परिवार और पिताजी के साथ यूरोप जाने का सपना मेरे मन में बहुत सालों से पल रहा था। कभी छुट्टियाँ तो कभी साथ चलने वालों की गैर मौज़ूदगी अड़चन डाल दे रही थी। अक्टूबर 2014 में मेरे एक मित्र ने भी वहाँ साथ चलने की इच्छा जताई। फिर क्या था लग गए इंटरनेट पर सारे विकल्प तलाशने। सारे मुख्य टूर आपरेटर से बात करने के बाद सत्रह दिनों के थॉमस कुक (Thomas Cook) के एक पैकेज पर दिल आया जिसमें पश्चिमी यूरोप के साथ पूर्वी यूरोप के देशों का सफ़र भी शामिल था। जाना तो मई 2015 में था पर बुकिंग दिसंबर में ही कर दी।
यूरोप की पहली झलक पाई हमने आस्ट्रिया की राजधानी वियना में.. |
मार्च में ब्रिटेन के वीज़ा की सारी औपचारिकताएँ भी पूरी हो गयीं। पर यहीं से हमारी मुश्किलों का दौर शुरु हो गया। मुझे बताया गया था कि यूके वीज़ा मिलने के बाद स्वतः शेंगेन वीज़ा ज़ारी करने की प्रक्रिया शुरु हो जाएगी। पर जब अप्रैल का महीना आ गया और थॉमस कुक से कोई जानकारी नहीं मिली तो हमने कोलकाता और राँची के उनके कार्यालयों से पूछताछ शुरु की। पता चला कि हमारा टूर "होल्ड" पर है। कारण ये कि हमारे समूह ने जिस टूर का विकल्प चुना था उसमें यथेष्ट संख्या में यात्री नहीं मिल रहे़ थे। बिना हमारी किसी गलती के इस पूरे प्रकरण का ख़ामियाजा हमें ही भुगतना पड़ा। हमें कहा गया कि आप पाँच दिन आगे जाएँ तो आपको उस जैसे दूसरे पैकेज में फिट किया जा सकता है।
छः महीने पहले की बुकिंग का ये हश्र देख कर मन बहुत दुखी हुआ। छुट्टियाँ हम बदल नहीं सकते थे और बदलते भी तो हालैंड के ट्यूलिप गार्डन देखने का हमारा सपना अधूरा रह जाता। Travel Smooth की टैग लाइन रखने वाली थॉमस कुक का रवैया नितांत अव्यवसायिक रहा। नौ लोगों के तीन परिवार का आरंभिक आरक्षण करने में उन्होंने जो तत्परता दिखाई थी वो हमारे कार्यक्रम को यथावत बनाए रखने में या उसमें हमारी आवश्यकता के अनुरूप परिवर्तन करने में बिल्कुल नहीं दिखी। बुकिंग करते समय उन्होंने ये नहीं बताया कि हमारा चुना हुआ पैकेज वो यात्री ना मिलने की स्थिति में बदल सकते हैं। अगर हमने ख़ुद से पूछताछ ना की होती तो शायद यात्रा के शायद शीघ्र पहले ही ये बम गिराते। एक एक मेल का जवाब पाने में हमें जाने कितने फोन कॉल्स करने पड़े। ख़ैर हम मन बना चुके थे कि जाना तो है ही तो हमारी यात्रा की तिथि से मिलता हुआ जो भी पैकेज मिला उसी में शामिल हो गए। ये पैकेज बारह दिनों का था। पैकेज़ म्यूनिख़ में ख़त्म होना था पर हमने अपनी वापसी तीन दिन बढ़ा कर बाकी के दिन आस्ट्रिया में बिताने का निश्चय किया।
छः महीने पहले की बुकिंग का ये हश्र देख कर मन बहुत दुखी हुआ। छुट्टियाँ हम बदल नहीं सकते थे और बदलते भी तो हालैंड के ट्यूलिप गार्डन देखने का हमारा सपना अधूरा रह जाता। Travel Smooth की टैग लाइन रखने वाली थॉमस कुक का रवैया नितांत अव्यवसायिक रहा। नौ लोगों के तीन परिवार का आरंभिक आरक्षण करने में उन्होंने जो तत्परता दिखाई थी वो हमारे कार्यक्रम को यथावत बनाए रखने में या उसमें हमारी आवश्यकता के अनुरूप परिवर्तन करने में बिल्कुल नहीं दिखी। बुकिंग करते समय उन्होंने ये नहीं बताया कि हमारा चुना हुआ पैकेज वो यात्री ना मिलने की स्थिति में बदल सकते हैं। अगर हमने ख़ुद से पूछताछ ना की होती तो शायद यात्रा के शायद शीघ्र पहले ही ये बम गिराते। एक एक मेल का जवाब पाने में हमें जाने कितने फोन कॉल्स करने पड़े। ख़ैर हम मन बना चुके थे कि जाना तो है ही तो हमारी यात्रा की तिथि से मिलता हुआ जो भी पैकेज मिला उसी में शामिल हो गए। ये पैकेज बारह दिनों का था। पैकेज़ म्यूनिख़ में ख़त्म होना था पर हमने अपनी वापसी तीन दिन बढ़ा कर बाकी के दिन आस्ट्रिया में बिताने का निश्चय किया।
राँची से लंदन तक का हमारा साथी रहा आस्ट्रियन ! |
ये सब अंतिम रूप में लाते लाते मई का पहला हफ्ता आ गया। अंत समय में दूसरे समूह के साथ जुड़ने की वज़ह से हमारी उड़ान के टिकट अलग हो गए। एयरपोर्ट पर पहुँच कर अपने समूह वाले होटल तक पहुँचना भी अब हमारे जिम्मे हो गया। हालत ये थी कि दिल्ली से अपनी उड़ान के एक दिन पहले तक हमें अपने टिकट, वाउचर आदि मिल रहे थे। मतलब थॉमस कुक ने इस यात्रा की शुरुआत से पहले हमारे समूह का तनाव बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
पर इतने ही से बात बन जाती तो क्या बात थी। मेरे संयम की कुछ परीक्षा ऊपरवाले ने भी ले रखने की सोची थी। ग्यारह मई को रात हमें आस्ट्रियन एयरवेज़ की उड़ान से वियना होते हुए लंदन तक पहुँचना था। दस मई को मैंने राजधानी एक्सप्रेस से दिल्ली जाने का आरक्षण कराया था। शाम पाँच बजे राँची से चलकर ये ट्रेन सुबह दस बजे दिल्ली पहुँचती है। यानि हमारे पास बारह घंटे दिल्ली में आराम करने का समय था। पर जब राँची स्टेशन पहुँचे तो पता चला कि पाँच बजे चलने वाली ट्रेन छः घंटे विलंब से रात ग्यारह बजे चलेगी। ग्यारह बजे ट्रेन चल तो दी पर सुबह सात बजे तक मुगलसराय के दर्शन भी नहीं हुए थे। कानपुर पहुँचते पहुँचते ट्रेन ग्यारह घंटे लेट हो चुकी थी। यानि हमने जो भी मार्जिन सोचा था वो सब हवा हो गया था।
पर इतने ही से बात बन जाती तो क्या बात थी। मेरे संयम की कुछ परीक्षा ऊपरवाले ने भी ले रखने की सोची थी। ग्यारह मई को रात हमें आस्ट्रियन एयरवेज़ की उड़ान से वियना होते हुए लंदन तक पहुँचना था। दस मई को मैंने राजधानी एक्सप्रेस से दिल्ली जाने का आरक्षण कराया था। शाम पाँच बजे राँची से चलकर ये ट्रेन सुबह दस बजे दिल्ली पहुँचती है। यानि हमारे पास बारह घंटे दिल्ली में आराम करने का समय था। पर जब राँची स्टेशन पहुँचे तो पता चला कि पाँच बजे चलने वाली ट्रेन छः घंटे विलंब से रात ग्यारह बजे चलेगी। ग्यारह बजे ट्रेन चल तो दी पर सुबह सात बजे तक मुगलसराय के दर्शन भी नहीं हुए थे। कानपुर पहुँचते पहुँचते ट्रेन ग्यारह घंटे लेट हो चुकी थी। यानि हमने जो भी मार्जिन सोचा था वो सब हवा हो गया था।
राँची राजधानी से दिल्ली और फिर वियना हवाई अड्डे तक पहुँचने के बाद |
अब हालत ये थी कि नई दिल्ली स्टेशन से उतरते ही टी 3 की और दौड़ लगानी थी। वो भी तब जब ट्रेन और विलंबित ना हो। हमारे साथ जाने वाले परिवार पहले ही दिल्ली पहुँच चुके थे पर कार्यक्रम की रूप रेखा तैयार करने वाला ही साथनहीं चल सकेगा इस आशंका से वो भी तनावग्रस्त हो रहे थे। हर एक घंटे में गुजरने वाले स्टेशन की फोन पर जानकारी ली जा रही थी। दस बजे तक एयरपोर्ट तक पहुँचने की योजना थी और यहाँ हमारी ट्रेन ही साढ़े नौ के करीब दिल्ली पहुँची। सामान ले कर हम सीधे एयरपोर्ट भागे और सवा दस में टी 3 में दाखिल हुए। सुरक्षा और आप्रवासन जाँच समय के पहले पूरी होने पर जान में जान आई।
आस्ट्रिया के समय के अनुसार सुबह साढ़े छः के करीब हमें वियना में उतरना था। आस्ट्रियन एयरवेज की आठ घंटे की ये उड़ान बिना किसी और परेशानी के अच्छी मेहमानवाज़ी के साथ बीती। पाँच बजे ही परिचारिका ने एप्पल जूस पिला कर मेरी तंद्रा भंग कर दी थी। यूरोप की पहली झलक मेरे लिए अविस्मरणीय थी। उठती गिरती ढलानों के बीच करीने से जुते खेत खलिहान अगर आकाश की ऊँचाइयों से देखे जाएँ तो वे कितना खूबसूरत अहसास जगाते हैं मन में.. और इन लहराते खेतों के बीच पीले पीले फूल से लदे पेड़ों का एक घना जंगल आ जाए तो लगता है मानो धरा से एक कविता सी फूट रही हो।
वियना के बाहर के अविस्मरणीय खेत खलिहान |
आस्ट्रिया के इन प्रातःकालीन खूबसूरत दृश्यों को कभी यहाँ एक पूरी पोस्ट की शक़्ल दी थी। बहरहाल वियना के एयरपोर्ट पर कुछ घंटे गुजारने के बाद हमें लंदन के लिए दूसरा विमान पकड़ना था। यूरोप में गुजरे पहले दिन की दास्तान ले के आऊँगा इस श्रंखला की अगली कड़ी में..
यूरोप यात्रा में अब तक
यूरोप यात्रा में अब तक
- दिल्ली से वियना! Why travelling with Thomas Cook was not so smooth ?
- वो पहला अनुभव वियना का ! Senses of Austria
- कैसा दिखता है आकाश से लंदन? Aerial View , London
- यादें यूरोप की: इ है लंदन नगरिया तू देख बबुआ !
इन ट्रेवल कंपनियों का कोई भरोसा नहीं.. फिर भी जान कर अच्छा लगा कि यूरोप की यात्रा आप समय पर कर पाए....
जवाब देंहटाएंहाँ पर हमारी बिना किसी गलती के हमें पूर्वी यूरोप की कई खूबसूरत जगहों को देखने से वंचित होना पड़ा। सफ़र के पहले तो जो हुआ उसका जिक्र मैंने किया ही पर उसके बाद भी हिसाब किताब दुरुस्त करने में कंपनी को छः महीने से ज्यादा का समय लगा।
हटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "जीवन के यक्ष प्रश्न - ब्लॉग बुलेटिन“ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंशुक्रिया ब्लॉग बुलेटन में इस आलेख के चुनाव के लिए।
हटाएंमनीष जी, एक प्रसिद्द ट्रेवल एजेंट के साथ भी ऐसे बुरे अनुभव ने हमारी भी आँखें खोलकर रख दी है। इनके सिर्फ बड़े-बड़े स्लोगनों पर तो कतई विश्वास नहीं करना चाहिए।
जवाब देंहटाएंहाँ.... एक बात कहना चाहूंगा की आज तक आपके पास मेरी फ़ेसबुक मित्रता अनुरोध लंबित पड़ी होगी, कृपया उसे स्वीकार करें। धन्यवाद।
हाँ हिन्दी में एक कहावत है ना नाम बड़े और दर्शन छोटे। इन यात्रा कंपनियों पर पूरी तरह चरितार्थ होती है ये कहावत।
हटाएंमैंने तो आपका मित्रता अनुरोध पहले ही स्वीकार कर लिया था। पर बार बार बिना मेरी अनुमति के मुझे अपबे समूह में जोड़ने की कोशिश से तंग आकर मैंने आपका दुबारा अनुरोध स्वीकार नहीं किया था। मैं उन्हीं समूहों से जुड़ना पसंद करता हूँ जिसमें अपना समय दे सकूँ।
ठीक है, इस गुस्ताखी के लिए माफ़ी चाहूँगा. वैसे ग्रुप छोड़ते वक़्त "Prevent other members to add me again" पर टिक करने पर आपको कोई दुबारा नहीं जोड़ सकता. उम्मीद है अब आप अनुरोध स्वीकार कर लेंगे.
हटाएंहाँ अभी कर लिया :)
हटाएंशुक्रिया मनीष जी .
हटाएंहमें इंतज़ार है आपके साथ कल्पना में विदेश यात्रा का।
जवाब देंहटाएंजरूर इस ब्लॉग पर सफ़र में साथ बने रहिए।
हटाएंअरे म्युनिख एयर पोर्ट मेरे घर से आधा घंटा की दुरी पर हे, अगर पता होता तो आप को घर ले आते...
जवाब देंहटाएंआपकी भावनाएँ ही काफी हैं
हटाएंशायद ही कोई टूर ऑपरेटर सही सेवाएँ देता हो। बढिया आलेख मनीष जी।
जवाब देंहटाएंयूरोप जाने के पहले मेरा अनुभव तो बहुत अच्छा नहीं रहा। वहाँ एक बार पहुँचने के बाद उतनी दिक्कत नहीं हुई।
हटाएंमनीष जी एक छोटा सा ग्रुप बना ले।जो आपके सहयात्री बन सके विदेश यात्राओ में।
जवाब देंहटाएंफिलहाल तो ज्यादातर यात्राओं में परिवार ही साथ रहा है।
हटाएंबहुत बढ़िया वर्णन चित्रों के साथ
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
हटाएंअविस्मरणीय आलेख।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया !
हटाएंEurope kee planning khud karein... Bahut hee aasaan hai.. Travel agents and tour operators aapko relay race karwatey hain.... Kyun theek kahaa naa manish ji....
जवाब देंहटाएंहा हा रिले सही कहा। पर पहली बार इस रिले रेस में भी मजा आता है।
हटाएंवियना के बाहर के खेत- खलिहान का चित्र बहुत सुन्दर लगा... धन्यवाद सर :)
जवाब देंहटाएंजानकर प्रसन्नता हुई। मेरा भी वो चित्र पसंदीदा है।
हटाएंU write very well n thanks will read it as you write....feels good to revisit .....
जवाब देंहटाएंShukriya :) It was an overall enjoyable experience for all of us. I will try my best to express that experience in my stories .
हटाएंVery good
जवाब देंहटाएंShukriya :)
हटाएंबहुत ही उम्दा .... बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति .... Thanks for sharing this!! :) :)
जवाब देंहटाएंसराहने के लिए आभार !
हटाएंVery nice
जवाब देंहटाएंShukriya :)
हटाएंयात्रा शुरू करने में हुई तकलीफ को पढ़कर दुख हुआ. पर आखिरी चित्र देखकर मैं मंत्रमुग्ध रह गया. ऐसा लग रहा है जैसे पेंटिग हो. हकीकत में भी ऐसी जगह होगी, विश्वास करना मुश्किल है.
जवाब देंहटाएंहाँ यात्रा के पहले के दिन तो बेहद तनावपूर्ण रहे। ये तस्वीर मैंने तब ली थी जब मेरे विमान के अधिकांश सहयात्री निद्रामग्न थे। शायद सुबह की इस बेला में भी खिड़की से टकटकी लगाए रखने का ये इनाम दिया भगवन ने !
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