सोमवार, 4 जनवरी 2010

यादें केरल की : भाग 1 - कैसा रहा राँची से कोचीन का 2300 किमी लंबा रेल का सफ़र

अक्सर लोग दिसंबर से मार्च के बीच अपना सालाना पर्यटन का कार्यक्रम बनाते हैं। खासकर दिसंबर की आखिरी की छुट्टियाँ तो इसके लिए सबसे उपयुक्त रहती हैं। समूचा उत्तर जब ठंड में कटकटाता रहता है तो भारत का दक्षिणी कोना बिल्कुल इस ठंड से अछूता रहता है। तो नए साल में अपने इस यात्रा चिट्ठे पर आपको ले चल रहा हूँ केरल की यात्रा पर जहाँ कुछ साल पहले इसी मौसम में दस दिनों के लिए गया था। इस यात्रा के दौरान मैं आपको कोचीन, मुन्नार, थेकड़ी, कोट्टायम, कोवलम और त्रिवेंदम होते हुए वापस एलेप्पी ले जाऊँगा। आशा है अन्य सफ़रनामों की तरह आप शुरु से अंत तक मेरे साथ होंगे।

पिछले साल केरल जाने की योजना हमने सितंबर में ही बनानी शुरु कर दी थी। जाना दिसंबर के अंतिम सप्ताह में था। पहली समस्या थी कि कैसे जाएँ। सुन रखा था कि पहले से हवाई टिकट कटाने में काम कम पैसों में ही हो जाता है। पर जब नेट पर कोचीन पहुँचने के तमाम हवाई मार्गो का अध्ययन किया तो पाया कि प्रति परिवार सिर्फ आने जाने का ही खर्चा 25000 से 30000 हजार रुपये आ रहा है और सीधी उड़ान ना होने की वजह से समय की भी ज्यादा बचत नहीं हो रही। अब इतनी रकम में तो पूरी यात्रा का खर्च निकल जाता सो हमने फैसला किया कि जब दो परिवार साथ हैं तो 2300 किमी की ये लंबी यात्रा हम मौज मस्ती में गप हाँकते, खाते पीते ही बिता देंगे।

तो जनाब, आरक्षण खिड़की पर ठीक दो महिने पहले सुबह दस बजे यानि कांउटर खुलने के ठीक दो घंटे बाद मैं और मेरे मित्र मौजूद थे। पाँच लोगों का आरक्षण पर्चा खिड़की से अंदर सरकाते हुए मैंने क्लर्क से कहा कि भाई अगर छः वाले कूपे में इकठ्ठा दे दो तो बड़ी मेहरबानी होगी। उधर से जवाब आया कि सर, कुल जमा छः सीट पूरे कोच में बची हैं और आप एक साथ देने की बात कर रहे हैं। हमारा सिर चकराया कि कहाँ पूरे रास्ते एक साथ बैठकर गप्पे हाँकने की बात हो रही थी और यहाँ तो सारी सीटें इधर उधर की मिल रही हैं। कोई और चारा नहीं था इस लिए टिकट लेकर बुझे मन से घर लौट आए। लगा कि ये सब इंटरनेट की करामात है सो अगले हफ्ते वापसी के टिकट की बुकिंग नेट पर बैठ कर की पर नतीजा फिर वही रहा। समझ नहीं आया कि ये सब पीक टाइम रश की वज़ह से था या कुछ और !

खैर, 20 दिसंबर को हम धनबाद एलेप्पी एक्सप्रेस में दिन के तीन बजे बैठ गए। हमे उड़ीसा, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु और केरल के 91 स्टेशनो को पार कर 22 की शाम छः बजे एरनाकुलम पहुँचना था। रात तक सहयात्रियों से सीटों की अदला बदली कर हम सब एक जगह बैठने में सफल हो चुके थे। भोजन का ज़खीरा हमारे पास मौजूद था जिसका जम कर उपभोग किया गया. वैसे भी ट्रेन में मुझे तो बैठते ही भूख लगनी शुरु हो जाती है।


सुबह होने तक हम उड़ीसा छोड़ आंध्रप्रदेश के तटीय इलाके में प्रवेश कर चुके थे। राँची की दिसंबर की कड़ी ठंड अब हल्की गर्मी में तब्दील हो चुकी थी। दक्षिण भारत में घुसने के साथ चाय 'चाया' हो जाती है और कॉफी के साथ फलों के रस धड़ल्ले से लगभग हर स्टेशन पर उपलब्ध हो जाते हैं। विशाखापट्टनम (Vizag) में हम सबने अंगूर और अनानास के शर्बत का खूब आनंद उठाया। दिन के दो बजे के लगभग जब हम लोग राजमुन्दरी (Rajmundari) से थोड़ा आगे बढ़े तो गोदावरी नदी पर बना अद्भुत विशालकाय पुल हमारे सामने था। इस का शुमार एशिया के सबसे लंबे रेल और रोड पुल में किया जाता है। इस पुल में रेल ब्रिज के ऊपर सड़क पुल है जबकि आम तौर पर इसका उलटा होता है। 25 साल पहले बने इस पुल की लंबाई मुझे छः सात किमी के आसपास लगी।


22 दिसंबर की सुबह जब दूसरी रात बिताने के बाद आँख खुली तो पता चला कि हमारी ट्रेन चेन्नई स्टेशन को पार कर सलेम की ओर बढ़ रही है। एक अच्छी बात ये लगी कि हर आठ घंटे में ट्रेन की पूरी सफाई नियमित रुप से होती रही।

अब हम पूर्वी घाट को छोड़ पश्चिमी घाट की ओर बढ़ रहे थे। बाहर का दृश्य मनोरम हो चला था। अपने अपने कैमरे ले कर हमने अपने डिब्बे के द्वार पर स्थान ले लिया। पहाड़ियों की कतारें, धान के हरे भरे खेत और उनके बीच फैले नारियल के पेड़ों के झुंड मन को मोहित कर रहे थे।

दिन के डेढ बजने तक हमारी गाड़ी तमिलनाडु के आखिरी पड़ाव कोयम्बटूर (Coimbatore) पर पहुँच चुकी थी। भौगोलिक रूप से इस जिले की खासियत ये है कि इसका पश्चिमी सिरा नीलगिरी की पहाड़ियों को छूता है तो उत्तरी सिरा मुन्नार की पहाड़ियों को। इतना ही नहीं इस जिले के पास ही पश्चिमी घाट का सबसे कम ऊँचाई वाला हिस्सा है जिसे पार कर केरल में पहुँचा जा सकता है। ये हिस्सा पलक्कड़ गैप (Palakkad Gap) के रूप में जाना जाता है और ये ३२ से ४२ किमी तक चौड़ा है। पश्चिमी घाट में इस गैप के आलावा तमिलनाडु और केरल के बीच और कोई पॉस यानि दर्रा नहीं है। इसलिए इस मार्ग का व्यापार के लिए प्रयोग आदि काल से हो रहा है।

दिन के करीब ढाई बजे हम केरल में प्रवेश कर चुके थे और पलक्कड़ (Palakkad) जिसका पहले नाम पालघाट (Palghat) था हमारे सामने था। शाम तक हमारी गाड़ी शोरनूर, त्रिचूर होते हुए एरनाकुलम पहुँच चुकी थी। दो हजार किमी की यात्रा में सच पूछिए तो हमें ऍसी कुछ खास थकान नहीं हुई जिसकी कल्पना की थी। यात्रा के अगले पड़ाव में बातें होगी ऍतिहासिक शहर कोचीन (Kochin) की..

गोदावरी पुल का चित्र यहाँ से लिया गया है। बाकी चित्र मेरे कैमरे से।

इस श्रृंखला की सारी कड़ियाँ

  1. यादें केरल की : भाग 1 - कैसा रहा राँची से कोचीन का 2300 किमी लंबा रेल का सफ़र
  2. यादें केरल की : भाग 2 - कोचीन का अप्पम, मेरीन ड्राइव और भाषायी उलटफेर...
  3. यादें केरल की : भाग 3 - आइए सैर करें बहुदेशीय ऍतिहासिक विरासतों के शहर कोच्चि यानी कोचीन की...
  4. यादें केरल की : भाग 4 कोच्चि से मुन्नार - टेढ़े मेढ़े रास्ते और मन मोहते चाय बागान
  5. यादें केरल की : भाग 5- मुन्नार में बिताई केरल की सबसे खूबसूरत रात और सुबह
  6. यादें केरल की : भाग 6 - मुन्नार की मट्टुपेट्टी झील, मखमली हरी दूब के कालीन और किस्सा ठिठुराती रात का !
  7. यादें केरल की : भाग 7 - अलविदा मुन्नार ! चलो चलें थेक्कड़ी की ओर..
  8. यादें केरल की भाग 8 : थेक्कड़ी - अफरातरफी, बदइंतजामी से जब हुए हम जैसे आम पर्यटक बेहाल !
  9. यादें केरल की भाग 9 : पेरियार का जंगल भ्रमण, लिपटती जोंकें और सफ़र कोट्टायम तक का..
  10. यादें केरल की भाग 10 -आइए सैर करें बैकवाटर्स की : अनूठा ग्रामीण जीवन, हरे भरे धान के खेत और नारियल वृक्षों की बहार..
  11. यादें केरल की भाग 11 :कोट्टायम से कोवलम सफ़र NH 47 का..
  12. यादें केरल की भाग 12 : कोवलम का समुद्र तट, मछुआरे और अनिवार्यता धोती की
  13. यादें केरल की समापन किश्त : केरल में बीता अंतिम दिन राजा रवि वर्मा की अद्भुत चित्रकला के साथ !

9 टिप्‍पणियां:

  1. रोचक वृतांत...आगे इन्तजार है...

    जवाब देंहटाएं
  2. Mujhe to rail yatra hamesha he achhi lagti hai. Kam se kam zameen par rehne ka abhaas to deti hain.

    जवाब देंहटाएं
  3. दिलचस्प यात्रा वृतांत...रही सही कसर आपके चित्रों ने पूरी कर दी...
    नीरज

    जवाब देंहटाएं
  4. aji aapne itni lambi rail yatra ko ek hi post me likh diya lekin fir bhi rochakta barkarar rahi hai.
    agar main hota to is post ko jaane kitne bhago me likh dalta lekin fir bhi rochakta nahin aati.
    ab fir se kerala kee dharti ka varnan padhenge.

    जवाब देंहटाएं
  5. वाह खूब सैर कराई आपने. बेहद रोचक शैली.

    जवाब देंहटाएं