लंदन की अगली सुबह का दृश्य थोड़ा मायूस करने वाला था। पिछले दिन के खुले आकाश के उलट आज बाहर सूरज का नामोनिशान तक नहीं था। बादलों के झुंड के साथ चलती हवा सिरहन अलग उत्पन्न कर दे रही थी । बारिश का भी खतरा था। पर हमारा समूह इंतज़ार कर रहा था अपनी यात्री बस का, जिस पर सवार होकर हमें लंदन के गली कूचों का चक्कर लगाना था।
लंदन की पहचान यहाँ का टॉवर ब्रिज Tower Bridge |
ट्राफिक जॉम लंदन में भी Traffic Jam in London |
समय से नहीं आने पर टूर मैनेजर और ड्राइवर में नोकझोंक शुरु हो गयी थी। मैनेजर ने जहाँ punctuality का मसला उठाया ड्राइवर का अंग्रेज अहम जाग उठा
और वो भड़क कर बस लौटाने की बात करने लगा। मैं आगे की सीट पर बैठा था। चालक
की बातों से समझ गया कि आज हमलोगों का पाला एक अक्खड़ और अशिष्ट इंसान से
पड़ा है। सुबह की देरी व जॉम की वज़ह से समय वैसे ही निकला जा रहा था। रही
सही कसर बारिश ने पूरी कर दी। लंदन की बारिश के चर्चे पहले भी सुन रखे थे और इसी वज़ह से ये उम्मीद भी थी
कि बदलते मौसम वाले इस शहर में कब बारिश और कब रोशनी के साथ
मुलाकात हो जाए कोई कह नहीं सकता।
बारिश में भीगा लंदन |
रॉयल एल्बर्ट हॉल के सामने जब हमारी बस रुकी तो बारिश बंद हो चुकी थी पर बाहर निकलते ही ऐसा महसूस हुआ कि तापमान एकदम से पाँच सात डिग्री नीचे चला आया हो। ठिठुरते हुए हम इस इमारत का बाहर से मुआयना करने लगे। हॉल को देखते हुए बचपन के वो दिन याद आने लगे जब पहली बार इस जगह का नाम सुना था।
बाजार में तब पैनासोनिक का आयताकार टेपरिकार्डर पहली बार आया था। घर में संगीत सुनने का माहौल था तो वैसा ही टेपरिकार्डर हमारे यहाँ भी खरीदा गया था। टेप तो आ गया पर खरीदने के लिए कैसेट्स ही नहीं थे। तब बाजार में कैसेट्स का चलन शुरु ही हुआ था। बाद में नेपाल के एक परिचित से कैसट्स मँगाए गए़। उनमें से जो कैसेट सबसे ज्यादा हम भाई बहनों ने सुना था वो था लता मंगेशकर का रॉयल अल्बर्ट हॉल में किया गया कन्सर्ट। तब भारत का हर नामी कलाकार यहाँ आया करता था।
रायल अल्बर्ट हॉल से बस में हमारी गाइड एलेक्सेन्ड्रिया भी शामिल हो गयी थीं। कॉलेज में पढाई कर रही एलेक्सेन्ड्रिया के लिए गाइड का काम पार्ट टाइम नौकरी वाला था। उसके माता पिता रूस से आकर यहीं बस गए थे
और उसकी परवरिश ब्रिटेन में हुई। स्वभाव से विनम्र, हमारे सवालों का धैर्य
से जवाब देने वाली एलेक्सेन्ड्रिया एक ही दिन हमारे साथ रही पर इतने कम समय में उसने हम सभी के हृदय में जगह बना ली।
रायल एल्बर्ट हॉल के ठीक सामने केनसिंग्टन पार्क में राजकुमार एल्बर्ट का
मेमोरियल बना हुआ है। रॉयल एल्बर्ट हॉल के बनने के एक साल बाद रानी
विक्टोरिया ने 1872 में ये मेमोरियल बनवाया था। एल्बर्ट 42 वर्ष की आयु में ही टॉयफाएड का शिकार बन गए थे।
अल्बर्ट मेमोरियल Albert Memorial |
बकिंघम पैलेस Buckingham Palace |
रॉयल एल्बर्ट हॉल से हम बकिंघम पैलेस पहुँचे। यहाँ तो दुनिया के कोने कोने से आए लोगों का ताँता लगा हुआ था। बकिंघम पैलेस के अंदर रानी हैं या नहीं इसका पता आप इसके ऊपर लगे झंडे से कर सकते हें। सन 1997 तक परंपरा थी कि जब रानी महल में हों तब झंडा फहराया जाएगा। जब राजकुमारी डायना की मौत हुई तो रानी महल के बाहर थीं तो झंडा नहीं फहराया गया। डायना के प्रति लोगों के प्रेम ने इसे उसका अपमान माना। उनका कहना था कि उनके सम्मान में झंडा आधी ऊँचाई से फहरना चाहिए। तबसे महल की परंपरा बदली गयी। अब रानी जब महल में नहीं रहती तो झंडा फहराया जाता है और राजपरिवार के सदस्य के निधन पर झंडा आधी ऊँचाई से फहराया जाता है। हम जब महल के पास पहुँचे तो झंडा खंभे से बँधा हुआ था यानि रानी महल में थीं।
विक्टोरिया मेमोरियल Victoria Memorial |
बकिंघम पैलेस के सामने ही क्वीन विक्टोरिया मेमोरियल है। इसे बनाने के लिए उस वक़्त पैसा ब्रिटिश उपनिवेशों और आम जनता से दान के रूप में लिया गया था। इस तरह करीब डेढ़ लाख पौंड की राशि इकठ्ठा की गयी थी। 1924 में आर्किटेक्ट थॉमस ब्रोक के सोचे प्रारूप पर ये बनकर तैयार हुआ था। मेमोरियल के ऊपर पर लगी कांसे की प्रतिमा विजय की देवी का प्रतीक है। मेमोरियल के नीचे रानी को दो रूपों में दिखाया गया है। महल की ओर बनी प्रतिमा में रानी माँ के स्वरूप में हैं जो बच्चे को दूध पिला रही हैंं। यहाँ देश की जनता को बच्चे का प्रतीतात्मक रूप दिया गया है जो माँ की छत्र छाया में पल रहा है, वहीं दूसरी ओर (जो हिस्सा चित्र में नहीं दिख रहा) रानी अपने सिंहासन पर बैठी दिखती हैं। बाकी दो दिशाओं में मूर्तियों को सत्य और न्याय का प्रतीक बनाया गया है। मेमोरियल की बगल वाली सड़क पर सैनिक परेड करते दिखे। कुल मिलाकर वहाँ की चहल पहल देख कर लगा कि ये इलाका पर्यटकों से हमेशा आबाद रहता है।
इंग्लैंड में वैसे तो तमाम चर्च हैं पर सेंट पॉल कैथेडरल और वेस्टमिनिस्टर एबी अपने स्थापत्य और धार्मिक महत्त्व के लिए जाने जाते हैं। गोथिक शैली में बने इन चर्चों के विशाल परिसर में समय बिताएँ तो इंग्लैंड के इतिहास से रूबरू हो सकते हैं। पर हमारी बस पहले ही विलंबित थी इसलिए इन्हें देखने के लिए हमें समय नहीं मिला।
वेस्टमिनिस्टर के पास आकर एक मज़ेदार घटना हुई। दरअसल हमें यात्रा की शुरुआत में बताया गया था कि यूरोप में ड्राइवर और वेटर को टिप देना अनिवार्य है पर इसके आलावा खाने पीने के सामान के लिए किसी खर्चे का जिक्र नहीं किया गया था। पर बाद में पता चला कि यूरोप में टिप से ज्यादा खर्चा लू ब्रेक में है। यानि टॉयलेट या प्रसाधन इस्तेमाल करने पर आप को दो से चार यूरो तक हाथ धोना पड़ सकता है। हमारे समूह में अधिकतर लोग यूरो तो ले के चले थे पर लंदन में शौचालय में यूरो की जगह पौंड का इस्तेमाल होता दिखा।
संत पॉल कैथेड्रल |
इंग्लैंड में वैसे तो तमाम चर्च हैं पर सेंट पॉल कैथेडरल और वेस्टमिनिस्टर एबी अपने स्थापत्य और धार्मिक महत्त्व के लिए जाने जाते हैं। गोथिक शैली में बने इन चर्चों के विशाल परिसर में समय बिताएँ तो इंग्लैंड के इतिहास से रूबरू हो सकते हैं। पर हमारी बस पहले ही विलंबित थी इसलिए इन्हें देखने के लिए हमें समय नहीं मिला।
वेस्टमिनिस्टर के पास आकर एक मज़ेदार घटना हुई। दरअसल हमें यात्रा की शुरुआत में बताया गया था कि यूरोप में ड्राइवर और वेटर को टिप देना अनिवार्य है पर इसके आलावा खाने पीने के सामान के लिए किसी खर्चे का जिक्र नहीं किया गया था। पर बाद में पता चला कि यूरोप में टिप से ज्यादा खर्चा लू ब्रेक में है। यानि टॉयलेट या प्रसाधन इस्तेमाल करने पर आप को दो से चार यूरो तक हाथ धोना पड़ सकता है। हमारे समूह में अधिकतर लोग यूरो तो ले के चले थे पर लंदन में शौचालय में यूरो की जगह पौंड का इस्तेमाल होता दिखा।
वेस्टमिनस्टर ऐबी Westminster Abbey |
अब एक सू सू पर सौ डेढ़ सौ रुपये खर्चा करना भला भारतीयों को कैसे हज़म हो 😄?
हमारी रूसी गाइड इस भारतीय मनोवृति को समझती थी। सो उसने हमारी बस को एक
ऍसी लू के सामने खड़ा किया जहाँ अटेंडेंट नहीं था। पर उसे शायद ये नहीं पता
था कि वहाँ एक सेंसर मशीन लगी है। एक बंगाली मोशाय बस रूकते ही तेजी से लू
की ओर भागे पर जैसे ही वो अंदर घुसे एक रॉड आगे की ओर घूमी और उनका रास्ता
रोक दिया। दादा अपनी हालत पर काबू पाते कि तब तक कुछ बच्चे अंदर आए और रॉड
के नीचे से निकल गए। दादा ने भी उनकी नकल करने की कोशिश की पर इस बार वो
गेट में ही फँस गए। जब बाहर लोगों ने मरि गेलो बाबा का करुण स्वर सुना तो
माज़रा समझ आया। आपातकाल की इस अवस्था से बचने के लिए आनन फानन में पौंड की
व्यवस्था हुई और दादा ने आख़िर चैन की साँस ली।
डबल डेकर बस, लंदन London's Double Decker |
लंदन शहर की अगर विशिष्ट पहचान की बात हो तो उसके दो प्रतीक सारे विश्व में
प्रसिद्ध हैं। पहला सुर्ख लाल रंग का टेलोफोन बॉक्स और दूसरी उसी रंग में
रँगी डबल डेकर बस। लंदन के ये टेलीफोन बॉक्स लाल क्यूँ हुए उसकी भी इक अलग
कहानी है। ये तब की बात है जब लंदन में टेलीफोन नहीं आए थे। उन्नीसवीं
शताब्दी में डाक विभाग ने पहले जो पोस्टबॉक्स बनाए वो हरे रंग के थे। पर
लंदन में इतनी हरियाली थी कि हरे रंग को दूर से पहचान पाना मुश्किल होने
लगा और लोग फुटपाथ पर चलते इनसे टकराने लगे। लोगों को इस समस्या से निज़ात
दिलाने के लिए 1884 में सबसे पहले पत्र पेटियों को लाल रंग से रँगा गया।
लंदन के लाल टेलीफोन बूथ |
सन 1920 में जब टेलीफोन बॉक्स का प्रयोग हुआ तो वो इसी वज़ह से लाल और सफेद
और फिर सुर्ख लाल वाले रंग में रँग दिए गए। रही डबल डेकर बसों की बात तो
वे द्वितीय विश्व युद्ध के बाद ट्राम की जगह लेने आयीं। शुरुआत में लाल व
क्रीम के साथ हरे रंग में दिखीं पर जनता ने लाल रंग को ही सबसे ज्यादा
पसंद किया़। ब्रिटेन के अन्य हिस्सों में आज भी सभी रंगों की बसे चलती हैं
पर लंदन में बसों का रंग लाल ही रखा गया है। अस्सी के बाद से लाल टेलीफोन
बॉक्स लगने बंद हो गए पर आज भी वो धरोहर के रूप में लंदन की वैसी जगहों में
लगे हुए हैं जहाँ सैलानी आते हैं।
सामने से दिखता टॉवर ब्रिज का पहला स्तंभ |
हमारा अगला पड़ाव था लंदन ब्रिज। वही लंदन ब्रिज जिसकी नर्सरी राइम London Bridge is falling down आपने बचपन में पढ़ी होगी। लंदन ब्रिज कभी आक्रमणकारियों द्वारा धाराशायी हुआ था इस पर तो पूरा मतैक्य नहीं है पर ये कविता सत्रहवीं शताब्दी में ऐसी ही किसी किवंदती की वज़ह से प्रचलित हुई। लंदन ब्रिज देखने में किसी आम सड़क पुल जैसा ही है पर यहाँ लोग इसलिए आते हैं कि लंदन ब्रिज से टॉवर ब्रिज का नज़ारा साफ साफ दिखता है। इस आलेख का पहला चित्र मैंने लंदन ब्रिज से ही लिया था।
पूर्वी लंदन के विकास के क्रम में जब लंदन ब्रिज पर आवाजाही बढ़ी तो एक और समानांतर पुल बनाने की आवश्यकता महसूस हुई। उन्नीसवीं शताब्दी की आख़िर में दो बड़े टॉवर के बीच Suspension Bridge बनाया गया जो कि टॉवर ब्रिज के नाम से जाना जाता है। टॉवर ब्रिज लंदन की सबसे बड़ी पहचान है। दिन में भोजन के उपरांत मैं बाहर निकला तो देखा कि रेस्त्रां से टॉवर ब्रिज तो पचास मीटर के फासले पर ही है। अपने समूह को छोड़कर मैंने कुछ वक़्त इस पुल पर बिताया।
पुल के दोनो टॉवर के आधार पर जहाज को रास्ता देने के लिए मशीनें लगी हुई
हैं। ये मशीनें पुल के मध्य भाग को दो अलग हिस्सों में उठाने का काम करती
हैं। टॉवर में जाकर आप यहाँ के इंजन रूम, दोनों टॉवर को जोड़ते वॉकवे और
अंदर की प्रदर्शनियों का लुत्फ़ उठा सकते हैं। पर इसके लिएप्रवेश शुल्क
देना होता है।पुल से लंदन की कुछ गगनचुंबी इमारतें दिखाई दीं।पूर्वी लंदन के विकास के क्रम में जब लंदन ब्रिज पर आवाजाही बढ़ी तो एक और समानांतर पुल बनाने की आवश्यकता महसूस हुई। उन्नीसवीं शताब्दी की आख़िर में दो बड़े टॉवर के बीच Suspension Bridge बनाया गया जो कि टॉवर ब्रिज के नाम से जाना जाता है। टॉवर ब्रिज लंदन की सबसे बड़ी पहचान है। दिन में भोजन के उपरांत मैं बाहर निकला तो देखा कि रेस्त्रां से टॉवर ब्रिज तो पचास मीटर के फासले पर ही है। अपने समूह को छोड़कर मैंने कुछ वक़्त इस पुल पर बिताया।
वाकी टाकी Walkie Talkie |
लंदन में विशाल अट्टालिकाओं को बनाने का विरोध हमेशा से रहा है पर विगत कुछ वर्षों में गगनचुंबी इमारतें बनी हैं। वाकी टाकी इन इमारतों में सबसे अलग थलग दिखती है। चौतीस मंजिला 160 मीटर ऊँची इस व्यावसायिक इमारत को उरुग्वे के डिजाइनर राफेल विनोली ने बनाया।
लंदन ब्रिज से सटी हुई ब्रिटेन की सबसी ऊँची इमारत है शार्ड । शंकुकार शक़्ल की इस इमारत के बाहरी हिस्से में शीशे का खासा प्रयोग हुआ है। 95 मंजिली ये इमारत तीन सौ मीटर से भी ऊँची है।
लंदन ब्रिज से सटी हुई ब्रिटेन की सबसी ऊँची इमारत है शार्ड । शंकुकार शक़्ल की इस इमारत के बाहरी हिस्से में शीशे का खासा प्रयोग हुआ है। 95 मंजिली ये इमारत तीन सौ मीटर से भी ऊँची है।
दि शार्ड The Shard |
जो लंदन आए वो कोहीनूर को कैसे भूल सकता है। समयाभाव के कारण कोहीनूर का हीरा तो मैं नहीं देख पाया। पर वो हीरा इसी टॉवर आफ लंदन के क्राउन जेवल म्यूजियम की शोभा बढ़ा रहा है। यह म्यूजियम टॉवर ब्रिज के बेहद पास थेम्स नदी के किनारे स्थित है। लंदन की इस सैर का मध्यांतर अब आ गया है। इंटरवल के बाद आपको ले चलेंगे यहाँ के विश्व प्रसिद्ध मोम की मूर्तियों के संग्रहालय मैडम तुसाद में..
टावर ऑफ़ लन्दन |
- दिल्ली से वियना! Why travelling with Thomas Cook was not so smooth ?
- वो पहला अनुभव वियना का ! Senses of Austria
- कैसा दिखता है आकाश से लंदन? Aerial View , London
- इ है लंदन नगरिया तू देख बबुआ ! City of London
बहुत बढ़िया सैर कराइ । अंग्रेजो के गुलाम रहे हम भारतीयों के लिए हमारे गौरांग प्रभुओं की राजधानी हमेशा से आकर्षण रहा है । आपके साथ हमने भी इस लन्दन की सैर कर ली । मजा आ गया । अगली पोस्ट में मैडम तुसाद से मुलाकात का इंतजार है ।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया सफ़र में साथ बने रहने का। जानकर खुशी हुई कि आपको ये वृत्तांत पसंद आया।
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (06-12-2016) को "देश बदल रहा है..." (चर्चा अंक-2548) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हार्दिक आभार!
हटाएंदेख ली जी लन्दन नगरिया।
जवाब देंहटाएंहम्म अभी तो और भी दिखानी है :)
हटाएंrochak vivran hai yatra ka .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
हटाएंAh ah dada ka haal pad pad ke hansi rok nahi paayi
जवाब देंहटाएंइन हालातों का जायज़ा लेने के बाद हमारा टूर मैनेजर पूरी यात्रा में वैसी जगह पर ही बस को रुकवाता रहा जहाँ फ्री टॉयलट्स की गुंजाइश हो। :)
हटाएंये सुविधा टूरिस्ट को इतने रूपये की है या सभी को
हटाएंWhen u go to a gas station or restaurant they allow you to use their facilities free otherwise these are the general charges in most of the places.
हटाएंमजेदार सफर है.. आपकी यूरोप यात्रा लगातार पढ़ रहा हूँ।
जवाब देंहटाएंऔर मैं आपकी भूटान यात्रा :)
हटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंपसंद करने का शुक्रिया !
हटाएंकमाल की लेखन शेली लगता ही नहीं की यात्रा के लम्हों को पढ़ रहे है यूँ लगता है जैसे उन्हें जी रहे है और दादा जी वाला किस्सा तो कमाल का था मनीष जी ..
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ! यही कोशिश रहती है मेरी कि जो मैंने यात्रा के दौरान महसूस किया वो आप तक पहुँचा सकूँ।
हटाएंInformative post
जवाब देंहटाएंThanks.
हटाएंबंगाली दादा की कहानी मजेदार लगी..मैडम तुसाद देखने को उत्सुक हूँ.
जवाब देंहटाएंइस सप्ताहांत ले चलता हूँ आपकों उन जीवंत मोम के पुतलों के बीच :)
हटाएंआप का लिखने का अन्दाज़ दिलचस्प है।
जवाब देंहटाएंजानकर खुशी हुई कि आलेख आपको पसंद आया।
हटाएंप्रिय मनीष जी, क्या दिखता है लंदन आई से और ये पोस्ट - यानि अभी तक ये दो पोस्ट देख चुका हूं और बाकी देखने जाने से पहले सोचा आपको धन्यवाद कहता चलूं! मेरा बड़ा बेटा भी इंग्लैंड में रहते हुए लंदन गया होगा क्योंकि उसके लंदन आई के चित्र मैने देखे हैं आतिशबाजी वाले ! पर इन चित्रों के माध्यम से आपने वास्तव में ही लंदन का परिचय करा दिया है। एक बार पुनः आभार !
जवाब देंहटाएंशुक्रिया सुशांत जी अपनी राय व्यक्त करने के लिए! :)
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