बात पिछले दिसंबर की है। कोचीन यानि कोच्चि में यहूदियों के प्रार्थना स्थल से डच पैलेस की ओर आ रहा था कि एक दुकान के बाहर दीवार पर ये पंक्तियाँ लिखी दिखाई दीं। दीवार पर लिखे बाकी ब्राड अंग्रेजों के ज़माने में बेहद प्रचलित थे।
इटली के यात्री निकोलस कोन्टी (Nicholas Conti) कोचीन के बारे में अपने यात्रा वृत्तांत में लिखा था कि
"आप चीन में खूब पैसा बना सकते हैं और कोचीन में खर्च कर सकते हैं।"
क्यूँ ना खर्च करें जब इतने कम दामों में पूरा शहर मिल रहा हो :) !
इस श्रृंखला की सारी कड़ियाँ
- यादें केरल की : भाग 1 - कैसा रहा राँची से कोचीन का 2300 किमी लंबा रेल का सफ़र
- यादें केरल की : भाग 2 - कोचीन का अप्पम, मेरीन ड्राइव और भाषायी उलटफेर...
- यादें केरल की : भाग 3 - आइए सैर करें बहुदेशीय ऍतिहासिक विरासतों के शहर कोच्चि यानी कोचीन की...
- यादें केरल की : भाग 4 कोच्चि से मुन्नार - टेढ़े मेढ़े रास्ते और मन मोहते चाय बागान
- यादें केरल की : भाग 5- मुन्नार में बिताई केरल की सबसे खूबसूरत रात और सुबह
- यादें केरल की : भाग 6 - मुन्नार की मट्टुपेट्टी झील, मखमली हरी दूब के कालीन और किस्सा ठिठुराती रात का !
- यादें केरल की : भाग 7 - अलविदा मुन्नार ! चलो चलें थेक्कड़ी की ओर..
- यादें केरल की भाग 8 : थेक्कड़ी - अफरातरफी, बदइंतजामी से जब हुए हम जैसे आम पर्यटक बेहाल !
- यादें केरल की भाग 9 : पेरियार का जंगल भ्रमण, लिपटती जोंकें और सफ़र कोट्टायम तक का..
- यादें केरल की भाग 10 -आइए सैर करें बैकवाटर्स की : अनूठा ग्रामीण जीवन, हरे भरे धान के खेत और नारियल वृक्षों की बहार..
- यादें केरल की भाग 11 :कोट्टायम से कोवलम सफ़र NH 47 का..
- यादें केरल की भाग 12 : कोवलम का समुद्र तट, मछुआरे और अनिवार्यता धोती की
- यादें केरल की समापन किश्त : केरल में बीता अंतिम दिन राजा रवि वर्मा की अद्भुत चित्रकला के साथ !
आपके पास पैसे हैं तो कुछ भी खरीद सकते हैं,क्योंकि आज का दौर बाज़ार का है,जहाँ सब कुछ बिकता है.
जवाब देंहटाएंअच्छी तस्वीर ली आपने... :-)
जवाब देंहटाएंमजेदार!
जवाब देंहटाएंहमारा नाम खरीदारों मे डाल दीजेये
जवाब देंहटाएंहम भी कोचीन खरीदने को तैयार हैं, बहुत बढ़िया ।
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