सोमवार, 10 दिसंबर 2018

पक्षियों के संग हजारीबाग के रंग A birding trip to Charwa Dam Hazaribagh

Top post on IndiBlogger, the biggest community of Indian Bloggers
राँची से हजारीबाग महज़ दो घंटे का रास्ता है। पिछले तीन दशकों में दर्जनों बार इस शहर से होते हुए गुजरा हूँ पर कभी भी ये शहर मेरी मंजिल नहीं रहा। पिछले हफ्ते हजारीबाग के पक्षी प्रेमी और शिक्षक शिव शंकर जी ने नेचर वॉक के एक कार्यक्रम में आमंत्रित किया और फिर राँची के कुछ अन्य प्रकृति और पक्षी प्रेमियों के साथ मिलकर वहाँ जाने का कार्यक्रम बन गया। 

नवंबर के आख़िरी हफ्ते के रविवार की सुबह सवा पाँच बजे घने अँधियारे में हम तीन पक्षी प्रेमी हजारीबाग की ओर कूच कर चुके थे। राँची में ठंड ने अपनी गुलाबी दस्तक दे दी थी। टोपी और जैकेट में सिकुड़े हम सब अपने शौक़ और कामकाज़ की बातों के बीच हँसी मजाक के तड़कों से वातावरण में गर्माहट घोल रहे थे। मेरे पर्वतारोही मित्र प्रवीण सिंह खेतवाल तो मेरी कई यात्राओं के सहभागी रहे हैं पर डॉ. शेखर शर्मा (जो एक शौकिया फोटोग्राफर भी हैं) से ये हम दोनों की पहली मुलाकात थी।


ओरमाँझी पहुँचते पहुँचते अपनी नींद को त्याग कर सूरज अपनी लाल पोशाक में साथ साथ सफ़र करने को तैयार हो गया था और खुशी की बात ये रही कि उसने पूरे दिन और शाम तक कभी भी बादलों को आस पास फटकने भी नहीं दिया ताकि हमारी छाया चित्रकारी निर्विघ्न चलती रहे।

सवा सात बजे हमारी गाड़ी हजारीबाग में प्रवेश कर चुकी थी। हजारीबाग को झारखंड के एक हरे भरे शहर के रूप में जाना जाता है। जैसा नाम से ही स्पष्ट है कि कालांतर में कभी ये जगह ढेर सारे बाग बागीचों से भरी पूरी रही होगी और तभी इसे हजार बागों के शहर के नाम से जाना गया होगा। हालांकि कि कुछ अंग्रेज लेखक इस नाम को इस इलाके के प्राचीन गाँव हजारी से भी जोड़ते हैं। ख़ैर सच जो भी हो आज इस शहर में बाग तो गिने चुने ही रह गए हैं पर शहर की चौहद्दी को घेरता एक घना जंगल आज भी है जिसे हजारीबाग राष्ट्रीय उद्यान के रूप में संरक्षित किया गया है। शहर से 18 किमी की दूरी पर वन्य जीव आश्रयणी भी है जहाँ का एक चक्कर मैं आप सबको पहले ही लगवा ही चुका हूँ

शिव शंकर जी वहाँ छात्रों के एक समूह के साथ हमारा पहले से इंतज़ार कर रहे थे। वहाँ पहुँचते ही लगभग आधा दर्जन छोटी बड़ी गाड़ियों में पूरा समूह छड़वा बाँध की ओर चल पड़ा। वैसे तो हज़ारीबाग में पक्षियों को देखने के लिए कई हॉटस्पाट हैं पर उनमें कैनरी हिल और छड़वा बाँध सबसे प्रमुख हैं। छड़वा बाँध अभी साइबेरिया, रूस और मंगोलिया से आने वाले प्रवासी पक्षियों का गढ़ बना हुआ है इसलिए पक्षियों के अवलोकन के लिए वही बिंदु ज्यादा उपयुक्त समझा गया। पन्द्रह बीस मिनटों में ही बाँध के पास पहुँच चुके थे।

अगीया ( Indian  Bush Lark )


बाँध की ओर हम कुछ ही कदम चले थे कि हमें भारतीय अगीया जिसे अंग्रेजी में इंडियन बुश लार्क कहा जाता है एक छोटे से पौधे के शीर्ष पर आसन जमाए बैठा मिला। सूर्य की दमकती पीली रोशनी के बीच इसके हल्के भूरे छोटे शरीर को देख पाना आसान नहीं था। अगीया एक ऐसा पक्षी है जो सूखे स्थानों में झाड़ियों के आस पास मँडराता है। गौरेया की तरह ये आपको शायद ही कभी तार या शाखाओं पर बैठा मिलेगा।

लार्क समुदाय के पक्षी अपने सर, परों और वक्ष पर के चित्तीदार नमूनों से पहचाने जाते हैं। अगीया की एक खासियत ये भी है कि प्रजनन के समय मादा का ध्यान आकर्षित करने के लिए नर ऊँची उड़ाने भरता है और नीचे पैराशूट की तरह उतरने के पहले पंखों से नर्तन करता दिखता है। इसका गीत भी मधुर होता है। बहरहाल मुझे तो ये चुप्पी साधे और हमारी ओर टकटकी लगाए देखता मिला।

अगीया की तस्वीर खींच ही रहा था कि आगे झुंड में लोगों को शिकारी पक्षी शिकरा दिखाई दिया। मैंने उस पर एक नज़र डाली ही थी कि वो मुँह घुमाकर दूसरी ओर देखने लगा। मैं भी धीरे धीरे उस पेड़ के समीप आ गया पर वो चित्र लेने के लिए एप्वाइंटमेंट देन के मूड में नहीं था, सो मन मार के मुझे आगे बढ़ना पड़ा। 

लंबी पूँछ वाला तिरंगा लहटोरा( Long Tailed Shrike Tricolour) जिसे कहीं कही लटोरा भी कहा जाता है।

हम लोग छड़वा बाँध के जलाशय की तरफ जिस राह से बढ़ रहे थे वो राह चार पाँच फुट के झाड़ीनुमा पौधों के बीच से गुजरती थी। ऐसे इलाके लहटोरे के लिए बिल्कुल मन माफिक होते हैं और कुछ ही देर में मुझे लंबी पूँछ वाले लहटोरे के दर्शन हो ही गए। ये लहटोरे से इस साल की मेरी तीसरी मुलाकात थी। फरवरी में दुधवा और सितंबर में किन्नौर की सांगला घाटी में दिखने के बाद ये हजारीबाग में भी दिख गया। लंबी पूँछ वाले लहटोरे की कई उप प्रजातियाँ हैं जिनमें काले सिर वाला लहटोरा तिरंगा लहटोरा या Tricolour के नाम से जाना जाता है। किन्नौर में में जो लहटोरा मुझे दिखा था उसका सिर स्याह रंग का था।  

 पतरिंगा (Green Bee Eater)
मेरी अगली मुलाकात आसानी से दिख जाने वाले इस पतरिंगे से हुई। राँची में मेरे घर के आस पास झुंड में ये लगभग मुझे रोज़ ही नज़र आता है। उड़ते उड़ते ही कीट पतंगों का शिकार करने वाला ये हरे रंग का पक्षी जब उड़ता है तो इसकी एंटीने के समान पूँछ देख कर इसे आप दूर से ही  पहचान सकते हैं। अगर संयोग से आप इसकी तस्वीर एक बार में नहीं भी खींच पाए तो निराश मत होइएगा। इसकी आदत है कि ये जिस डाल से उड़ान भरता है अक़्सर उसी पर ग्लाइड करता हुआ वापस आकर बैठता है। सुबह सुबह आप अक्सर इन्हें झुंड में तार या फिर किसी डाल पर बैठे देख सकते हैं।

हजारीबाग सब्जियों की खेती के लिए जाना जाता है। चित्र में टमाटर के खेत
अब हमें टमाटर के खेतों को पार करते हुए जलाशय के किनारे तक पहुँचना था। मिटटी गीली थी और हम सभी सँभल सँभल कर आगे बढ़ रहे थे। एक गलत कदम हमारी पतलून का हुलिया खराब करने के लिए काफी था।  टमाटर के पौधों के बीचो बीच लगे डंडों पर लहटोरे, मुनिया और अगीया बार बार आ कर बैठ रहे थे़। एक बार उनकी तस्वीर ले चुकने के बाद हमारा ध्यान अब जलीय पक्षियों की ओर हो चला था। अब हम पानी के एक किनारे के काफी करीब पहुँच चुके थे पर जलीय पक्षी बाँध की दूसरी ओर तैर रहे थे। दूरबीन और कैमरे के बिना नंगी आँखों से उन्हें पहचान पाना बेहद मुश्किल था।

अपने अपने लक्ष्यों पर "कैमराभेदी" नज़र
सरपट्टी सवन (Bar Headed Goose) यही प्रवासी पक्षी था हमारी इस नेचर वॉक का मुख्य आकर्षण
हजारीबाग में हर साल नवंबर के महीने में प्रवासी पक्षी आने लगते हैं। दूरबीन पर नज़रें गड़ाने पर वहाँ Common Pochard, लाल सिरी (Red Crested Pochard), Tufted Duck, छोटी पनडुब्बी (Little Grebe), सुरखाब (Ruddy Shellduck) , झिरिआ (Little Ringe Plover) जैसे तमाम जलीय पक्षी दिखे। तभी सिर पट्टी सवन जिन्हें खास तौर पर देखने हम सब आए थे वहाँ कई जत्थों में आ पहुँचे। 

गर्मियों में ये पक्षी मध्य एशिया की ऊँचाई पर स्थित झीलों के आस पास अपना अड्डा जमाते हैं। झीलों के अगल बगल की घास ना केवल इनके आहार का काम करती है बल्कि वहीं इनका घोंसला भी बनता है। इस पक्षी की पहचान इसके सिर पर काली धारियों का होना है। मध्य एशिया के देशों में गर्मी बिताने के बाद ये पक्षी हिमालय पार कर भारत के विभिन्न हिस्सों में जाड़े में आ जाते हैं। ऍसा करते हुए ये हजारों किमी की यात्रा करता है और सबसे मजेदार बात तो ये कि पहाड़ पार करते समय इन्हें आठ हजार मीटर की ऊँचाई के भी ऊपर से उड़ते देखा गया है। 

सरपट्टी सवन (Bar Headed Goose) की उड़ान

लंबी पूँछ वाले लहटोरे से तो मेरी पुरानी मुलाकात थी पर भूरे लहटोरे से मैं यहाँ पहली बार मिल रहा था। दरअसल लहटोरे की प्रजाति अपनी आँख और माथे पर चलती काली पट्टी से पहचानी जाती है। कई लोग हँसी में इनकी तुलना आँखों में काली पट्टी बाँधे डकैतों से कर देते हैं। वैसे ये तुलना नाजायज़ भी नहीं। सामान्य सा दिखने वाले इस प्रजाति के पक्षी एक बेहद निर्मम शिकारी होते हैं। ये सामान्यतः कीड़ों, छिपकलियों और छोटे पक्षियों का शिकार करते हैं। अपने शिकार पर काबू करने के बाद कई बार ये उसे काँटेदार झाड़ियों और पौधों पर दे मारते हैं। काँटों में इस तरह भोजन को लटकाकर खाने की वजह से इन्हे कसाई पक्षी (Butcher Bird) भी कहा जाता है। 

भूरा लहटोरा (Brown Shrike) जिसे पक्षी प्रेमी एक बेरहम शिकारी के रूप में जानते हैं।

ढाई घंटे की इस नेचर वॉक के बाद एक दूसरे से मिलने और गपशप का दौर चला। 
फेसबुक की जान पहचान यहाँ आकर प्रत्यक्ष मुलाकात का रूप ले सकी।
ललित विजय यानि गौतम से फेसबुक पर मित्रता तो यात्रा लेखकों और ब्लॉगरों के मंच से हुई थी पर देखिए हमारी मुलाकात का कारण हम दोनों का पक्षी प्रेम बना। वे यहाँ के रहने वाले हैं और हमारे साथ इस नेचर वाक के बाद भी रहे।  गौतम की सबसे बड़ी खूबी ये है कि पुस्तकों को पढ़ने के लिए खासा वक़्त निकालते हैं और इस मुलाकात में उन्होंने एक पुस्तक और थमा दी (एक गौरेया का गिरना) जिसके लिए मैं उनका शुक्रगुजार हूँ।उनके आलावा राँची से आए हुए एक और पक्षी प्रेमी निरोज कुमार से भी मुलाकात हुई। निरोज काम के सिलसिले में झारखंड के शहरों की खाक छानते हुए पक्षियों से मिलने का कोई मौका नहीं छोड़ते ।

हज़ारीबाग के ललित विजय के साथ राँची से जुटे पक्षी प्रेमी 
कार्यक्रम में आए कालेज के बच्चों का उत्साह खूब था। पक्षियों के बीच इस तरह आने का उनका पहला अनुभव था। शिवशंकर जी के मार्गदर्शन में वे सभी यहाँ से कम से कम दस बारह नए पक्षियों के बारे में जानकर गए।
पक्षियों के पीछे तो बहुत भाग लिए अब थोड़ा सुस्ता लें।
छड़वा बाँध पर ही हल्का जलपान कर राँची से आए लोगों के साथ मैं शहर के एक और लोकप्रिय बिंदु हज़ारीबाग झील की ओर चल पड़ा। हज़ारीबाग का हरा भरा रूप शहर के इसी इलाके में ज्यादा उभर कर आता है। झील के बीचो बीच फव्वारे की पाइपलाइन पर पनकौवों ने अपना साम्राज्य स्थापित किया हुआ था। झील और उसके आसपास पेड़ों पर पनकौवों की तीनों प्रजातियाँ छोटा पनकौवा (Lesser Cormorant), बड़ा पनकौवा (Greater Cormorant) और भारतीय पनकौवा (Indian Cormorant) मौज़ूद थीं। झील के एक हिस्से में यहाँ महात्मा गाँधी की मूर्ति लगी है और उसके दूसरे ओर अंग्रेजों के ज़माने में बनी यहाँ की जेल है।

हजारीबाग़ झील पर था पनकौवों  की सेना का आधिपत्य (Cormorants)
कमल का फूल और उसका रस लेता एक पतंगा 

कैनरी हिल के ऊपर बना वन विभाग का अतिथि गृह
हजारीबाग झील से निकलने के बाद मन हुआ कि एक दर्शन यहाँ की मशहूर कैनरी हिल का भी कर लिया जाए। कैनरी हिल को आप हजारीबाग शहर का फेफड़ा भी कह सकते हैं। शहर के मध्य में स्थित इस पहाड़ी के ठीक ऊपर वन विभाग का अतिथि गृह है जहाँ के कक्ष से खिड़की खोलते ही से आप दूर दूर तक फैले घने जंगलों का नज़ारा ले सकते हैं। सुबह और शाम  पक्षियों का अवलोकन करने के लिए ये जगह सबसे उपयुक्त है।  

पहाड़ी के बीच जंगलों में चहकदमी करते हुए थोड़ा समय बिताने के बाद हम सबने हजारीबाग से विदा ली। थोड़ी दूर चलने के बाद ये निर्णय लिया गया कि शाम का समय पतरातू बाँध के पास बिताया जाए। इसी बहाने वहाँ पर भी पक्षियों की आवाजाही देख ली जाएगी।
कैनरी हिल के सामने दिखते हैं ये घने जंगल
ऊपर सफेद ड्रोन कैमरा की मदद से नाव पर खड़ा  युवा जोड़ा अपनी शादी के पूर्व की स्मृतियों को यादगार बना रहा था।

रविवार की शाम को जब पतरातू जलाशय के पास पहुँचे तो वहाँ सप्ताहांत बिताने वालों की अच्छी खासी गहमागहमी दिखी। जिस तरह दिल्ली में लोदी गार्डन प्री वेडिंग शूट का केंद्र है वैसे ही पतरातू जलाशय राँची वालों का। वहाँ ड्रौन कैमरे से एक फोटोशूट चल रहा था।  युवा जोड़े की नाव पर पर पड़ती ढलते सूरज की रोशनी और पीछे पतरातू की पहाड़ियों के बीच फैलाव लिए नीला जल एक बेहद खूबसूरत दृश्य उपस्थित कर रहा था। पक्षियों को भूल कर कुछ देर हम भी इस खूबसूरत मंज़र का आनंद लेते रहे।
सफेद वक्ष वाला किलकिला (White Breasted Kingfisher )
छोटी पनडुब्बी के साथ लाल सिरी का एक बड़ा  झुंड यहाँ भी तैरता दिखाई दिया। तट के किनारे काली जलमुर्गी (Common Moorhen) भी दिखाई पड़ी। वैसे ये बात ध्यान देने की है कि किशोरावस्था में इस जलमुर्गी का रंग हल्का भूरा और आगे सफेदी लिए होता है पर व्यस्क रूप में इसकी चोंच लाल और रंग काला हो जाता है। जलमुर्गी तट पर भोजन की तलाश कर रही थी और उससे कुछ फीट ऊपर एक झाड़ी पर बैठा ये किलकिला पानी में अपने शिकार की टोह ले रहा था। काफी देर बैठने के बाद इसने अपने खूबसूरत नीले भूरे पंखों से पानी के समानांतर उड़ान भरी और तेजी से डुबकी लगाकर शिकार की और लपका पर दुर्भाग्य से शिकार छिटक गया और वो वापस उसी जगह लौट आया ।

संभवतः काला सिर गंगाचिल्ली  (Black Headed Gulls)

लालसिरी भले ही हमसे काफी दूर तैर रही थी पर ये गंगाचिल्ली पर्यटकों के साथ नाव के अगल बगल भोजन की चाह में चलती जा रही थी। लद्दाख की पागोंग त्सो में मैंने इससे पहले भूरे सिर वाली गंगाचिल्ली (Brown Headed Gull)  देखी थी पर गैर प्रजनन काल में इनके सिर का रंग सफेद हो जाता है और तब इन्हें काले सिर वाली गंगाचिल्ली से सिर्फ पुतलियों के रंग के आधार पर अलग किया जा सकता है। मेरे पास जितने चित्र थे वो मुझे इनके काले सिर वाली प्रजाति होने की गवाही देते रहे। सूर्यास्त के साथ अगली मुलाकात का वादा कर हमने पक्षियों से विदा ली।

हमारी इस यात्रा को दैनिक हिंदुस्तान मैं बाद में ये छोटी सी जगह भी मिली।


अगर आपको मेरे साथ सफ़र करना पसंद है तो Facebook Page Twitter handle Instagram  पर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराना ना भूलें। 

20 टिप्‍पणियां:

  1. अहा ! आपकी इस पोस्ट को पढ़कर दिल खुश हो गया ।

    जवाब देंहटाएं
  2. शिव शंकर जी की नेचर वाक अच्छी लगी....पक्षियों की जानकारी बहुत ज्यादा न होने की वजह से यह कम ही समझ आता है....बढ़िया जानकारी...ललित विजय जी को हम पढ़ते रहते है...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जब व्यक्ति शुरुआत करता है तो ऐसा ही लगता है। उत्तर प्रदेश सरकार ने जब मुझे बतौर यात्रा लेखक अपने बर्ड फेस्टिवल में बुलाया तो विशेषज्ञों के साथ रहने की वजह से मुझे भी इस विषय में रुचि जागृत हुई और अब तो घूमने के साथ-साथ पक्षियों को देखना समझना बेहद प्यारा लगने लगा है।

      हटाएं
  3. हर बार की तरह , आपको विस्तृत में पढ़ना बहुत सुकुन देता है ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. अच्छा लगा जानकर कि आलेख पर मेरी मेहनत सफल हुई।

      हटाएं
  4. उत्तर
    1. Thanks. I am still learning Indu. The more you learn the more you will enjoy bird watching.

      हटाएं
  5. These are excellent photos, Manish! This trip reminds me of Dudhwa. :) But I think this one is even better. Was it?

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. Thanks for liking the pics. Dudhwa was huge. This was a small site in comparision. In Dudhwa as a travel blogger we were novice bird watchers. It was difficult to remember and identify the name of birds as told by experts. For last ten months I tried to observe birds around me and also read quite a lot and in the process I am able to locate and identify birds much more easily. That's why it has become much more enjoyable hobby on which I can also write about.

      हटाएं
  6. Very nice. Hazaribagh was best part of my childhood. The cycle trips to lake and the hills...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. Yeah I too liked the area from lake up to the Canary Hill. However upkeep of other portions of the city was not that good.

      हटाएं