पिछले दस दिन अंतरजाल से दूर बीते। पहले कार्यक्रम राजस्थान जाने का था पर वो किन्हीं कारणों से फलीभूत नहीं हो पाया। पर मूड बन चुका था इसलिए यात्रा पर तो निकलना ही था। दूर का नहीं तो आस पास का ही सही। तो अपनी कुछ शामें समुद्र की लहरों से खेलते बीतीं। इस सफ़र की कहानी तो फिर कभी, अभी तो भितरकनिका वाली यात्रा के आगे का हाल पढ़िए। जैसा कि आपको बताया था बाघा गाहन में पक्षियों के बड़े बसेरे को देखने के बाद जब हम डाँगमाल पहुँचे तब शाम के छः बज चुके थे।
डाँगमाल में वन विभाग का एक गेस्ट हाउस है जहाँ पर्यटकों के लिए कमरे और डारमेट्री की व्यवस्था है। गेस्ट हाउस जेटी से मात्र सौ दो सौ कदमों की दूरी पर है। पानी से इस घिरे इस गेस्ट हाउस की खास बात ये है कि यहाँ बिजली नहीं है। पर घबराइए मत हुजूर, वो वाली बिजली ना सही पर सौर उर्जा से जलने वाले लैंप आपके कमरे को प्रकाशमान रखेंगे।
शाम में गपशप करने, मोबाइल पर गीत सुनने और ताश की पत्तियों से मन बहलाने के आलावा कोई विकल्प नहीं था। गेस्ट हाउस की चारदीवारी के बाहर घना अंधकार था। बस झींगुर सदृश कीड़ों की आवाज का कोरस लगातार सुनाई देता रहता था। सुबह जल्दी उठ कर जंगल की तफ़रीह करने का कार्यक्रम बना, हम सब ग्यारह बजते बजते सोने चले गए। सुबह नींद छः बजे खुली और सुबह की चाय का आनंद लेकर हम बाहर चहलकदमी के लिए चल पड़े। गेस्ट हाउस से जेटी की तरफ जाते हुए रास्ते के दोनों ओर नारियल के वृक्षों की मोहक कतार है ।
जेटी तक पहुँचने के पहले जंगल के अंदर एक पगडंडी जाती हुई दिखती है। दरअसल ये पगडंडी यहाँ का ट्रेंकिग मार्ग है। ये मार्ग करीब चार किमी लंबा है और एक गोलाई में आते हुए फिर वहीं मिल जाता है जहाँ से शुरु हुआ था। मार्ग शुरु होते ही आप दोनों ओर मैनग्रोव के जंगलों से घिर जाते हैं।
मैनग्रोव के जंगल दलदली और नमकीन पानी वाले दुष्कर इलाके में अपने आपको किस तरह पोषित पल्लवित करते हैं ये तथ्य भी बेहद दिलचस्प है। अपना भोजन बनाने के लिए मैनग्रोव को भी फ्री आक्सीजन एवम् खनिज लवणों की आवश्यकता होती है। चूंकि ये पानी में हमेशा डूबी दलदली जमीन में पलते हैं इसलिए इन्हें भूमि से ना तो आक्सीजन मिल पाती है और ना ही खनिज लवण। पर प्रकृति की लीला देखिए जो जड़े अन्य पौधों में जमीन की गहराइयों में भोजन बनाने के लिए फैल जाती हैं वही मैनग्रोव में ऊपर की ओर बरछी के आकार में बढ़ती हैं। इनकी ऊंचाई ३० सेमी से लेकर ३ मीटर तक हो सकती है। जड़ की बाहरी सतह में अनेक छिद्र बने होते हैं जो हवा से आक्सीजन लेते हैं और नमकीन जल में घुले सोडियम लवणों से मैनग्रोव को छुटकारा दिलाते हैं। मैनग्रोव की पत्तियों की संरचना भी ऍसी होती है जो सोडियम लवण रहित जल को जल्द ही वाष्पीकृत नहीं होने देती।
मैनग्रोव के जंगलों में हम दो सौ मीटर ही बढ़े होंगे कि हमें जंगल के अंदर से पत्तियों में सरसराहट सी सुनाई पड़ी। सूर्य की रोशनी अभी भी जंगलों के बीच नहीं थी इसलिए कुछ अंदाज लगा पाना कठिन था। पर कुछ ही देर में मामला साफ हो गया। वो आवाजें हिरणों के झुंड के भागने से आ रही थीं। थोड़ी देर में ही हम जिस रास्ते में जा रहे थे, उसे ही पार करता हुआ हिरण दल हमें देख कर ठिठक गया। हमने अपनी चाल धीमी कर दी ताकि हिरणों को अपने कैमरे में क़ैद कर सके। ऍसा करते हम उनसे करीब २० मीटर की दूरी तक जा पहुँचे। हिरणों का समूह अपनी निश्चल भोली आँखों से हमें टकटकी लगाता देखता रहा और हमारे और पास आने की कोशिश पर कुछ क्षणों में ही जंगल में कुलाँचे भरता हुआ अदृश्य हो गया।
दो किमी की दूरी तक चलने के बाद हमें फिर छोटे बड़े पौधों के बीच से कुछ हलचल सी दिखाई पड़ी। साँप के भय से हमारे कदम जहाँ के तहाँ रुक गए। वहाँ से साँप तो नहीं निकला पर कुछ देर में नेवले से तिगुने आकार का जीव वहाँ से भागता जंगल में छिप गया। हम इसे ठीक से देख भी नहीं पाए और सोचते ही रह गए कि वो क्या हो सकता है। जैसे जैसे हम आगे बढ़ रहे थे जंगल घना होता जा रहा था और हमारे साथ में कोई वन प्रहरी भी नहीं था। इसलिए हम लोग उसी रास्ते से वापस लौट पड़े। अगर रास्ता पूरा किया होता तो हमें शायद कुछ और देखने को भी मिल सकता था। खैर,उस जानवर के बारे में हमारी गुत्थी तीन घंटे बाद सुलझी जब हमने उसे अपने गेस्ट हाउस के पिछवाड़े में देखा। पता चला कि ये यहाँ का वॉटर मॉनीटर (Water Monitor) है। ये सामने आने पर अपने आकार की वजह से थोड़ा डरावना अवश्य लगता है। इसकी लंबाई करीब डेढ़ से ढाई मीटर तक होती है। जितना दिखता है उतना आक्रमक नहीं होता। इसका भोजन साँप,मेढ़क और मगरमच्छ के अंडे हैं। हम सब ने पास जाकर इसकी तसवीर ली
भितरकनिका के जंगलों में हिरण, सांभर और वॉटर मॉनिटर लिजार्ड के आलावा तेंदुआ ,जंगली सुअर भी हैं। बगुला प्रजाति के पक्षियों के आलावा आठ विभिन्न प्रजातियों के किंगफिशर (Kingfisher) का भी ये निवास स्थल है। इन किंगफिशर के बारे में विस्तृत विवरण आप नीचे के चित्र पर क्लिक कर देख सकते हैं। पर सुबह की हमारी छोटी सी ट्रेकिंग में इस प्रकार के पक्षी कम ही दिखे।
नाश्ता करने के बाद हमें मगरमच्छों से मुलाकात भी करनी थी और और साथ ही वहाँ जीवाश्म संग्रहालय को
भी देखना था। इस श्रृंखला की अगली कड़ी में आपको बताएँगे मगरमच्छ गौरी की कहानी और सैर करेंगे उनके एक प्रजनन केंद्र में..
इस श्रृंखला में अब तक
डाँगमाल में वन विभाग का एक गेस्ट हाउस है जहाँ पर्यटकों के लिए कमरे और डारमेट्री की व्यवस्था है। गेस्ट हाउस जेटी से मात्र सौ दो सौ कदमों की दूरी पर है। पानी से इस घिरे इस गेस्ट हाउस की खास बात ये है कि यहाँ बिजली नहीं है। पर घबराइए मत हुजूर, वो वाली बिजली ना सही पर सौर उर्जा से जलने वाले लैंप आपके कमरे को प्रकाशमान रखेंगे।
शाम में गपशप करने, मोबाइल पर गीत सुनने और ताश की पत्तियों से मन बहलाने के आलावा कोई विकल्प नहीं था। गेस्ट हाउस की चारदीवारी के बाहर घना अंधकार था। बस झींगुर सदृश कीड़ों की आवाज का कोरस लगातार सुनाई देता रहता था। सुबह जल्दी उठ कर जंगल की तफ़रीह करने का कार्यक्रम बना, हम सब ग्यारह बजते बजते सोने चले गए। सुबह नींद छः बजे खुली और सुबह की चाय का आनंद लेकर हम बाहर चहलकदमी के लिए चल पड़े। गेस्ट हाउस से जेटी की तरफ जाते हुए रास्ते के दोनों ओर नारियल के वृक्षों की मोहक कतार है ।
जेटी तक पहुँचने के पहले जंगल के अंदर एक पगडंडी जाती हुई दिखती है। दरअसल ये पगडंडी यहाँ का ट्रेंकिग मार्ग है। ये मार्ग करीब चार किमी लंबा है और एक गोलाई में आते हुए फिर वहीं मिल जाता है जहाँ से शुरु हुआ था। मार्ग शुरु होते ही आप दोनों ओर मैनग्रोव के जंगलों से घिर जाते हैं।
मैनग्रोव के जंगल दलदली और नमकीन पानी वाले दुष्कर इलाके में अपने आपको किस तरह पोषित पल्लवित करते हैं ये तथ्य भी बेहद दिलचस्प है। अपना भोजन बनाने के लिए मैनग्रोव को भी फ्री आक्सीजन एवम् खनिज लवणों की आवश्यकता होती है। चूंकि ये पानी में हमेशा डूबी दलदली जमीन में पलते हैं इसलिए इन्हें भूमि से ना तो आक्सीजन मिल पाती है और ना ही खनिज लवण। पर प्रकृति की लीला देखिए जो जड़े अन्य पौधों में जमीन की गहराइयों में भोजन बनाने के लिए फैल जाती हैं वही मैनग्रोव में ऊपर की ओर बरछी के आकार में बढ़ती हैं। इनकी ऊंचाई ३० सेमी से लेकर ३ मीटर तक हो सकती है। जड़ की बाहरी सतह में अनेक छिद्र बने होते हैं जो हवा से आक्सीजन लेते हैं और नमकीन जल में घुले सोडियम लवणों से मैनग्रोव को छुटकारा दिलाते हैं। मैनग्रोव की पत्तियों की संरचना भी ऍसी होती है जो सोडियम लवण रहित जल को जल्द ही वाष्पीकृत नहीं होने देती।
मैनग्रोव के जंगलों में हम दो सौ मीटर ही बढ़े होंगे कि हमें जंगल के अंदर से पत्तियों में सरसराहट सी सुनाई पड़ी। सूर्य की रोशनी अभी भी जंगलों के बीच नहीं थी इसलिए कुछ अंदाज लगा पाना कठिन था। पर कुछ ही देर में मामला साफ हो गया। वो आवाजें हिरणों के झुंड के भागने से आ रही थीं। थोड़ी देर में ही हम जिस रास्ते में जा रहे थे, उसे ही पार करता हुआ हिरण दल हमें देख कर ठिठक गया। हमने अपनी चाल धीमी कर दी ताकि हिरणों को अपने कैमरे में क़ैद कर सके। ऍसा करते हम उनसे करीब २० मीटर की दूरी तक जा पहुँचे। हिरणों का समूह अपनी निश्चल भोली आँखों से हमें टकटकी लगाता देखता रहा और हमारे और पास आने की कोशिश पर कुछ क्षणों में ही जंगल में कुलाँचे भरता हुआ अदृश्य हो गया।
दो किमी की दूरी तक चलने के बाद हमें फिर छोटे बड़े पौधों के बीच से कुछ हलचल सी दिखाई पड़ी। साँप के भय से हमारे कदम जहाँ के तहाँ रुक गए। वहाँ से साँप तो नहीं निकला पर कुछ देर में नेवले से तिगुने आकार का जीव वहाँ से भागता जंगल में छिप गया। हम इसे ठीक से देख भी नहीं पाए और सोचते ही रह गए कि वो क्या हो सकता है। जैसे जैसे हम आगे बढ़ रहे थे जंगल घना होता जा रहा था और हमारे साथ में कोई वन प्रहरी भी नहीं था। इसलिए हम लोग उसी रास्ते से वापस लौट पड़े। अगर रास्ता पूरा किया होता तो हमें शायद कुछ और देखने को भी मिल सकता था। खैर,उस जानवर के बारे में हमारी गुत्थी तीन घंटे बाद सुलझी जब हमने उसे अपने गेस्ट हाउस के पिछवाड़े में देखा। पता चला कि ये यहाँ का वॉटर मॉनीटर (Water Monitor) है। ये सामने आने पर अपने आकार की वजह से थोड़ा डरावना अवश्य लगता है। इसकी लंबाई करीब डेढ़ से ढाई मीटर तक होती है। जितना दिखता है उतना आक्रमक नहीं होता। इसका भोजन साँप,मेढ़क और मगरमच्छ के अंडे हैं। हम सब ने पास जाकर इसकी तसवीर ली
भितरकनिका के जंगलों में हिरण, सांभर और वॉटर मॉनिटर लिजार्ड के आलावा तेंदुआ ,जंगली सुअर भी हैं। बगुला प्रजाति के पक्षियों के आलावा आठ विभिन्न प्रजातियों के किंगफिशर (Kingfisher) का भी ये निवास स्थल है। इन किंगफिशर के बारे में विस्तृत विवरण आप नीचे के चित्र पर क्लिक कर देख सकते हैं। पर सुबह की हमारी छोटी सी ट्रेकिंग में इस प्रकार के पक्षी कम ही दिखे।
नाश्ता करने के बाद हमें मगरमच्छों से मुलाकात भी करनी थी और और साथ ही वहाँ जीवाश्म संग्रहालय को
भी देखना था। इस श्रृंखला की अगली कड़ी में आपको बताएँगे मगरमच्छ गौरी की कहानी और सैर करेंगे उनके एक प्रजनन केंद्र में..
इस श्रृंखला में अब तक
MANISH JI,
जवाब देंहटाएंDogmal ke maingrove forest ka varanan aapne sidhe shabdon me kahun to mujhe bada hi lubhawana laga..sundar chitron ke sath aapki prstuti kaml ki hai..watar monitar ke bare me ekdam nai jaankari mili hame....kabhi kabhi lagata tha hambhi aapke sath jangalo me chal rahe hai...bahut badhiya prstuti..fir se bahut bahut dhanywaad...
Mugjhe woh Kingfisher wala board baut pasand aaya.
जवाब देंहटाएंAfter reading your trip account it feels I too would have to head sometime to a Mangrove forest.
बेह्तरीन तस्वीरों के साथ अच्छा सा विवरण।
जवाब देंहटाएंप्रिय मित्र नहीं लिखूंगा तो आपकी मेहनत के साथ नाइंसाफी होगी बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर लगी आप की यह यात्रा, चित्र भी बेहद सुंदर.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
प्रकृति के नेहाद करीब ले गए आप तो इस बार. और प्रकृति की लीला भी जान गए साथ में...
जवाब देंहटाएंYatra aur pictures to achhe hai hi par mujhe to kingfisher ke baare mai jaan ke sabse zyada achha laga...
जवाब देंहटाएंWater monitor reminds of Indonesian Komodo Dragon . very well researched description.
जवाब देंहटाएंमुनीश भाई शायद हिंदी में इसे 'गोह' कहा जाता है।
जवाब देंहटाएं