ उठते गिरते चाय बागान और उनके बीचों बीच कई लकीरें बनाती पगडंडियाँ इतना रमणीक दृश्य उपस्थित करते हैं कि क्या कहें ! पर्वतों की चोटियों और बादलों के बीच छन कर आती धूप हरे धानि रंग के इतने शेड्स बनाती है कि मन प्रकृति की इस मनोहारी लीला को देख विस्मृत हो जाता है। हृदय इन बागानों के बीच बिताए एक एक पल को आत्मसात करने को उद्यत करता है। चाय बागानों की बात तो अभी आगे भी होनी है ।
अपने गन्तव्य से ५-१० किमी पूर्व चिन्नाकनाल का ये खूबसूरत झरना मिला। बच्चे पानी की गिरती धाराओं को देखने के लिए खुशी से दौड़ पड़े। शाम के ठीक चार बजे हम अपने रिसार्ट में थे। शाम चार बजे से अगली सुबह तक का हाल लेकर आऊंगा अगली किश्त में।
इस श्रृंखला की सारी कड़ियाँ
- यादें केरल की : भाग 1 - कैसा रहा राँची से कोचीन का 2300 किमी लंबा रेल का सफ़र
- यादें केरल की : भाग 2 - कोचीन का अप्पम, मेरीन ड्राइव और भाषायी उलटफेर...
- यादें केरल की : भाग 3 - आइए सैर करें बहुदेशीय ऍतिहासिक विरासतों के शहर कोच्चि यानी कोचीन की...
- यादें केरल की : भाग 4 कोच्चि से मुन्नार - टेढ़े मेढ़े रास्ते और मन मोहते चाय बागान
- यादें केरल की : भाग 5- मुन्नार में बिताई केरल की सबसे खूबसूरत रात और सुबह
- यादें केरल की : भाग 6 - मुन्नार की मट्टुपेट्टी झील, मखमली हरी दूब के कालीन और किस्सा ठिठुराती रात का !
- यादें केरल की : भाग 7 - अलविदा मुन्नार ! चलो चलें थेक्कड़ी की ओर..
- यादें केरल की भाग 8 : थेक्कड़ी - अफरातरफी, बदइंतजामी से जब हुए हम जैसे आम पर्यटक बेहाल !
- यादें केरल की भाग 9 : पेरियार का जंगल भ्रमण, लिपटती जोंकें और सफ़र कोट्टायम तक का..
- यादें केरल की भाग 10 -आइए सैर करें बैकवाटर्स की : अनूठा ग्रामीण जीवन, हरे भरे धान के खेत और नारियल वृक्षों की बहार..
- यादें केरल की भाग 11 :कोट्टायम से कोवलम सफ़र NH 47 का..
- यादें केरल की भाग 12 : कोवलम का समुद्र तट, मछुआरे और अनिवार्यता धोती की
- यादें केरल की समापन किश्त : केरल में बीता अंतिम दिन राजा रवि वर्मा की अद्भुत चित्रकला के साथ !
Raockak yatra hoti hai apke sath humesha hi...
जवाब देंहटाएंमेरा बडा मन होता है केरल घूमने का, पता नही क्यों? पर आपकी पोस्ट से कुछ तो घूम ही लिया मैं। पिछले की कडियों को भी देखता हूँ शाम को। शुक्रिया मनीष जी।
जवाब देंहटाएंदबी हुई इच्छा फिर से जाग गयी आपका यह लेख पढ़ कर ...शुक्रिया
जवाब देंहटाएंo datz really 'kewl'! fabulous indeed ! wish i could go there .
जवाब देंहटाएंSir mujhe Indore (mp)se kerala jaana h minimum budget m kaise bharpur maze l sakte h , plz reply
जवाब देंहटाएंवसीम अंसारी प्रश्न पूछते समय अपना नाम जरूर दिया कीजिए। खर्च कम करने के लिए ट्रेन से जाइए। घूमने के लिए बस का इस्तेमाल कीजिए। कोचीन होते हुए मुन्नार होते हुए अलेप्पी की बजाए कोट्टायम में रुकिए।
हटाएं