तो पहले ले चलते हैं आपको अपनी सरहद के उस पार यानि पाकिस्तान में ! एक आम भारतीय या फिर एक आम पाकिस्तानी में एक दूसरे के रहन सहन, तौर तरीकों को जानने की बेहद उत्सुकता रहती है। पर जब वास्तव में कोई इधर वाला उधर या उधर वाला इधर होकर आता है तो उसे लगता है अरे ! यहाँ तो सब वैसा ही हैं। हमारी साथी चिट्ठाकार विभा रानी अभी लाहौर गईं और उन्होंने वहाँ क्या देखा उसका सजीव वर्णन अपने चिट्ठे पर करते हुए विभा लिखती हैं..
"...पंजाब होने के कारण लहजा ठेठ पंजाबी है, मगर तलफ्फुज बिल्कुल साफ। मुल्क बनने के बाद उर्दू में तर्जुमा और आम जिंदगी में उनका इस्तेमाल बढा है-एक्सक्यूज मी की जगह बात सुनें और सिग्नल और रेड, यलो, ग्रीन लाइट के बदले इशारा। लाल, पीली और सब्ज बत्तियां, लेफ्ट और राइट के बदले उल्टे और सीधे हाथ कहने का प्रचलन है। बोलने से पहले अस्सलाम वालेकुम बोलना जिन्दगी का हिस्सा है, यहां तक कि फोन पर भी हैलो के बदले अस्सलाम वालेकुम।..."
".....मजहब और अल्लाह खून के कतरे की तरह समाया हुआ है - इंशाअल्लह, माशाअल्लाह, अल्लाह की मेहरबानी, अल्लाह का शुक्र वगैरह सहज तरीके से जबान में बस गए हैं।..."
"...बीएनयू की गर्ल्स हॉस्टल की वार्डन गजाला बताती हैं - हम जब इंडिया गए, तब हमने सोचा था, सबकुछ अलग होगा, पर हमारी लडकियों ने कहा - हाय अल्लाह। यहाँ की भैंसें तक हमारी भैंसों जैसी ही हैं।..."
अब जब देश के बाहर निकल ही गए हैं तो थोड़ी दूर क्यूँ ना चलें। आजकल हमारे उन्मुक्त जी आस्ट्रिया का विचरण कर रहे हैं और इस हफ्ते वो आपको घुमा रहे हैं कुछ शानदार तसवीरों के साथ, विएना में। डैन्यूब नदी और वहाँ के गिरिजाघरों से होते हुए वो जा पहुँचे राजा के महल पर और उन्होंने लिखा
"..इसके देखने के लिये कई टूर हैं और सबका पैसा अलग-अलग है हमलोगों ने सबसे सस्ता वाला टूर लिया इसमें ३५ कमरों का दिखाया जाता है। इसकी सबसे अच्छी बात है कि यह आपको एक माइक्रोफोन देते हैं। कमरे में जाकर बटन दबाइये तो वह उस कमरे के बारे में यह बताता है और उस कमरे के वर्णन के बाद रूक जाता है। अगले कमरे में जाकर पुन: बटन दबाने पर, उस कमरे के बारे में बताना शुरू करता है। महल के पीछे राजा का बाग है। यह जगह बहुत सुन्दर थी। हर तरफ हरे भरे लॉन हैं। वहां पर लोगों ने बताया कि गर्मी में यह और भी खूबसूरत लगता है।.."सारे लोग विदेश की हरी भरी वादियों का आनंद ले रहे हों ऐसी बात भी नहीं। अब हमारे सप्तरंगी नितिन बागला को देखिए, श्री शैलम के शिव मंदिर की उमस भरी गर्मी और भीड़ भड़क्का इन्हें भक्ति मार्ग से डिगा नहीं पाया। छः सौ पचास रुपये की टिकट खरीदी और चल दिए प्रभु के दर्शन को ! अब आगे क्या हुआ, इसका किस्सा वो कुछ यूँ बताते हैं...
चूंकि मंदिर का अंदरूनी भाग बहुत छोटा था और पब्लिक बहुत ज्यादा, सो गर्मी औए उमस भयंकर थी। कुछ AC लगे हुए दिखे पर काम नही कर रहे थे। हमने सोंचा कि हमें तो यहां से चन्द पल में चल देना है, बेचारे भगवान जी का क्या हाल होता था, जो हमेशा यहीं रहते हैं। एकदम मुख्य गृह तो और भी बहुत छोटा था और अंधेरा भी। पंडित लोग खडे थे जो किसी को २ सेकेंड से ज्याद मत्था नही टेकने देते । आप सिर झुकाइये..पीछे से वो आपको झुकायेंगे और उठा देंगे। हमने सिर टिकाया और जो पीछे से धक्का लगा तो भट्ट से सिर टकराया शिवलिंग से। हमने शिवजी से माफी मांगी और निकल लिये।
शहर में रहते-रहते जब हम अचानक ही ग्रामीण परिवेश से रूबरू होते हैं तो एक अलग सी खुशी का अनुभव होता है, खासकर तब जो वो परिवेश राजस्थान के समृद्ध सांस्कृतिक विरासत की झलक दिखाता हो। ऍसे ही परिवेश से रूबरु करा रही हैं पारुल आपको जयपुर की चोखी ढाणी ले जा कर।
केरल में मैं फिलहाल तो आपको घुमा ही रहा हूँ। इस हफ्ते मैंने लिखा कोच्चि से मुन्नार तक की अपनी यात्रा के बारे में। रबर के जंगलों, अनानास के खेतों और पैशन फ्रूट का स्वाद चखने के बाद जब इन खूबसूरत चाय बागानों से सामना हुआ तो मन कह उठा
"..पहाड़ की ढलानों के साथ उठते गिरते चाय बागान और उनके बीचों बीच कई लकीरें बनाती पगडंडियाँ इतना रमणीक दृश्य उपस्थित करते हैं कि क्या कहें ! पर्वतों की चोटियों और बादलों के बीच छन कर आती धूप हरे धानि रंग के इतने शेड्स बनाती है कि हृदय प्रकृति की इस मनोहारी लीला को देख दंग रह जाता है। दिल करता है कि इन बागानों के बीच बिताए एक-एक पल को आत्मसात कर लिया जाए।.."
तो इस बार तो इतना ही अगले हफ्ते फिर चर्चा होगी यात्रा से जुड़े कुछ और प्रविष्टियों की। आपको ये यात्रा चर्चा कैसी लगी ये अवश्य बताएँ !
अरे वाह । आप तो छा गये । मज़ा आ गया । इसे तो आप पॉडकास्ट के रूप में पढ़ेंगे तो और मजा आयेगा । अब आप कहेंगे कि लिखने के लिए वक्त मिलता नहीं पॉडकास्ट कैसे करेंगे । तो भैया खुराफाती लोगों से दोस्ती करेंगे तो ऐसी ही सलाह दी जायेंगी ।
जवाब देंहटाएंईश्वर आपको पॉडकास्ट की ताकत दे ।
sundar prayaas ......bahut badhiyaa...
जवाब देंहटाएंयात्रा चर्चा -कम- यात्रा चिट्ठा ज्यादा होगा ,उम्मीद है। हार्दिक शुभकामना ।
जवाब देंहटाएंमजा आ गया.
जवाब देंहटाएंशानदार प्रयोग है यात्रा विवरणों का
अरे वाह!
जवाब देंहटाएंएक सार्थक एवं सफल प्रयास. आपकी कलम तो जिस दिशा में चल जाये, वही बहार आ जाये. बधाई.
जवाब देंहटाएंदूसरे यात्रा विवरण और उनके बारे मेँ विस्तार से लिखेँ -या बोलेँ !!
जवाब देंहटाएं( जैसा युनूस भाई ने कहा :) --
बहुत बढिया लगा ..
इसी को कहते हैँ
" दुनिया की सैर कर लो,
मनीष भाई के
"मुसाफिर हूँ यारोँ पे आकर " ;-))
-- लावण्या
बहुत सुंदर, इन यात्राओं का वृतांत तो उन ब्लॉग पर भी जाकर पढ़ा था, पर आपके शब्दों में एक जगह पढ़ कर मज़ा आ गाया... बहुत अच्छा और सफल प्रयास, जितनी तारीफ़ की जाए कम है.
जवाब देंहटाएंमजेदार ! शानदार !!जायकेदार !!!
जवाब देंहटाएंबढ़िया है। आगे का इंतजार है।
जवाब देंहटाएंअच्छी शुरुआत . पाठक ज़रूर आनन्दित होंगे .
जवाब देंहटाएंयात्रा चर्चा आप सबको अच्छी लगी ये जानकर खुशी हुई।
जवाब देंहटाएंयूनुस भाई ये दुआ करते कि भगवान मुझे आपके जैसी आवाज़ दे तब तो कोई बात होती । :)
दिक्कत समय से ज्यादा बैंडविड्थ की है। ब्रांडबैंड के बढ़ते बिल की वजह से जल्द तो मैं भी कोई Podcast और Video नहीं देखता तो लोगों से क्या उम्मीद करूँ कि वे सुनना पसंद करेंगे?
पर आपका सुझाव अब मन में अंकित हो गया है, प्रयोग के तौर पर आजमा कर देखूँगा।