पहले वो ले गईं हमें परशुराम मन्दिर जो पंजिम (Panjim) से ८०-८५ कि.मी. की दूरी पर, पेंगिन (Painguinim) नामक गाँव में स्थित है। अगर आप परशुराम मंदिर की छवियाँ देखने के साथ साथ पौराणिक कथाओं में भी रुचि रखते हों और ये जानना चाहते हों कि परशुराम ने किस तरह गोवा की रचना की तो ये पोस्ट जरूर पढ़ें।
और पिछले हफ्ते जाना हमने उनसे पंजिम से बस ८-१० की.मी. की दूरी पर स्थित तोरदा (torda) के पास स्थित संग्रहालय सॉल्वाडोर दो मुन्डो (Salvador Do Mundo) के बारे में..। अक्सर जब हम संग्रहालयों में जाते हैं तो अपने इतिहास में रुचि रखने के बावजूद समय की कमी की वज़ह से वहाँ रखी वस्तुओं पर सरसरी निगाह दौड़ा कर निकल लेते हैं।
इसीलिए इस अनूठे आकार के संग्रहालय के बारे में ममता जी लिखती हैं
"......ये संग्रहालय तीन मंजिला है और इसकी छोटी और घुमावदार सीढियों से ऊपर चढ़कर जब पहली मंजिल पर पहुँचते है तो यहाँ पर पुराने समय के गोवा और आज के गोवा दोनों के चित्र देखने को मिलते हैं। उस समय के दरवाजे ,खिड़कियाँ, सोफे, कुर्सी, और भी बहुत कुछ यहाँ पर देखा जा सकता है। अगर इतिहास को जानने का शौक हो और समय की कमी ना हो तो
यहाँ पर आराम से एक-एक चीज को देखते पढ़ते हुए चलना चाहिए। यहां पर एक-दो जगहों पर हेड फ़ोन भी लगे है और बैठने के लिए कुर्सी भी बनी है तो यहां बैठकर आप गोअन संगीत का लुत्फ़ भी उठा सकते हैं।...
ममता जी की ही तरह जबलपुर के चिट्ठाकार महेंद्र मिश्रा आजकल हम सब को अपने शहर के आस पास के मंदिरों की सैर करा रहे हैं। इस सिलसिले में उन्होंने विवरण दिया जबलपुर के गोपालपुर और लक्ष्मीनारायण मंदिर का। गोपालपुर के मंदिर के बारे में वे लिखते हैं...
"....पूरे परिसर मे २१ शिवलिंग के दर्शन होते है। यहाँ भव्य मन्दिर के अलावा कई भग्नावशेष है जो पुरातत्व विभाग की अनदेखी के बावजूद अपने वैभव से आश्चर्यचकित कर देते हैं। गोपालपुर मन्दिर की बाहय छटा काफी सुंदर है। श्वेत आभा के कारण इस मन्दिर को दूर से पहचाना जा सकता है पास ही नर्मदा का तट होने के कारण यह दूर से और भी ख़ूबसूरत लगता है।...."
प्राचीन इमारतों की एक खूबी ये भी होती है कि वे अपने आप में कई अनूठी कहानियों को समेटे होते हैं। प्राचीन धरोहरों से जुड़ी ऍसी कई कहानियाँ मैंने वहाँ मौजूद गाइड या स्थानीय निवासियों के मुँह से सुनी हैं। इनमें कई कहानियों पर तो सहज विश्वास ही नहीं होता क्योंकि वो हमारी तार्किक क्षमता से परे किसी सत्य का उद्घाटन करती दिखती हैं। पर जब साक्ष्य भी सामने हो तो मन अचंभित जरूर होता है। अब इस झनझन बेरी के कुएँ की बात मिश्रा जी कुछ यूँ बताते हैं..
"....झनझन बेरी का कुआँ पानी के लिए नही बल्कि सूखा होने के कारण प्रसिद्ध है बताया गया है कि यह कुआँ सौ साल से अधिक पुराना है जो शुरू से ही सूखा है। गाँव वालो ने जानकारी देते हुए बताया कि यहाँ झनझन बेरी नाम बेड़नी रहती थी। नाच गाकर वह जो कमाती थी सारी कमाई वह कुएँ की खुदाई मे लगा देती थी पर काफी गहरे तक खुदाई करने पर भी उसमे पानी नही निकला। खुदाई करते समय कुएँ मे से मुर्गो की आवाजे आने लगी तो खुदाई बंद कर दी गई परन्तु आजतक उस कुएँ मे से पानी नही निकला है और आश्चर्य की बात है कि उस कुएँ के चारो तरफ़ बोरिंग कराने पर पानी निकल आता है।..."
भई अब तो जबलपुर जाने की इच्छा हो गई है। देखें कब मौका मिल पाता है? वैसे एक ब्लॉगर मीट cum सैर सपाटा जबलपुर का हो जाए तो कैसा रहे? जबलपुरियों सुन रहे हो ना... :)
वैसे जो लोग उत्तराखंड की धरती से अब तक रूबरू नहीं हुए हैं और होना चाहते हैं वो नवोदित चिट्ठाकार दीपांशु गोयल के चिट्ठे पर नज़र रखें। दीपांशु रहते तो हैं दिल्ली में पर ताल्लुक रखते हैं उत्तराखंड से। कुछ दिनों पहले दीपांशु ने हमें नैनीताल के कार्बेट पार्क वाले इलाके में कार्बेट झरने के दर्शन कराए थे।
आखिरी गन्तव्य तक पहुँचने के लिए किसी भी यात्री की समस्या होती है कि कौन सी गाड़ी ली जाए जो उसके बजट में भी समा जाए और जिसमें समूह के सदस्य भली भांति बैठ सकें। इसी समस्या को ध्यान में रख कर अपनी नई पोस्ट में दीपांशु दे रहे हैं, उत्तराखंड के चारों धामों में जाने के लिए इंडिका से लेकर इनोवा तक में जाने के लिए खर्चे की जानकारी।
केरल का मेरा यात्रा विवरण अपने मध्य में है। केरल में मुन्नार को अलविदा कर मैं आपको ले आया हूँ थेक्कड़ी (Thekkadi)। पेरियार झील की सुबह की भागमभाग और टिकट करे लिए हुई अफरातरफी की कहानी तो मैं आपको बता ही चुका। अगर आपने पेरियार के जंगलों (Periyar Forest) की झांकी अब तक ना देखी हो तो यहाँ देखें।
हओ भैया हम जबलपुरिया तो सुन रहे हैं ।
जवाब देंहटाएंचलो योजना बनाएं ।
उड़नतश्तरी उड़ो जबलपुरई पहुंचे हम भी आ रए हैं ।
का विचार है । :D
यात्रा चर्चा बहुत अच्छा प्रयास है।
जवाब देंहटाएंजबलपुरियों सुन रहे हो ना... :)
जवाब देंहटाएं-बस बस, नवम्बर तक रुकिये. स्वागत के लिए हाजिर रहेंगे तब. काय युनुस, तबई आना महाराज. :)
बढ़िया यात्रा चिट्ठों की चर्चा.
ये जानकारी तो बहुत काम आएगी.. मनीष जी,, धन्यवाद आपका
जवाब देंहटाएंआपकी हर पोस्ट के बाद सोचता हूँ कुछ संस्मरण लिखने का लेकिन सम्भव ही नहीं हो पा रहा है :(
जवाब देंहटाएंमनीष जी आपकी ये पोस्ट हमसे छूट गई थी क्यूंकि आम तौर पर शनिवार और रविवार को हम घर पर नही होते है यानी घूमने गए होते है।और कल हम ज्यादा देर तक नेट नही कर पाये थे।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया ।