सफेद रंग के छोटे बड़े घरों से मिल कर बने इस गाँव में अगर सुबह सुबह कोई खिड़की से झांके तो सामने मैदान में फैली हरी दूब दिखती है और अगर पिछवाड़े से निकल आए तो विधाता की खूबसूरत नीली छतरी के नीचे बर्फ से आच्छादित पर्वतों की सुनहरी चोटियाँ । पर एक और खासियत है इस प्यारे से गाँव में। पर उसे देखने के लिए चित्र को ज़रा गौर से बड़ा कर (यानि चित्र पर क्लिक कर) देखना होगा। देखा आपने खुद भगवान बुद्ध अपनी बनाई इस छटा को एक पहाड़ी के शिखर से कैसे अपलक निहार रहे हैं..
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बुद्ध के अनुयायिओं की इस भूमि से बस तीस चालिस किमी दूर और बढ़ते हैं तो इस गाँव के दर्शन होते हैं। दूर से पहाड़् यहाँ इस तरह दिखते हैं जैसे दीमक की विशाल बांबियों के ऊपर किसी ने एक बस्ती बना दी हो। पर इसे कोई ऐसी वैसी बस्ती समझने की जुर्रत ना कर लीजिएगा जनाब। भुरभुराते से पहाड़ की चोटी पर जो इमारत आप देख रहे हैं वो किसी ज़माने में इस इलाके के राजा का किला हुआ करती थी उस किले के नीचे चित्र में एकदम बायीं तरफ यहाँ का नामी बौद्ध मंदिर यानि मॉनेस्ट्री है। इन कमाल के चित्रों के छायाकार हैं सीमान्त सक्सेना। सीमान्त सक्सेना के खींचे गए चित्रों को आप यहाँ देख सकते हैं।
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संकेत 1 : ये पूरा इलाका मध्य और ऊपरी हिमालय का अभिन्न अंग है यानि यहाँ के गाँवों की औसत ऊँचाई ३५०० से ४५०० मीटर के बीच है। यानि भारत के भौगोलिक मानचित्र पर नज़र डालें तो जम्मू कश्मीर, हिमाचल, उत्तरांचल, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में से किसी एक राज्य में ये इलाका पड़ता है।
आप में से बहुतों ने इस जगह को लेह, लद्दाख या सिक्किम का बताया पर ये जगह दरअसल हिमाचल प्रदेश के जिले लाहौल स्पिति में हैं। देखा जाए तो लाहौल स्पिति भौगोलिक दृष्टि से दो अलग अलग इलाके हैं। जैसा कि आप नीचे के मानचित्र में देख सकते हैं रोहतांग दर्रे के उत्तर पश्चिम का इलाका लाहौल घाटी का है जबकि उत्तर पूर्व का इलाका स्पिति घाटी का है।
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जिस छोटी सी बुद्ध की प्रतिमा का मैंने प्रविष्टि का ज़िक्र किया था उसका बड़ा रूप मृदुला के कैमरे से ये रहा ! ये बुद्ध मंदिर लांग्ज़ा लाँग करीब ६०० वर्ष पुराना है ऍसा यहाँ के लोगों का मानना है।
इस गाँव की एक और खासियत है और वो है यहाँ समुद्री जीवाश्मों यानि फॉसिल्स का पाया जाना। आप के मन में ये प्रश्न सहज ही उठा होगा आखिर इस दूर दराज़ इलाके में जीवाश्म कहाँ से आ गए। भू वैज्ञानिकों का मानना है कि स्पिति घाटी का निर्माण लाखों वर्षों पहले यूरेशियन और भारतीय प्लेटों के टकराने से हुआ था। जिसकी वजह से टेथस का समुद्र खत्म हो गया। ये जीवाश्म उस काल के समुद्री जीवों के बताए जाते हैं।
संकेत 2 : इस इलाके तक पहुँचना इतना सरल नहीं। अव्वल तो यहाँ पहुँचने के सिर्फ दो रास्ते हैं और वो भी ऍसे कि साल में आधा समय बंद रहते हैं। इसलिए इस इलाके की जनसंख्या बेहद कम है। कम पर कितनी कम ? अब चौंकिएगा नहीं प्रति वर्ग किमी. पाँच से भी कम!
स्पिति तक पहुँचने के दो रास्ते हैं एक शिमला से होकर रामपुर होते हुए किन्नौर जिले से होते हुए स्पिति घाटी में प्रवेश करता है और करीब ४१२ किमी लंबा है। ये रास्ता आम तौर पर सालों भर खुला रहता है। पर मनाली होकर स्पिति जाने वाला रास्ता जून से अक्टूबर तक ही खुला रहता है। अत्याधिक ऊँचाई और ठंड वाले इस इलाके की जनसंख्या प्रति वर्ग किमी मात्र दो है।
संकेत 3 :दूसरे चित्र में दिख रहे बौद्ध मंदिर का निर्माण सातवीं और नौवीं शताब्दी के बीच हुआ। सत्रहवीं शताब्दी में ये जगह पूरे इलाके की राजधानी बन गई।छायाकार : नेविल झावेरी
ये जगह है धनखर (Dhankhar) पहले इसे (धक + खर : धकखर) के नाम से बुलाया जाता था जिसका अर्थ था चोटी पर स्थित किला। आज इस किले की अवस्था जर्जर हो गई है। इसके नीचे धनखर का बौद्ध मंदिर है जिसका शुमार इस इलाके के प्राचीनतम बौद्ध मंदिर में होता है। ऊपर चित्र में सबसे बाँयी तरफ की इमारत बौद्ध मंदिर का है जबकि सबसे ऊपर किला नज़र आ रहा है। धनखर में ४५१७ मीटर की ऊँचाई पर एक झील भी है।
तो दिमागी घोड़े दौड़ाइए और पहेली के उत्तर का अनुमान लगाइए। आपके उत्तर हमेशा की तरह माडरेशन में रखे जाएँगे। सही जवाब इसी पोस्ट में गुरुवार को बताया जाएगा।
इस बार की पहेली का सही जवाब आने में ज़रा भी देर नहीं हुई। क्यूँकि साथी चिट्ठाकार मृदुला इस इलाके में दो साल पहले भ्रमण कर के आ चुकी थीं। ऊपर के चित्रों और लिंकों के माध्यम से आप समझ गए होंगे कि मृदुला एक घुमक्कड़ होने के साथ साथ अच्छी छायाकार भी हैं. मृदुला जी सही जवाब तक पहुँचने के लिए आपको हार्दिक बधाई। पर मृदुला जी के आलावा दोहरे सवाल के पहले हिस्से का सही जवाब दिया पंडित डी के शर्मा वत्स और संजय व्यास जी ने। बाकी लोगों का अनुमान लगाने और अपनी प्रतिक्रियाएँ देने के लिए हार्दिक आभार।