इस श्रृंखला की पिछली पोस्ट में आपने पढ़ा कि किस तरह इठलाती बालाओं और विमान के टूटते डैने के संकट से उबर कर अंडमान पहुँचा। अब आगे पढ़ें....
...एयरपोर्ट पर बाहर निकलते समय अगर आपके नाम की तख्ती लगाए कोई खड़ा मिले तो बिलकुल ये मत सोचने लगिएगा ...कि अरे मैंने तो किसी को बताया नहीं । मेरे लिए ये गाड़ी कहाँ से पहुँच गई....
दरअसल यहाँ के टूर आपरेटर शहर के मुख्य होटलों और गेस्ट हाउस से आने वाले आंगुतकों का नाम पता मालूम कर के रखते हैं। उनकी मंशा बस इतनी होती है कि आपको अपने होटल तक पहुँचा कर आगे आप के घूमने घुमाने के कार्यक्रम में उनकी सहभागिता बनी रहे ।
पोर्ट ब्लेयर (Port Blair) के ऊँचे नीचे रास्तों को देख कर आश्चर्य जरूर हुआ क्यूँकि सामान्यतः समुद्र से सटे इलाके यानि तटीय क्षेत्र मैंने समतल ही देखे थे। हमारी बुकिंग अंडमान टील हाउस (Andman Teal House) में थी । हवाई सफर की थकान को देखते हुए ,शाम को बाहर निकलने का कार्यक्रम तय हुआ ।
टील हाउस के अपने कमरे से समुद्र साफ दिखता था । पास ही फोनिक्स बे जेटी (Phoenix Bay Jetty) थी जिसपे आते -जाते जहाजों को देखा जा सकता था । सामने का समुद्र आशा के विपरीत काफी शांत दिख रहा था । दूर सफेद और लाल रंग की धारियों से रँगा नार्थ बे (North Bay) का लाइट हाउस भी दृष्टिगोचर हुआ । कुछ दूर यूँ ही समय बीता। मन में इस विचार को आत्मसात करने की प्रक्रिया चल रही थी कि सच! हम सब कितनी दूर आ गए हैं अपने करीबियों से ।
शाम साढ़े ५ बजे अंडमान की ऐतिहासिक विरासत यानि सेलुलर जेल को देखने चल पड़े । सबसे पहले रास्ते में नजर ठहरी यहाँ के अबरदीन बाजार (Abardeen Bazaar) पर ! ये पोर्ट ब्लेयर का मुख्य बाजार है । खाने पीने के लिए यहाँ अच्छे रेस्ट्रां मौजूद हैं। पर क्या अबरदीन की बस इतनी ही पहचान है ? नहीं नहीं...अगर इतिहास के पन्नों में झांके तो यही अबरदीन, १८५९ में अंग्रेजों और आदिवासियों के बीच हुए युद्ध का साक्षी रहा है । तब अंग्रेज यहाँ १८५७ के २०० विद्रोहियों को लेकर इस भू भाग पर अपना अधिकार जताने आए थे । उस वक्त तो सेलुलर जेल की नींव भी नहीं पड़ी थी ।
सेलुलर जेल (Cellular Jail) पहुँचने पर पता चला कि लाइट एंड साउंड शो की सारी बैठने वाली टिकटें बिक चुकी हैं । पर अब तुरंत वापस लौटने का मन किसी का नहीं था । सो हम सबने लॉन की घास पर अपनी जगह बनाई और वहीं बैठ गए । ध्वनि और प्रकाश के मिश्रित संयोजन के बीच अंडमान की कहानी धीरे-धीरे हमारे समक्ष खुलती चली गई ।
इस द्वीप का नाम अंडमान कैसे पड़ा ? इसकी भी कई कहानियाँ हैं। पुराने धर्मग्रंथों में इस द्वीप का नाम हंडुमान मिलता है जो कि भगवान हनुमान का मलय नाम है। किवदंती ये भी है कि पहले रावण के खिलाफ इस द्वीप समूह के दक्षिणी सिरे से आक्रमण की योजना थी जो बाद में बदल दी गई। मजे की बात है कि दूसरी शताब्दी में रोमन भूगोलशास्त्री Ptolemy के बनाए विश्व मानचित्र में ये द्वीप मौजूद था।
१७९० में अंग्रेजों ने पहले चाथम और फिर उत्तरी अंडमान में अपनी बस्ती बसाने की कोशिश की । पर मलेरिया और यहाँ की जनजातियों के लगातार हमलों ने उन्हें १७९६ में वापस लौटने के लिए मजबूर कर दिया। १८५७ के विद्रोहियों के बाद वहाबी आंदोलन के कार्यकर्ताओं को अंडमान लाया गया । शुरु में यहाँ लाए गए कैदियों में सबसे चर्चित रहा शेर अली खान जिसने १८७२ में लार्ड मेयो की उनकी अंडमान यात्रा के दौरान हत्या कर दी । शेर खाँ को उसी साल वाइपर द्वीप की जेल में फांसी लगा दी गई ।
देश के विभिन्न हिस्सों से कैदियों की संख्या में निरंतर वृद्धि होती गई और तब अंग्रेजों ने एक नयी जेल बनाने का फैसला किया । १८९६ में सेलुलर जेल का निर्माण शुरु हुआ और आज से करीब सौ साल पहले यानि १९०६ में ये बन कर तैयार हुई । इस जेल को सात तीन मंजिला इमारतों से मिलकर बनाया गया था । सातों भवनों के केंद्र में एक टावर था और इसमें ६९८ पृथक सेल यानि कक्ष थे इसीलिए आसका नाम सेलुलर जेल पड़ा । अब तो सात इमारतों में से तीन ही बची रह गईं हैं ।
सेलुलर जेल के कैदियों में वीर सावरकर का नाम सबसे आदर से लिया जाता है । वो जिस सेल में रहते थे उसे अभी भी बड़े जतन से रखा गया है । वीर विनायक सावरकर १९११ में यहाँ लाए गए और करीब दस सालों तक इन कैदियों में जुल्म से लड़ने की शक्ति का संचार करते रहे। सावरकर ने अपने संस्मरणों में लिखा है कि कैदियों को बैलों की तरह सरसों से तेल निकालने के लिए जोता जाता था। दलदली भूमि पर जंगलों की कटाई का दुरूह कार्य भी उनसे लिया जाता था । ना करने या किसी भी प्रकार की कोताही बरतने पर जंजीरों से जकड़कर चाबुक की मार आम बात थी। आखिर कालापानी के नाम से एक दहशत उत्पन्न करना अंग्रेजों का एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य था। आज भी जेल परिसर में जुल्म ओ सितम की इस दर्दनाक गाथा के प्रतीक संभाल कर रखे गए हैं ताकि देश के लिए जान न्योछावर करने वाले इन शहीदों के बलिदान को देशवासी याद रखें ।
महात्मा गाँधी के दर्शन से तो यहाँ के कैदी वंचित रह गए पर द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जब जापानियों ने अंडमान पर अपना कब्जा जमाया तो नेताजी सुभाष चंद्र बोस यहाँ पधारे। ३० दिसम्बर १९४३ को अंडमान में नेताजी ने भारतीय ध्वज फहराया । यहाँ के संग्रहालय में नेताजी के उस दौरे के कई दुर्लभ चित्र मौजूद हैं। कार्यक्रम समाप्त हो चुका था और मन इन अमर शहीदों की कुर्बानियों के प्रति नतमस्तक था । अगली सुबह हमें अंग्रेजों की बस्ती रॉस द्वीप से शुरु करनी थी । कैसा लगा हमें रॉस द्वीप इसकी चर्चा अगले हिस्से में ।
टील हाउस के अपने कमरे से समुद्र साफ दिखता था । पास ही फोनिक्स बे जेटी (Phoenix Bay Jetty) थी जिसपे आते -जाते जहाजों को देखा जा सकता था । सामने का समुद्र आशा के विपरीत काफी शांत दिख रहा था । दूर सफेद और लाल रंग की धारियों से रँगा नार्थ बे (North Bay) का लाइट हाउस भी दृष्टिगोचर हुआ । कुछ दूर यूँ ही समय बीता। मन में इस विचार को आत्मसात करने की प्रक्रिया चल रही थी कि सच! हम सब कितनी दूर आ गए हैं अपने करीबियों से ।
शाम साढ़े ५ बजे अंडमान की ऐतिहासिक विरासत यानि सेलुलर जेल को देखने चल पड़े । सबसे पहले रास्ते में नजर ठहरी यहाँ के अबरदीन बाजार (Abardeen Bazaar) पर ! ये पोर्ट ब्लेयर का मुख्य बाजार है । खाने पीने के लिए यहाँ अच्छे रेस्ट्रां मौजूद हैं। पर क्या अबरदीन की बस इतनी ही पहचान है ? नहीं नहीं...अगर इतिहास के पन्नों में झांके तो यही अबरदीन, १८५९ में अंग्रेजों और आदिवासियों के बीच हुए युद्ध का साक्षी रहा है । तब अंग्रेज यहाँ १८५७ के २०० विद्रोहियों को लेकर इस भू भाग पर अपना अधिकार जताने आए थे । उस वक्त तो सेलुलर जेल की नींव भी नहीं पड़ी थी ।
सेलुलर जेल (Cellular Jail) पहुँचने पर पता चला कि लाइट एंड साउंड शो की सारी बैठने वाली टिकटें बिक चुकी हैं । पर अब तुरंत वापस लौटने का मन किसी का नहीं था । सो हम सबने लॉन की घास पर अपनी जगह बनाई और वहीं बैठ गए । ध्वनि और प्रकाश के मिश्रित संयोजन के बीच अंडमान की कहानी धीरे-धीरे हमारे समक्ष खुलती चली गई ।
इस द्वीप का नाम अंडमान कैसे पड़ा ? इसकी भी कई कहानियाँ हैं। पुराने धर्मग्रंथों में इस द्वीप का नाम हंडुमान मिलता है जो कि भगवान हनुमान का मलय नाम है। किवदंती ये भी है कि पहले रावण के खिलाफ इस द्वीप समूह के दक्षिणी सिरे से आक्रमण की योजना थी जो बाद में बदल दी गई। मजे की बात है कि दूसरी शताब्दी में रोमन भूगोलशास्त्री Ptolemy के बनाए विश्व मानचित्र में ये द्वीप मौजूद था।
१७९० में अंग्रेजों ने पहले चाथम और फिर उत्तरी अंडमान में अपनी बस्ती बसाने की कोशिश की । पर मलेरिया और यहाँ की जनजातियों के लगातार हमलों ने उन्हें १७९६ में वापस लौटने के लिए मजबूर कर दिया। १८५७ के विद्रोहियों के बाद वहाबी आंदोलन के कार्यकर्ताओं को अंडमान लाया गया । शुरु में यहाँ लाए गए कैदियों में सबसे चर्चित रहा शेर अली खान जिसने १८७२ में लार्ड मेयो की उनकी अंडमान यात्रा के दौरान हत्या कर दी । शेर खाँ को उसी साल वाइपर द्वीप की जेल में फांसी लगा दी गई ।
देश के विभिन्न हिस्सों से कैदियों की संख्या में निरंतर वृद्धि होती गई और तब अंग्रेजों ने एक नयी जेल बनाने का फैसला किया । १८९६ में सेलुलर जेल का निर्माण शुरु हुआ और आज से करीब सौ साल पहले यानि १९०६ में ये बन कर तैयार हुई । इस जेल को सात तीन मंजिला इमारतों से मिलकर बनाया गया था । सातों भवनों के केंद्र में एक टावर था और इसमें ६९८ पृथक सेल यानि कक्ष थे इसीलिए आसका नाम सेलुलर जेल पड़ा । अब तो सात इमारतों में से तीन ही बची रह गईं हैं ।
सेलुलर जेल के कैदियों में वीर सावरकर का नाम सबसे आदर से लिया जाता है । वो जिस सेल में रहते थे उसे अभी भी बड़े जतन से रखा गया है । वीर विनायक सावरकर १९११ में यहाँ लाए गए और करीब दस सालों तक इन कैदियों में जुल्म से लड़ने की शक्ति का संचार करते रहे। सावरकर ने अपने संस्मरणों में लिखा है कि कैदियों को बैलों की तरह सरसों से तेल निकालने के लिए जोता जाता था। दलदली भूमि पर जंगलों की कटाई का दुरूह कार्य भी उनसे लिया जाता था । ना करने या किसी भी प्रकार की कोताही बरतने पर जंजीरों से जकड़कर चाबुक की मार आम बात थी। आखिर कालापानी के नाम से एक दहशत उत्पन्न करना अंग्रेजों का एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य था। आज भी जेल परिसर में जुल्म ओ सितम की इस दर्दनाक गाथा के प्रतीक संभाल कर रखे गए हैं ताकि देश के लिए जान न्योछावर करने वाले इन शहीदों के बलिदान को देशवासी याद रखें ।
महात्मा गाँधी के दर्शन से तो यहाँ के कैदी वंचित रह गए पर द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जब जापानियों ने अंडमान पर अपना कब्जा जमाया तो नेताजी सुभाष चंद्र बोस यहाँ पधारे। ३० दिसम्बर १९४३ को अंडमान में नेताजी ने भारतीय ध्वज फहराया । यहाँ के संग्रहालय में नेताजी के उस दौरे के कई दुर्लभ चित्र मौजूद हैं। कार्यक्रम समाप्त हो चुका था और मन इन अमर शहीदों की कुर्बानियों के प्रति नतमस्तक था । अगली सुबह हमें अंग्रेजों की बस्ती रॉस द्वीप से शुरु करनी थी । कैसा लगा हमें रॉस द्वीप इसकी चर्चा अगले हिस्से में ।
(पहला , पाँचवाँ और सातवाँ चित्र इंटरनेट से संकलित)
क्या बढ़िया जानकारी दी आपने । तस्वीर के साथ वो भी फ्री में । ऐसे ही आगे भी कुछ नया लेकर आईये । बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर जानकारी ! फोटो बहुत काम के हैं।
जवाब देंहटाएंरोचक है यह ..यहाँ जाने का हमेशा से दिल है अभी तो आपके लिखे के जरिये घूम लेते हैं साथ साथ .इसके नाम की कहानी जानने का कोई और जरिया भी है क्या?
जवाब देंहटाएंकहानी आज़ादी के बाद भी खत्म नहीं होती...नेहरू ने इस जेल को तोड़ना चाहा था, ताकि आजादी केवल कॉंग्रेस के लोगो के बल पर मिली बता सके. इतिहास मिटाने का प्रयास मणिशंकर जैसे चापलूसो ने भी किया और सावरकर का नाम जेल से मिटाने का प्रयास किया.
जवाब देंहटाएंसेल्युलर जेल वास्तव में एक तिर्थ है भारतीयों के लिए.
जितनी बार भी पढ़ लो..आनन्द आ जाता है. लेखनी का कमाल है जनाब आपकी.
जवाब देंहटाएंदोनो खंडो को आज ही पढा ... बहुत अच्छा लगा ।
जवाब देंहटाएंहम चाथम बचपन में पानी जहाज से चार दिनों में पहुंचे थे. हमारे ताऊ विमको के फेक्टरी में कार्यरत रहे. आपका वर्णन देख फिर से तबीयत मचलने लगी. सुन्दर पोस्ट. आभार.
जवाब देंहटाएंबहुत ही मेहनत से आप ने विस्तार से यह लेख लिखा, ओर पुरी जानकारी दी, चित्र देख कर ओर लेख पढ कर बहुत ही अजीब सा लगा हमारे शहीदो ने देश को आजाद करवाने के लिये कितने कष्ट सहे, ओर आज हम उन्ही अग्रेजॊ की भाषा बोल कर अपने इन शहीद बुजुर्गो की बेज्जती कर रहे है. कभी समय मिला तो जरुर जाऊगा उस स्थान को नमन करने जहा वीर सावरकर जेसे शहीदओ ने अपना किमती समय गुजारा.
जवाब देंहटाएंआप का धन्यवाद
अंडमान जो भूला नही है उसे एक बार फ़िर याद दिला दिया आपने ।
जवाब देंहटाएंapke saath is yatra mai to maza aa gaya...
जवाब देंहटाएंbaap re baap....kitnaa ghumaaoge hamen aap....??
जवाब देंहटाएंAndamans is on my next to visit list. This write up is going to be helpful. Thanks! :)
जवाब देंहटाएंवाह, बहुत ही रोचक और ज्ञानवर्धक। धन्यवाद मनीष जी! :)
जवाब देंहटाएंThanks for your valuable post
जवाब देंहटाएंThanks for the post
जवाब देंहटाएंसेलुलर जेल आज भी वैसा का वैसा ही है,यहाँ जा के मन में देश के क्रांतिकारियों के प्रति श्रद्धा और भी बढ़ गयी,हम लोग साउंड और लाइट शो देख पाये थे,जल्दी ही उसके बारे में लिखने का प्रयास करुँगी
जवाब देंहटाएंMai Andaman me rehta hu aur andaman travel agency chalata hu, apka yah post kafi acha hai., aap jaise logo ki wajah se Andaman me tourist ki sankhyaan din ba din bhad rahi hai... Thanks for your valuable post.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा जानकर कि ये लेख आपको पसंद आया। मुझे अंडमान बेहद प्रिय लगा था। ज़ाहिर है इतनी सुंदर ऐतिहासिक जगह से लोगों का आकर्षण बढ़ रहा है। कभी दुबारा आना हुआ तो आपसे मुलाकात करूँगा।
हटाएंबहुत ही अच्छी जानकारी दी गई है… आपका यह पोस्ट पढ़कर जरूर काफी लोग अंडमान जा चुके होंगे
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