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हिंदी का एक यात्रा चिट्ठा (An Indian Travel Blog in Hindi)
".....ब्यालाकुप्पे मैसूर के पश्चिम में स्थित कुशानगर नामक शहर के पास का इलाका है जिसमें १९६० के दशक में भारत आये करीब दस हज़ार तिब्बती लोग शरण ले रहे हैं। यहाँ के दर्शनीय स्थल हैं नामड्रोलिंग विहार और उससे लगा हुआ मंदिर।
इतना भव्य मंदिर तिब्बती लोगों की अपनी मातृभूमि से हज़ारों कोस दूर! भारत की यही रंग-बिरंगी विविधता मुझे अक्सर अचंभित कर देती है। मंदिर के अंदर गया तो बच्चन जी की `बुद्ध और नाचघर’ का स्मरण हो आया। भला बुद्ध और मूर्ति! कहीं मैं एक विरोधाभास के बीच तो नहीं खड़ा? इसी बौद्धिक मंथन के बीच मेरी नज़र राजस्थान से आये एक परिवार पर पड़ी।
चौखट को प्रणाम करके बुद्ध की मूर्ति के सामने इस परिवार के सदस्य उसी श्रद्धा से नत-मस्तक होकर खड़े थे जैसे वे अपने किसी इष्ट देव का ध्यान कर रहे हों। “जैसे भगवान हमारे, वैसे उनके“, यह भाव उनके चेहरे पर स्पष्ट था। मूर्तियाँ एक अमूर्त को मूर्त रूप प्रदान करती हैं। जिस रूप में सौंदर्य के दर्शन हों, उसी में मूर्ति ढाल लो और दे दो अपने देव का सांकेतिक स्वरूप। पहले बौद्धिक मंथन का समाधान हुआ तो मैं दूसरे में उलझ गया। विश्व के सभी लोग उसी समरसता के साथ क्यों नहीं रह सकते जिसके दर्शन मुझे अभी इस राजस्थानी परिवार में हुये। ..."
"...जैसलमेर के किले को यहां के भाटी राजपूत शासक रावल जैसल ने सन 1156 में बनवाया था । यानी आज से तकरीबन साढ़े आठ सौ साल पहले । मध्य युग में जैसलमेर ईरान, अरब, मिश्र और अफ्रीक़ा से व्यापार का एक मुख्य केंद्र था । दिलचस्प बात ये है कि इसकी पीले पत्थरों से बनी दीवारें दिन में तो शेर जैसे चमकीले पीले-भूरे रंग की नज़र आती हैं और शाम ढलते ही इनका रंग सुनहरा हो जाता है । इसलिये इसे सुनहरा कि़लायूनुस के पास किले को देखने के लिए मात्र दो घंटे थे। दो घंटों के इस अल्प समय में यूनुस को कौन-कौन से दृश्य सबसे ज्यादा भाए इसका राज मैं अभी नहीं खोलूँगा। ये नज़ारा तो आप इनके चिट्ठे पर जाकर उनके द्वारा ली गई मजेदार तसवीरों से ले सकते हैं।
कहा जाता है । आपको बता दें कि महान फिल्मकार सत्यजीत रे का एक जासूसी उपन्यास 'शोनार किला' इसी किले की पृष्ठभूमि पर लिखा गया है । त्रिकुट पहाड़ी पर बने इस कि़ले ने कई लड़ाईयों को देखा और झेला है । तेरहवीं शताब्दी में अलाउद्दीन खि़लजी ने इस कि़ले पर आक्रमण कर दिया था और नौ बरस तक कि़ला उसकी मिल्कियत बना रहा ।
"...पंजाब होने के कारण लहजा ठेठ पंजाबी है, मगर तलफ्फुज बिल्कुल साफ। मुल्क बनने के बाद उर्दू में तर्जुमा और आम जिंदगी में उनका इस्तेमाल बढा है-एक्सक्यूज मी की जगह बात सुनें और सिग्नल और रेड, यलो, ग्रीन लाइट के बदले इशारा। लाल, पीली और सब्ज बत्तियां, लेफ्ट और राइट के बदले उल्टे और सीधे हाथ कहने का प्रचलन है। बोलने से पहले अस्सलाम वालेकुम बोलना जिन्दगी का हिस्सा है, यहां तक कि फोन पर भी हैलो के बदले अस्सलाम वालेकुम।..."
".....मजहब और अल्लाह खून के कतरे की तरह समाया हुआ है - इंशाअल्लह, माशाअल्लाह, अल्लाह की मेहरबानी, अल्लाह का शुक्र वगैरह सहज तरीके से जबान में बस गए हैं।..."
"...बीएनयू की गर्ल्स हॉस्टल की वार्डन गजाला बताती हैं - हम जब इंडिया गए, तब हमने सोचा था, सबकुछ अलग होगा, पर हमारी लडकियों ने कहा - हाय अल्लाह। यहाँ की भैंसें तक हमारी भैंसों जैसी ही हैं।..."
"..इसके देखने के लिये कई टूर हैं और सबका पैसा अलग-अलग है हमलोगों ने सबसे सस्ता वाला टूर लिया इसमें ३५ कमरों का दिखाया जाता है। इसकी सबसे अच्छी बात है कि यह आपको एक माइक्रोफोन देते हैं। कमरे में जाकर बटन दबाइये तो वह उस कमरे के बारे में यह बताता है और उस कमरे के वर्णन के बाद रूक जाता है। अगले कमरे में जाकर पुन: बटन दबाने पर, उस कमरे के बारे में बताना शुरू करता है। महल के पीछे राजा का बाग है। यह जगह बहुत सुन्दर थी। हर तरफ हरे भरे लॉन हैं। वहां पर लोगों ने बताया कि गर्मी में यह और भी खूबसूरत लगता है।.."सारे लोग विदेश की हरी भरी वादियों का आनंद ले रहे हों ऐसी बात भी नहीं। अब हमारे सप्तरंगी नितिन बागला को देखिए, श्री शैलम के शिव मंदिर की उमस भरी गर्मी और भीड़ भड़क्का इन्हें भक्ति मार्ग से डिगा नहीं पाया। छः सौ पचास रुपये की टिकट खरीदी और चल दिए प्रभु के दर्शन को ! अब आगे क्या हुआ, इसका किस्सा वो कुछ यूँ बताते हैं...
चूंकि मंदिर का अंदरूनी भाग बहुत छोटा था और पब्लिक बहुत ज्यादा, सो गर्मी औए उमस भयंकर थी। कुछ AC लगे हुए दिखे पर काम नही कर रहे थे। हमने सोंचा कि हमें तो यहां से चन्द पल में चल देना है, बेचारे भगवान जी का क्या हाल होता था, जो हमेशा यहीं रहते हैं। एकदम मुख्य गृह तो और भी बहुत छोटा था और अंधेरा भी। पंडित लोग खडे थे जो किसी को २ सेकेंड से ज्याद मत्था नही टेकने देते । आप सिर झुकाइये..पीछे से वो आपको झुकायेंगे और उठा देंगे। हमने सिर टिकाया और जो पीछे से धक्का लगा तो भट्ट से सिर टकराया शिवलिंग से। हमने शिवजी से माफी मांगी और निकल लिये।