श्रीनगर लेह राजमार्ग पर चलते हुए अब तक मैंने आपको सोनमर्ग, जोजिला, द्रास घाटी और द्रास युद्ध स्मारक तक की सैर कराई। द्रास के युद्ध स्मारक और संग्रहालय को देखने के बाद हमारा अगला पड़ाव था कारगिल। पर इससे पहले कि मैं अपनी इस यात्रा के बारे में बताऊँ, लद्दाख जाने वालों के लिए बस यही कहना चाहूँगा कि ये एक ऐसा इलाका है जहाँ किसी भी पड़ाव से ज्यादा महत्त्वपूर्ण वहाँ तक पहुँचाने वाली रहगुज़र है।
द्रास से चले अब हम कारगिल की ओर |
कलकल छलछल बहती द्रास |
जहाँ तक मेरे व्यक्तिगत अनुभवों का सवाल है मुझे तो अपनी लगभग दस दिनों की कश्मीर लद्दाख यात्रा में मुझे तो इन रास्तों से प्यार हो गया और इनकी खूबसूरती ही मेरी इस यात्रा का हासिल रहा। इसीलिए मैं आपको ये रास्ता चित्रों के माध्यम से लगातार दिखा रहा हूँ और आगे भी दिखाता रहूँगा और इसी कड़ी में आज देखिए द्रास से कारगिल तक की मेरी यात्रा की एक झाँकी।
ऊपर नंगे पहाड़ और नीचे हरा भरा नदी का तट |
द्रास से कारगिल की दूरी करीब 64 किमी है। द्रास घाटी के खुले चारागाहों से विपरीत कारगिल की ओर बढ़ती सड़क संकरी है और इसके दोनों ओर पहाड़ बेहद करीब लगभग साथ साथ चलते हैं। कारगिल और द्रास से लगा ये इलाका एक समय प्राचीन बलतिस्तान की एक तहसील थी। जम्मू कश्मीर के डोगरा राजाओं ने उन्नीस वी शताब्दी के मध्य में बलतिस्तान और गिलगित के इलाकों पर अपना कब्जा जमाया था। उस समय इसका फैलाव उत्तर पश्चिम में स्कार्दू से लेकर नुब्रा घाटी के तुर्तुक तक था।
कारगिल से 29 किमी पहले |
भारत की आजादी के बाद जब जम्मू कश्मीर का भारत में विलय हुआ तो गिलगित बलतिस्तान का ज्यादातर हिस्सा पाकिस्तान के नियंत्रण में आ गया। आज भी कारगिल से एक सड़क पीओके में स्थित स्कर्दू में जाती है। भारत की इच्छा इस मार्ग को खोल देने की रही है पर हमारा पड़ोसी ऐसा नहीं चाहता। जिस तरह लेह भारत के लोगों के लिए गर्मियों में आकर्षण का केंद्र रहता है वैसे ही काराकोरम और नंगा पर्वत जैसी विशाल चोटियों से घिरे स्कर्दू में देश विदेश से पर्यटक आ कर डेरा डालते हैं। स्कर्दू (Skardu) से सतपारा (Satpara) झील तो पास है ही। यहीं से विश्व के दूसरे सबसे ऊँचाई पर स्थित मैदान देवसाई और विशाल ग्लेशियर बालतोरो के लिए ट्रेक भी आरंभ होते हैं।
पाकिस्तान की ओर से आती शिंगो नदी जो मिल जाती है द्रास नदी में |
द्रास और कारगिल के बीच काकशर, खारबू और खरूल जैसे छोटे छोटे गाँव मिलते हैं। ये गाँव नदी के किनारे की हरी भरी जमीन में बसे हैं। काकशर के पास POK की तरफ से आती हुई शिंगो नदी द्रास में मिल जाती है। कुछ ही किमी आगे बढ़ने पर ये नदियाँ कारगिल से आती हुई सुरु नदी के साथ संगम बनाती है। सुरु नदी जास्कर की तरफ बहती हुई सिन्धु नदी में मिल जाती है। इस इलाके की जो थोड़ी बहुत आबादी है वो इन्हीं नदी घाटियों के आस पास खेती और पशुपालन से अपनी जीविका का निर्वाह करती है।
खरूल के पास द्रास और सुरु नदी का संगम |
कारगिल से थोड़े आगे से बटालिक के लिए एक रास्ता कटता है । बटालिक कारगिल से 56 किमी दूर है और यहाँ बौद्ध और मुस्लिमों की मिश्रित आबादी है। कारगिल युद्ध के दौरान बटालिक सेक्टर में भी कठिन लड़ाइयाँ लड़ी गयी थीं। खलुबर, जुबर और कुकराथांग को कब्जे में लाने के लिए लड़े गए युद्ध हमारे सैनिकों की बहादुरी की अद्भुत मिसाल हैं। बटालिक युद्ध के नायक मनोज कुमार पांडे के नाम की एक गैलरी उनकी प्रतिमा के साथ द्रास युद्ध स्मारक के संग्रहालय में देखी जा सकती है। अगर कारगिल दो दिन रहना हो तो एक दिन आप बटालिक और LOC के पास जा कर भी आ सकते हैं।
खरूल के आगे शिलिक्चे गाँव, चित्र में एक मस्जिद का गुंबद दिखा आपको? |
कारगिल शहर में शाम के करीब पाँच बजे हम पहुँच चुके थे। इतवार का दिन था इसलिए उस वक़्त भी बाजार बंद ही नज़र आ रहे थे। शहर की शांति को अगर कोई तोड़ रहा था तो वो थी सुरु नदी का तेज बहाव। कारगिल में वैसे तो कई होटल हैं पर ज्यादातर लोग जोजिला रेसीडेंसी या डी जोजिला में रुकना पसंद करते हैं। होटल में पहुँचने का बाद उस वक़्त हमारी खुशी का ठिकाना नहीं रहा जब हमने देखा कि कमरे के दरवाजे के सामने का हिस्सा सीधा नदी के ही दर्शन कराता है।
कारगिल शहर से होकर बहती सुरु नदी |
एक घुमाव लेकर कारगिल शहर की ओर बहती नदी के किनारे कारगिल का पर्यटक सूचना केंद्र बना है। नदी की दूसरी तरफ ऊँचाई की ओर ऊपर एक सड़क जाती दिख रही थी और उसके आसपास कुछ कस्बे दिख रहे थे। पूछने पर पता चला कि वो लेह की ओर जाने वाला आगे का रास्ता है। अगली सुबह हम जब उस रास्ते पर थे तो हमें कई दुकानें और इमारत दिखीं जिन्हें कारगिल युद्ध के समय मोर्टारों से छलनी किया गया था। थोड़ी देर बहती नदी के इस रूप का आनंद लेने के बाद उसके किनारे टहलने का मन हो आया। पर सड़क पर बढ़ गए ट्राफिक की वजह से आधा एक किमी चलकर वापस लौट आए।
सुरु नदी के किनारे बना हुआ कारगिल का पर्यटक सूचना केंद्र |
होटल के जिस नए बन रहे हिस्से में हम ठहरे थे वहाँ एक नया मेहमान आ गया था। उसकी आवाज़ जानी पहचानी सी लगी तो मैं अपने कमरे से बाहर निकल गया। वो शख़्स अपने गाड़ीवाले से आगे की रास्ते के बारे में तहकीकात कर रहा था। मैंने जब उसे गौर से देखा तो तुरंत पहचाना कि ये तो दबंग की संगीतकार जोड़ी साज़िद वाज़िद वाले साज़िद हैं। जिन लोगों ने सा रे गा मा पा के पुराने एपिसोड को देखा होगा वो इनके चेहरे से बखूबी वाकिफ़ होंगे क्यूंकि ये जोड़ी उस लोकप्रिय कार्यक्रम में कई साल तक गुरु की भूमिका अदा कर चुकी है।
होटल डी जोजिला के हमारे पड़ोसी मशहूर संगीतकार जोड़ी साज़िद वाज़िद के साज़िद के साथ मेरा परिवार |
उन्हें जब पता चला कि मैं यात्राओं और संगीत में दिलचस्पी रखता हूँ तो मुझे उन्होंने साथ चाय पीने का आमंत्रण दे डाला। फिर सुरु नदी के पास खुले अहाते में उनसे तब तक गपशप हुई जब तक शाम के अँधेरे और बढ़ती ठंड ने हमें अपने कमरों में जाने पर मजबूर नहीं कर दिया। वे बताने लगे कि उनका कश्मीर का कार्यक्रम अचानक ही बन गया था। लेह के बारे में उन्हें ज्यादा मालूम नहीं था सो वो गुलमर्ग और पहलगाम देख कर ही लौटने वाले थे। फिर किसी ने उनसे लेह की खूबसूरती का जिक्र किया तो वो गाड़ी ले कर इधर निकल पड़े। उनके पास जितना समय था उस हिसाब से मैंने इस बात का मार्गदर्शन कर दिया कि उन्हें कहाँ कहाँ जाना चाहिए।
अचानक हुई ये मुलाकात आधे घंटे की गपशप में बदल गयी। |
फिर बात उनके उन गीतों की होने लगी जो मेरे बेहद पसंदीदा रहे हैं। मेरे संगीत ब्लॉग के बारे में जानने के बाद उन्होंने मजाक मजाक में मुझे कहा कि आप तो मेरा ब्लॉग के लिए एक इंटरव्यू ही ले लेते। घूमने से क्या उन्हें संगीत बनाने की प्रेरणा मिलती है, ऐसा पूछने पर वो बोले कि कश्मीर घाटी में मुझे गड़ेरियों का रहन सहन और उनका भेड़ों के साथ वादियों में भटकना मन में एक खूबसूरत अहसास दे गया। कभी ऐसी परिस्थिति हाथ लगी तो उन पर जरूर एक गाना बनाऊँगा।
घर के अंदर लकड़ी के चूल्हे पर सिंकती रोटी |
सुबह सुबह सूर्य की रोशनी पर्वत की चोटियों को चूमती हुई फैलती है वो मंज़र देखने वाला होता है। सुबह बड़ी जल्दी शहर में चहल पहल शुरु हो गयी थी। इतवार की खुमारी टूट चुकी थी। बगल के घर में लकड़ी के चूल्हे पर रोटियाँ सिकते दिखीं तो इस अलग से चूल्हे को कैमरे में क़ैद करने के मोह को त्याग नहीं सका।
सुरु नदी घाटी और कारगिल |
कारगिल से आगे अब हमें चम्पा, फोतु ला होते हुए लामायुरु की तरफ़ अपनी यात्रा आरंभ करनी थी। जो राजमार्ग हमे होटल से दिख रहा था वहाँ से नीचे देखने पर सुरु नदी के साथ बसा कारगिल शहर स्पष्ट रूप से दिखता है। इसलिए कारगिल शहर छोड़ने के दस मिनट बाद बाँयी ओर की खिड़की पर जरूर कब्जा बना कर रखें वर्ना इस खूबसूरत दृश्य को देखने से वंचित रह जाएँगे।
चित्र को बड़ा कर देखेंगे तो सुरु नदी के किनारे बसा कारगिल का पूरा शहर दिखेगा। |
इस श्रंखला की अगली कड़ी आपको पहुँचाएगी चम्पा, फोतुला और लामायुरु तक। चम्पा की चट्टान पर उकेरी विशाल बौद्ध प्रतिमा के चरणों पर रखा चढ़ावा आपको इस आधुनिक दुनिया के बदलते रंगों से चकित जरूर करेगा। अगर आपको मेरे साथ सफ़र करना पसंद है तो Facebook Page Twitter handle Instagram पर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराना ना भूलें।
बहुत सुन्दर...दिखाते रहें
जवाब देंहटाएंबस यूं ही आप भी देखते रहें
हटाएंलोकल पब्लिक से किसी प्रकार का भय तो नहीं था? उनका स्वभाव कैसा मिला?
जवाब देंहटाएंजहां तक द्रास, कारगिल और लेह की बात है यहां के नागरिक भारतीय सेना और भारत के प्रति देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत हैंं। आपको लद्दाख में सारे लोग मित्रता पूर्वक ही बात करते नजर आएंगे। लेह लद्दाख में किसी तरह के भय का कोई सवाल ही नहीं है।
हटाएंहम फेसबुक पर आपको बराबर फॉलो करते हैं।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद, अच्छा लगा जानकर !
हटाएंकारगिल शहर के पास आते ही नदी मे पानी कम दिखाई दे रहा है। जबकि पीछे से काफी अधिक। ऐसा क्य़ों?
जवाब देंहटाएंआखिरी चित्र में बाँयी ओर से सुरु नदी आ रही है. यहाँ इसका पाट काफी चौड़ा है इसलिए आपको इसकी कई धाराएँ दिखाई दे रही हैं। चित्र के दाहिने आगे और बढ़ने पर कारगिल शहर के मुख्य इलाके के पाससे गुजरते हुए सारी धाराएँ एक धारा में मिल जाती हैं इसलिए वहाँपानी का प्रवाह बढ़ा हुआ नज़र आ रहा है।
हटाएंसर आपका बहुत ही आकर्षक ट्रेवल ब्लॉग हैं. आपके द्वारा ली गाय एक एक तस्वीर को देखकर ऐसा लगता हैं. कि अभी बैग पैक करें और चल पड़े कारगिल की ओर
जवाब देंहटाएंशुक्रिया पूजा..आप के मन में इस जगह जाने की इच्छा मैं जगा सका जानकर खुशी हुई।
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