राँची के पूजा पंडालों की इस सैर के आख़िरी चरण में आज आपको लिए चलते हैं राँची रेलवे स्टेशन, रातू रोड काँटाटोली, बाँधगाड़ी और संग्राम क्लब के पंडालों की ओर। पिछले कुछ सालों से राँची स्टेशन पर बनने वाले पंडाल अपनी अनोखी थीम्स के लिए खासे चर्चित रहे हैं। राँची का यही एक पंडाल है जहाँ आपको माँ दुर्गा के दर्शन के लिए लंबी पंक्तियों में खड़ा होते हुए आधे से एक घंटे लग सकते हैं।
राँची रेलवे स्टेशन पर सजा था बाबा भोलेनाथ का भव्य दरबार |
इस बार इस पंडाल में भगवान शिव का भव्य दरबार सजा था। शिव तो पार्वती के साथ कैलाश पर्वत पर विराजमान थे वही माँ दुर्गा पहाड़ के नीचे गुफा में स्थापित थीं। पंडाल की ओर घुसने के लिए स्वागत एक अघोरी बाबा और गणेश जी कर रहे थे आख़िर पिता का घर जो ठहरा। अंदर जाने के रास्ते में ऊपर एक विशाल डमरू बनाया गया था और दीवारों को घंटियों और मटकियों से मिल कर सजाया गया था।
पंडाल के मुख्य द्वार पर विशाल डमरू |
रास्ते के किनारे घंटियाँ और मटकियों से की गई साज सज्जा |
पंडाल के मुख्य अहाते में घुसने का साथ सबसे पहले नज़र आया ये दृश्य |
शिव की सवारी नंदी |
इस बार सजावट की खासियत ये थी की पूरे पंडाल को चिलमों से बनाया गया था। अब शिव जी भी तो चिलम का इस्तेमाल करते थे ना। दीवारें और पहाड़ इतनी करीने से भूरे रंग में रँगे थे कि अँधेरे में आपको दूर से शायद ही पता चले कि ये चिलम को जोड़ जोड़ कर बनाए गए हैं। पूरे पंडाल को बनाने में ग्यारह लाख चिलमों का प्रयोग हुआ। चिलमों को पास से आपको दिखाने के लिए एक चित्र मैंने ज़ूम करके भी लिया।
चिलम से अंदरुनी दीवार की साज सज्जा |
भूरी दीवारों को ज़ूम करने से ऐसे दिखते हैं ये चिलम |
रातू रोड के पूजा पंडाल में इस बार पिछले साल नेपाल में आए भूकंप की त्रासदी को थीम बनाया गया था। पंडाल की दिवारों पर गिरते पत्थर, भागते बदहवास लोगों की भाव भंगिमा को दिखाया गया था। पर इससे पहले कि पंडाल आम जनता के लिए खोला जाता ये खुद एक त्रासदी का शिकार हो गया। षष्ठी की सुबह इस पंडाल के अंदर आग लग गई। आग को बुझाते बुझाते इसके विशाल और ऊँचे शिखर सहित पंडाल का आधे से अधिक हिस्सा जल गया। पर आयोजकों की हिम्मत देखिए और कारीगरों का कमाल कि अगले बारह घंटों में लगातार काम करते हुए उन्होंने पंडाल को इस रूप में ला दिया जैसे यहाँ कुछ हुआ ही ना हो।
नेपाल की भूकंप त्रासदी को दिखाता रातू रोड का पंडाल |
पंडाल का बाहरी स्वरूप |
रंग बिरंगी रोशनी से सजा पंडाल |
रात एक बजे भी भारी भीड़ |
बाँधगाड़ी के इन जिराफों को उत्सुकता से देखती महिलाएँ |
काँटाटोली में माँ दुर्गा की शालीन प्रतिमा |
काँटाटोली का पूजा पंडाल |
संग्राम क्लब में माँ दुर्गा दिखीं राजस्थानी परिवेश में |
अदभुत ये सब देखना, परखना।
जवाब देंहटाएंहाँ ये तो मेरे शहर का कमाल है कि हर दुर्गोत्सव में ये कुछ नया दिखाने को तैयार रहता है।
हटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शनिवार (22-10-2016) के चर्चा मंच "जीने का अन्दाज" {चर्चा अंक- 2503} पर भी होगी!
जवाब देंहटाएंहार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हार्दिक धन्यवाद इस प्रविष्टि को चर्चा मंच में स्थान देने के लिए!
हटाएंबहुत बढ़िया चित्र
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
हटाएंकला और सृजन तो ठीक है, पर यह 11 लाख चिलम! यानी इतने लोगों को नशेड़ी बनाने का नया प्रयोग ही हुआ - यदि इसे उत्सव के बाद लोगों में बांटा गया!
जवाब देंहटाएंचिलम बाँटने की ऐसी कोई घटना नहीं हुई। दुर्गा पूजा पंडालों में, चाहे वे कोलकाता के हों या राँची के, स्थानीय कारीगर कलात्मकता के नए आयाम तलाशने की हर साल कोशिश करते हैं। चिलम का प्रयोग शिव से उसके जुड़ाव को ध्यान में रखकर हुआ।
हटाएंवैसे भी आज के इस युग में चिलम से कहीं ज्यादा आकर्षक विकल्प हैं नशेड़ियों के लिए। :)
भोले बाबा का दरबार पसंद आया.. खासकर घंटियाँ, मटकियों और चिलम की सजावट बहुत सुन्दर लगीं..
जवाब देंहटाएंशुक्रिया मनीष इस पंडाल परिक्रमा में साथ बने रहने के लिए ! :)
हटाएंबहुत ही उम्दा ..... बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति .... Thanks for sharing this!! :) :)
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