मावलीनांग से शिलांग लौटने के बाद हमारे पास एक दिन और बचा था। मैंने शिलांग आने के पहले इंटरनेट पर लैटलम कैनयन के बारे में पढ़ा था। वहाँ की खूबसूरत वादियों का जिक्र तो था ही, साथ ही ये हिदायत भी थी कि भीड़ भाड़ से दूर इस सुनसान इलाके में पहुँचना टेढ़ी खीर है इसलिए रास्ते के बारे में जानकर ही वहाँ जाएँ। प्राकृतिक सुंदरता मुझे हमेशा लुभाती रही है और लैटलम के एकांत में कुछ पल अपने को डुबाने की कल्पना मुझे उसकी तरफ़ खींच रही थी ।
पर सबसे बड़ी दिक्कत थी कि इस अनजाने से स्थान पर जाया कैसे जाए? जो जानकारी मुझे उपलब्ध थी उसके हिसाब से हमारा पहला लक्ष्य स्मित नाम का गाँव था। हमारी गाड़ी गुवहाटी की थी और हमें पक्का यकीन था कि हमारे चालक को लैटलम क्या स्मित के बारे में भी कोई जानकारी नहीं होगी। मैंने उसे खड़ी ढाल वाली संकरी घाटी के बारे में जब बताया तो उसने बड़े आत्मविश्वास से बताया कि उसे रास्ता पता है।
लैटलम दर्रा, नदी व छोटा सा गाँव ! |
ख़ैर हम लोग तब भी सशंकित थे पर शिलांग शहर के बाहर निकलने के बाद भी वो जब बेफ़िक्री से गाड़ी चलाता रहा तो हमें लगा बंदे को पता ही होगा। पर मुझे चिंता तब होने लगी जब चलते चलते एक घंटे बीत गए और लैटलम का पता ठिकाना ही नहीं मिला। दस बजे के वक़्त भी रास्ता सुनसान ही था। इक्का दुक्का व्यक्ति जो दिखते भी वो हिंदी या अंग्रेजी समझ पाने में अपनी असमर्थता दिखाते हमारे तनाव को बढ़ता देख ड्राइवर ने अचानक बगल की घाटी को दिखाते हुए कहा कि यही लैटलम है। मैंने कहा कि स्मित गाँव आया नहीं और रोड के किनारे से ही तुम्हें लैटलम दिख रहा है। हमारी खरी खोटी सुनने के बाद उसने माना कि रास्ते के बारे में उसे पता नहीं था। डार्इवर के हाथ खड़े करने के बाद हमने जी पी एस की मदद ली। पता चला हम लैटलम नहीं बल्कि सिलचर के मार्ग पर जा रहे हैं । स्मित गाँव का रास्ता तो काफी पहले ही छूट चुका है।
स्मित गाँव की ओर जाती सड़क Road to Smit Village |
गाड़ी वापस घुमाई गई। जीपीएस के सहारे हम रुकते रुकते उस मोड़ तक पहुँचे जहाँ स्मित गाँव का रास्ता कटता था। गनीमत थी कि वहाँ उस गाँव के नाम का बोर्ड भी लगा था। स्मित गाँव का रास्ता बेहद मनोरम था। दूर दूर तक हरे भरे पठारी मैदान और उनके बीच उगे इक्का दुक्का पेड़। हल्की पठारी ढलानों पर बिछी दूब की इस चादर को देख थोड़ी देर पहले मन में व्याप्त कड़वाहट जाती रही।
पर हमारी लैटलम की खोज अभी भी ख़त्म नहीं हुई थी। स्मित गाँव किसी भी हिसाब से हमें गाँव जैसा नहीं लगा। लगे भी तो कैसे सारे पक्के मकान और गाँव के केंद्र में इतनी बड़ी गोलाई में फैला विशाल चौराहा जो कि हमारी तरफ़ के छोटे बड़े शहरों को भी मात दे दे। चौराहे पर मुंबई की तरह ही काली पीली फिएट वाली टैक्सियाँ खड़ी थीं। हमें यहीं उतरकर लैटलम का रास्ता पूछना था जो यहाँ से आठ दस किमी की दूरी पर था। हमारे सवाल पूछने पर एक टैक्सी ड्राइवर ने पाँच दस मिनट का सीधा रास्ता बताया और कहा कि दाँयी ओर देखते जाना। उधर ही से लैटलम के लिए एक पतली सड़क मिलेगी।
सब्जियों के लिए मशहूर मेघालय में गोभी के खेत Vegetable fields near Smit, Meghalaya |
गाड़ी में बैठे हमारे समूह के प्रत्येक सदस्य को खिड़की से बाहर देखने का आदेश दे दिया गया कि जहाँ लैटलम का "L'' भी दिखे गाड़ी रुकवा दी जाए। हौले हौले हम उस डगर पर आगे बढ़े पर लैटलम ना मिलना था ना मिला। जब दस मिनट बीत गए तो अचानक मेरी भांजी ने साइनबोर्ड Lait...पढ़ते हुए जोर से चीख मारी कि मिल गया.. मिल गया । आनन फानन में गाड़ी रुकवाई गई पर जब सबने साइनबोर्ड पूरा पढ़ा तो सबका हँसते हँसते बुरा हाल गया । साइनबोर्ड पर वास्तव में लिखा था Laitrine जाने का रास्ता।
ख़ैर तब तक एक टैक्सी हमारे पीछे से आगे निकली। उसे हाथ देकर हमने अपनी व्यथा सुनाई। ड्राइवर ने हमारी परेशानी समझते हुए कहा कि आप हमारी गाड़ी के पीछे पीछे चलिए। एक मोड़ पर आकर हमें दाहिने मुड़ने का इशारा कर वो सीधे चला गया। दाहिने वाले रास्ता तो और भी सुनसान था। लोगों का संयम भी अब खत्म हो रहा था। सवाल उठने लगे कि वास्तव में लैटलम कोई जगह भी है या मनीष हमें यूँ ही कुछ उल्टा सीधा पढ़कर बेवज़ह घुमा रहा है ।
पहाड़ के सिरे पर हम सब At the edge of the plateau |
चलते चलते एक बाँस से बनाए चेकपोस्ट पर एक बूढ़े आदमी ने गाड़ी को रोका। बीस रुपये लिए तो हमें लगा कि अब लगता है कि हम सही जगह पहुँचे हैं। सामने एक खूब चौरस मैदान नज़र आ रहा था। पर लैटलम की घाटी अब भी हमारी नज़रों से दूर थी। लैटलम पहुँचने की अंतिम मुहर तब लगी जब सामने से लंबे लंबे कैमरे के साथ एक भारतीय को अपनी ओर आते देखा। हमारी आँखे मिली और वो हमारा आशय समझते ही बोल पड़ा
Yeah ! Laitlum Valley is on that side.
मैदान पर चहलकदमी करते हुए जब उसके सिरे पर पहुँचे तो नीचे की खड़ी ढाल देखकर आँखें चकरा गयीं। दरअसल खासी भाषा में लैटलम का अर्थ होता है आख़िरी सिरा और सचमुच वहाँ खड़े होकर ऐसा ही लग रहा था मानो पहाड़ एकदम से ख़त्म हो गए हों।
चेरापूंजी के बारे में बात करते वक़्त आपको बताया था कि पूर्वी खासी की पहाडियाँ अपने आस पास की घाटियों से कहीं कहीं 600 - 700 मीटर तक ऊँची हैं और अचानक ही ख़त्म हो जाती हैं यानि इनकी ढाल बिल्कुल खड़ी दिखती है। लैटलम के जिस इलाके हम पहुंचे वो चारों तरफ से समतल दिखाई दे रहा था पर किनारे पहुँचने पर पता चलता था कि एक कदम आगे बढ़ाया तो सीधे मौत के मुँह में होंगे ।
लैटलम घाटी की खड़ी ढाल Steep slopes at Latlum Canyon |
लैटलम की संकरी घाटी के बीचो बीच एक गाँव नज़र आ रहा था। सभ्यता से अलग थलग एक ऐसा गाँव जहाँ तक कोई सड़क नहीं जाती। बाहरी दुनिया से इस तीन सौ की आबादी वाले गाँव का एक ही संपर्क सूत्र है और वो है एक रोप वे। पर इस रोप वे को आप घूमने वाले रोप वे की श्रेणी का मत मान लीजिएगा। गाँव वालों की जीवन रेखा है ये रोप वे। रोज़ जरूरत का सामान इसी रोप वे के माध्यम से नीचे भेजा जाता है। जिस दिन इस रोप वे में तकनीकी खराबी आ जाती है। उस दिन गाँव वालों को ये खड़ी चढ़ाई ख़ुद चढ़नी पड़ती है।
पहाड़ के एक कोने से अपने गाँव को निहारता खासी शिक्षक |
नीचे कुछ दूर जाती हुई सीढ़ियाँ नज़र आ रही थीं। जब मेरे समूह में से कोई भी नीचे जाने को तैयार नहीं हुआ तो मैं अकेला ही रेलिंग के सहारे नीचे उतरने लगा। रेलिंग का सहारा शुरु की सौ सीढ़ियों तक था। उसके बाद सीढ़ियों के नाम पर चपटे पत्थर ही थे। रेलिंग भी हाथ रखते ही हिलने लगती। मैं हर कदम धीरे धीरे बढ़ा रहा था क्यूँकि मैंने चमड़े के जूते पहन रखे थे।
इतने पतले रास्ते पर एक गलत पाँव पड़ने के बाद तो सीधे नीचे की यात्रा निश्चित थी। अचानक ही मेरी बगल से एक अधेड़ व्यक्ति कुलाँचे मारता हुआ मेरे से आगे निकला और पहाड़ के किनारे आगे निकली हुई चट्टान पर अकेला जा कर खड़ा हो गया। मुझे अपने पर हँसी आई कि कहाँ मैं एक एक कदम सँभाल कर रख रहा हूँ और कहाँ ये उछलता कूदता यूँ निकल गया।
गाँव की ओर जाता पैदल रास्ता Way to Rosang Village |
रोसांग गाँव का रहने वाला खासी शिक्षक |
वो बताने लगा कि नीचे उसका गाँव है पर अब उसकी नौकरी स्मित के पास के एक स्कूल में लग गई है जहाँ वो बच्चों को खासी भाषा पढ़ाता है। छुट्टी के दिन वो गाँव के लोगों से मिलने के लिए पैदल ही एकदम नीचे तक उतर जाता है। बाकी दिनों में वो अपने गाँव को देखने के लिए यहाँ जरूर आता है।
लैटलम घाटी और मैं |
उसका सीधा सा जवाब था क्यूँकि हमारे पुरखे यहीं रहते आए हैं। बातों बातों में पता चला कि अधिकांश ग्रामीणों का जीवन खेतीबारी से चलता है। खेती में फल, सब्जियाँ और ब्रूम उगाए जाते हैं। ये वही ब्रूम हैं जो झाड़ू बनाने के काम में आते हैं। जब जरूरत से ज्यादा उपज होती है तो उसे ऊँचाई पर एल्युमिनियम शीट के आवरण में रख दिया जाता है। ये आवरण कोल्ड स्टोरेज का काम करते हैं जिनमें रखी गई वस्तुएँ सर्दी के दिनों में इस्तेमाल कर ली जाती है। गाँव में एक चर्च के अलावा खेलने का मैदान भी है।
बातचीत व फोटो खिंचने खिंचाने के बाद वो व्यक्ति तो चला गया पर मैं और नीचे ना जाकर पत्थर की एक शिला पर बैठ गया। धूप की दिशा की वजह से पहाड़ की ढलान वाली घास और उसके ऊपर का आसमान, धानी और आसमानी का खूबसूरत रंग संयोजन बना रहे थे ।
वहीं घाटी पर सामने से पड़ती धूप उसे गहरे हरे रंग में रंग रही थी। गाँव और घाटी के बीच की ये दुबली पतली नदी ही रोसांग के पानी का एकमात्र स्रोत है।
रोप वे स्टेशन, लैटलम Rope Way station at the top |
घाटी की नीरवता अब मुझमें एक भय सा उत्पन्न कर रही थी। वापस लौटना आसान ना था। अंत में कुछ ज्यादा तेजी से चढ़ने की वजह से साँस और प्यास ने एक साथ धावा बोल दिया । ऊपर पहुँच कर पानी पिया तो जान में जान आई।
लैटलम से लौटते हुए हमें डानबास्को म्यूजियम और फिर यूमियम जाना था । यूमियम झील की सुंदरता का आनंद उठाते हुए हम गुवहाटी तो पहुँचे पर कैसे एक हादसे से बाल बाल बचे ये बतायेंगे आपको मेघालय यात्रा की आखिरी कड़ी में......
लैटलम से लौटते हुए हमें डानबास्को म्यूजियम और फिर यूमियम जाना था । यूमियम झील की सुंदरता का आनंद उठाते हुए हम गुवहाटी तो पहुँचे पर कैसे एक हादसे से बाल बाल बचे ये बतायेंगे आपको मेघालय यात्रा की आखिरी कड़ी में......
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Manish ji,Bahut hi rochak yaatra varnan.bahut sunder jagah batai hai apne aur photo bhi bahut khubasurat hai.iss nyi aur sunder jagah btane ke liye apka bahut dhnyawad.
जवाब देंहटाएंखुशी हुई जानकर प्रतिमा कि आपको ये जगह और मेरा आलेख दोनों पसंद आए। :)
हटाएंAchchi khoj hai sir. Manish jee thanks but tour kitne din ka hai plz details de kabhi mauka laga to jaunga avashay
जवाब देंहटाएंEk din ka agar village tak jayein aur wapas aayein to otherwise half day mein aap Shillong se yahan aa ja sakte hain.
हटाएंShillong Cherrapunji Mawlinnong 4 days minimum.
कुछ भी हो किन्तु हरियाली से लक दक है यहां के पहाड़। बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंहरियाली और मेघालय का चोली दामन का संबंध है। :)
हटाएंवाह मनीष जी ! आखिर आपने लैटलम को खोज ही लिया । बहुत शानदार नज़ारे के साथ यात्रा विवरण भी मजेदार लिखा ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ! जानकर खुशी हुई कि आपको ये आलेख पसंद आया।
हटाएंइतनी सुदूर जगह को नेट पर ढूंढना ही महाभारत है लेकिन आपने तो इसे सचमुच देश दुनियां के सामने ला खडा किया । ट्रैवलर सिर्फ घूमने के लिये ही नहीं होता, उसकी जिममेदारी बन जाती है कि वो नई जगहों से भी देश दुनियां को परिचित कराया । और वो काम आपने बखूबी किया है
जवाब देंहटाएंशुक्रिया :)
हटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंजी नहीं, इस ब्लॉग के किसी भी आलेख को शेयर करने की अनुमति नहीं है।
हटाएंLoved reading it. Could relate to it very much as I traveled to this place a month ago. Beautiful place. Thanks for sharing.
जवाब देंहटाएंSaw your pic in FB at Laitlum. Do tag me when you write about it. Will love to know your experience about this place.
हटाएंitni sunadar or anjani jagah,jabardast hai
जवाब देंहटाएंहाँ रोमांचक यात्रा थी ये..
हटाएंकितने कठिन हालात मे रहते है यहा के लोग!पर प्रकृति के कितना पास!
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही कहा आपने विशाल ! इतनी कठिन परिस्थितियों में भी ये लोग पुरखों की ज़मीन छोड़ना नहीं चाहते, बेहद प्यार हैं उन्हें अपनी मिट्टी से...
हटाएंअहाा आनंद अाा गया लैटलम के बारे में पढ़ कर...बहुत दिनों से इस लेख केे लिंक सामने आते रहे मगर हर बार फुर्सत मेंं पढ़ने या डेस्कटॉप पर पढ़ूंगा सोच कर आगे बढ़ गया. अाज फुर्सत से पढ़ने का अवसर मिला. अपनी शिलांग यात्रा में मैं इस ओर नहीं जा सका...मगर अब एक बार जरूर जाने की इच्छाा है....जब भी शिलांग की अगली यात्रा होगी जरूर कोशिश करूंगा. आपने बहुत खूबसूरती सेे लैटलम पर लिखा हैै.
जवाब देंहटाएंशुक्रिया सौरभ.. लैटलम अपने आप में खूबसूरत है पर इस तक पहुँचने वाला रास्ता इसकी सुंदरता में चार चाँद लगा देता है।
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