लंदन शहर का एक छोटा सा चक्कर तो आपको पिछले हफ्ते ही लगवा दिया था पर साथ में ये वादा भी था कि अगली सैर लंदन के विश्व प्रसिद्ध संग्रहालय मैडम तुसाद की होगी। यूँ तो मैडम तुसाद के संग्रहालय अब विश्व के कोने कोने में खुल रहे हैं और अगले साल तो अपनी दिल्ली भी इस सूची में शामिल हो रही है पर लंदन का संग्रहालय इनका जनक रहा है इसलिए इसे देखने के लिए हमारे समूह के सहयात्रियों में खासा उत्साह था। बस में सवार बच्चे व युवा तो अपने चहेते कलाकार व खिलाड़ी के साथ तस्वीर खिंचाने की जैसे बाट ही जोह रहे थे।
क्रिकेट के शहंशाह सचिन तेंदुलकर |
इतनी मशहूर जगह हो और वहाँ पहुँचने के लिए लंबी कतार ना हो ऐसा कैसे हो
सकता है? वैसे भी मैडम तुसाद का गुंबदनुमा संग्रहालय रिहाइशी इलाके के बीचो
बीच स्थित है। लंदन के अन्य दर्शनीय स्थानों के मुकाबले इसके आस पास कोई
खाली जगह नहीं हैं। लिहाज़ा कांउटर पर लगने वाली पंक्ति सड़कों तक बिखर जाती
है। टिकट पहले से लेने पर भी कतार में इसलिए खड़ा होना पड़ रहा था क्यूँकि
अंदर पहले से ही काफी लोग थे। अपनी बारी की प्रतीक्षा करता हुआ मैं सोच रहा
था आख़िर ये कौन सी मैडम होंगी जिनके नाम से मोम के ये पुतले अपनी ये
पहचान बना पाए हैं? तो इससे पहले की संग्रहालय के अंदर कदम रखा जाए कुछ
बातें इसके रचयिता के बारे में भी जान लीजिए।
मैडम तुसाद, लंदन Madame Tussauds, London |
ये संग्रहालय मेरी ग्रोज़ होल्ट की देन है। मेरी ब्रिटेन में नहीं बल्कि फ्रांस में पैदा हुई थीं। उनकी माँ स्विटज़रलैंड के एक डा. फिलिप के यहाँ काम करती थीं। डा. फिलिप को मोम के प्रारूप बनाने में महारत हासिल थी। उन्होंने ही मेरी को मोम के इन पुतलों पर काम करना सिखाया। जानते हैं मेरी ने अपने हाथों से पहला पुतला आज से करीब तीन सौ चालीस साल पहले बनाया था। पर लोगों तक अपने और डा. फिलिप के संग्रह को पहुँचाने का काम उन्होंने अठारहवीं शताब्दी की आख़िर से शुरु किया।
तुसाद का उपनाम उन्हें शादी के बाद मिला। मेरी ने उस दौरान पूरे यूरोप में घूम घूम कर अपने शो किए और तबसे इस प्रदर्शनी का नाम मैडम तुसाद पड़ गया। मेरी जब अपने शो के सिलसिले में 1830 में लंदन आयी तो फिर वापस युद्ध की वज़ह से फ्रांस नहीं लौट पायीं। लंदन में पहले उन्होंने बेकर स्ट्रीट पर ये संग्रहालय बनाया और बाद में वहाँ जगह की कमी की वज़ह से उनके पोते द्वारा इसे मालबो स्ट्रीट में ले आया गया जहाँ ये आज भी स्थित है।
मैडम तुसाद में भारतीय फिल्मी सितारे |
भारत से आनेवालों के मैडम तुसाद से प्रेम का ही ये नतीज़ा है कि संग्रहालय में घुसते ही आप अपने को बॉलीवुड के फिल्मी सितारों से भरी दीर्घा में पाते हैं। जितने वास्तविक यूरोपीय शख़्सियत के पुतले लगते है् वो बात भारतीय अदाकारों के इन पुतलों में नज़र नहीं आती। अमिताभ, शाहरुख, सलमान, माधुरी, ऐश्वर्या , कैटरीना...लंबी फेरहिस्त है यहाँ भारतीय फिल्मी हस्तियों की पर सब के सब चेहरे की भाव भंगिमाओं के निरूपण में बाकी विदेशी जनों से उन्नीस ही नज़र आए। हमारे राजनेताओं में महात्मा गाँधी और इंदिरा गाँधी के पुतले भी हैं यहाँ पर और अब तो हमारे प्रधानमंत्री मोदी का पुतला भी यहाँ की शोभा बढ़ रहा है ।
इसे कहते हैं पोज़ देना 😀 |
मुझे इन आभासी पुतलों में अल्बर्ट आइंस्टीन और राजकुमारी डॉयना का पुतला सबसे बेहतरीन लगा। अल्बर्ट आइंस्टीन के उड़ते सफेद बालों के साथ चेहरे की झुर्रियों को इतनी स्पष्टता से उतारा है शिल्पियों ने कि लगता है कि वो सामने खड़े होकर पढ़ा रहे हों। सबसे बड़ी बात है कि जो लोग यहाँ आते हैं वो इस अदा के साथ इन पुतलों के साथ फोटो खिंचाते हैं कि पुतले सजीव हो उठते हैं। अब इन बाला को देखिए आइंस्टीन के गले में यूँ हाथ डाले हैं मानो वो बचपन के लंगोटिया यार रहे हों।
मरलिन मुनरो :अब इससे अच्छा फ्लाइंग किस और क्या हो सकता है? |
ग्रेट ऐक्सपेक्टेशंस के लेखक चार्ल्स डिकेंस Charles Dickens |
स्कूल के ज़माने में हमें शेक्सपियर के कई नाटक संक्षिप्त रूप में पढ़ने पड़े थे।। सच बताऊँ तो मुझे उन अध्यायों से गुजरना नागवार लगता था। पर जहाँ तक चार्ल्स डिकेन्स का सवाल आता है मुझे उनकी कृति ग्रेट ऐक्सपेक्टेशंस कॉलेज के ज़माने में बहुत पसंद आई थी। लगातार दो दिनों में तब ये किताब ख़त्म की थी मैंने। पिप, स्टेला और बिडी के किरदार हफ्तों दिलो दिमाग पर छाए रहे थे। इसलिए अपनी Great Expectation के साथ चार्ल्स यूँ नज़र आए तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा।
विलियम शेक्सपियर |
मैडम तुसाद में सिनेमा, खेल, संगीत, राजनीति, विज्ञान, कला और यहाँ तक कि लोकप्रिय कार्टून चरित्रों का अच्छा खासा जमावड़ा है। शायद ही ऐसा कोई व्यक्ति हो जिसे अपना कोई प्रेरणा स्रोत यहाँ नहीं मिलेगा। इसीलिए ये संग्रहालय हर आयु वर्ग के लोगों को चमत्कृत करने के साथ हँसी खुशी के दो पल भी दे जाता है।
गायिका ब्रिटनी और मैं 😃 Britney Spears |
फिलहाल विश्व का सबसे प्रसिद्ध फर्राटा धावक उसैन बोल्ट Usain Bolt |
और ये हैं श्रेक Shrek महोदय |
मोम के इन पुतलों की इन दीर्घाओं से निकलकर आप जा पहुँचते हैं स्पिरिट आफ लंदन शो में। एक काली कैब में लंदन की ऐतिहासिक सैर वाकई शानदार है। यहीं आपको पता चलता है कि आज का ये विकसित शहर कभी प्लेग जैसी महामारी का ग्रास बना था। कभी भीषण आग ने संत पॉल के कैथेड्रल को पूरी तरह जला डाला था। यहीं की धरती पर शेक्सपियर ने अंग्रेजी साहित्य के अनुपम पन्ने गढ़े थे। शौर्य के प्रतिमान कैप्टन नेल्सन का जहाजी बेड़ा आपकी आँखों में विस्मय ला देता है तो चर्चिल के वक्तव्य देश को एक सूत्र में बाँटते से सुनाई देते हैं।
कैप्टन नेल्सन का जहाजी बेड़ा Captain Nelson's column |
विक्टोरियन संस्कृति की झलक A glimpse from Victorian era |
चलते चलते लगा कि लंदन आए और राजपरिवार से मुलाकात नहीं की तो कैसे चलेगा ? तत्काल रानी को फोन लगाया, मुलाकात का समय निर्धारित किया और मैडम तुसाद से निकलने से पहले ही रानी सपरिवार हमसे मिलने आ पहुँची। अब इस यादगार लमहे को कैमरे में क़ैद करने से भला कैसे चूकते हम?😉
पूरे संग्रहालय को आप आराम से तीन घंटों में देख सकते हैं। मोम के इन पुतलों को देख कर मुझे उस गीत का मुखड़ा याद आ गया कि बुत बने बैठे हैं कुछ बात बनाते भी नही. टेक्नॉलजी के निरंतर विकास से वो दिन दूर नहीं जब शायद ये पुतले आपसे बात भी करने लगें। ख़ैर तब की तब देखी जाएगी। लंदन का ये सफ़र ज़ारी रहेगा। अगली बार ले चलेंगे आपको लंदन की आँख जहाँ आप देख पाएँगे बिग बेन को आकाश से।
यूरोप यात्रा में अब तक
- दिल्ली से वियना! Why travelling with Thomas Cook was not so smooth ?
- वो पहला अनुभव वियना का ! Senses of Austria
- कैसा दिखता है आकाश से लंदन? Aerial View , London
- इ है लंदन नगरिया तू देख बबुआ ! City of London
- मोम के जीवंत पुतलों की दुनिया : मैडम तुसाद, लंदन Madame Tussauds, London
इसी बहाने हम भी घूम ही ले रहे हैं, आभासी ही सही, बेहद बेहद शुक्रिया
जवाब देंहटाएंइस आभासी सफ़र में साथ बने रहने का शुक्रिया !
हटाएंवाह !
जवाब देंहटाएं:)
हटाएंमैडम तुसाद घूमना मजेदार लगा, पर राष्ट्रपिता और प्रधानमंत्री जी से भी मिलवाते तो ख़ुशी होती, सादर धन्यवाद सर जी
जवाब देंहटाएंहमारे प्रधानमंत्री का पुतला तो अभी हाल में वहाँ लगा है। बापू व इंदिरा जी का दर्शन तो आपको फेसबुक पर करा ही दिया :)
हटाएंKya baat hai
जवाब देंहटाएंभईया आपके साथ ख़ूब मज़ा आता है...
जवाब देंहटाएंइसी तरह सफ़र पर साथ बने रहिए
हटाएंक्या इन्हे छूने से इनको नुक्सान नहीं पहुँचता ?
जवाब देंहटाएंमोम छूने से कब नुकसान होने लगा :)
हटाएंAapse eershya hoti hai
जवाब देंहटाएंईष्या क्यूँ अनुलता जी..ख़ुद देख रहे हैं और आपको दिखा रहे हैं। :)
हटाएंवैसे अगर पुतले अपने भारत में होते मनीष जी तो गले में हाथ डालना तो दूर इन्हे छू भी नहीं पाते .
जवाब देंहटाएंदरअसल हमारे यहाँ अति हो जाती है। लंदन में सब अपने अपने अंदाज़ में शालीनता के साथ इन पुतलों के साथ फोटो खिंचा रहे थे और मस्ती कर रहे थे और इसी वज़ह से कोई टोंका टाकी भी नहीं थी।
हटाएंWaah !
जवाब देंहटाएंGood post... Keep posting....
जवाब देंहटाएंThx..Keep visiting :)
हटाएंWow Sirjee, kya baat hain :) Beautiful Pics !
जवाब देंहटाएंThanks Puja ! Nice to know that u liked the pics.
हटाएंVery good.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन कलाकारी है
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