राव जैसल द्वारा त्रिकूट पर्वत पर जैसलमेर की नींव रखने के पहले भाटी राजपूतों की राजधानी लौद्रवा थी जो जैसलमेर से सत्रह किमी उत्तरपश्चिम में है। आज तो लौद्रवा की उपस्थिति जैसलमेर से लगे एक गाँव भर की है। ऐसा माना जाता है कि लोदुर्वा का नाम इसे बसाने वाले लोदरा राजपूतों की वजह से पड़ा। दसवीं शताब्दी में ये इलाका भाटी शासकों के अधीन आ गया। ग्यारहवीं शताब्दी में गजनी के आक्रमण ने इस शहर को तहस नहस कर दिया। प्राचीन राजधानी के अवशेष तो कालांतर में रेत में विलीन हो गए पर उस काल में बना जैन मंदिर सत्तर के दशक में अपने जीर्णोद्वार के बाद आज के लोद्रवा की पहचान है।
जैसलमेर में थार मरुस्थल और सोनार किले को देखने के बाद हमारा अगला पड़ाव ये जैन
मंदिर ही थे। दिन के साढ़े नौ बजे जब हम अपने होटल से निकले, नवंबर के
आख़िरी हफ्ते की खुशनुमा धूप गहरे नीले आकाश के सानिध्य में और सुकून
पहुँचा रही थी। जैसलमेर से लोधुर्वा की ओर जाती दुबली पतली सड़क पर अज़ीब सी
शांति थी। बीस मिनट की छोटी सी यात्रा ने हमें मंदिर के प्रांगण में ला कर
खड़ा कर दिया था।
जैसलमेर के स्वर्णिम शहर के नाम को साकार करते हुए ये मंदिर भी सुनहरा रूप लिए हुए हैं। मंदिर के गर्भगृह में जैन तीर्थांकर पार्श्वनाथ की मूर्ति है। इनके आलावा इस जैन मंदिर परिसर के हर कोने में अलग अलग तीर्थांकरों को समर्पित मंदिर हैं।
लोद्रवा के इस मंदिर का एक और आकर्षण है और वो है यहाँ का कल्पवृक्ष जिसे मंदिर के शिखर पर स्थापित किया गया है (नीचे चित्र में देखें)। पुराणों के अनुसार समुद्रमंथन से प्राप्त 14 रत्नों में कल्पवृक्ष भी था। हिंदुओं की ये धारणा है कि कल्पवृक्ष से जिस वस्तु की भी याचना की जाए, वही यह दे देता है। ख़ैर मंदिर में जाते वक़्त मुझे कल्पवृक्ष की इस महिमा का पता नहीं था इसलिए अपनी इच्छित वस्तु प्राप्त करने का ये मौका भी जाता रहा।
कलात्मकता की दृष्टि से इस मंदिर की गणना राजस्थान के सबसे सुंदर मंदिरों में होनी चाहिए। मंदिर में प्रवेश करते ही सबसे पहले नज़र पड़ती है इसके खूबसूरत तोरण द्वार पर। वैसे पूरा तोरण द्वार देखना हो तो यहाँ देखिए।
कलात्मकता की दृष्टि से इस मंदिर की गणना राजस्थान के सबसे सुंदर मंदिरों में होनी चाहिए। मंदिर में प्रवेश करते ही सबसे पहले नज़र पड़ती है इसके खूबसूरत तोरण द्वार पर।
सुनहरे पत्थर पर इन द्वारों और मंदिर की दीवारों पर जो बारीक आकृतियाँ या
नमूने बनाए गए हैं उन्हें देख कर विस्मित हुए बिना नहीं रहा जाता।
ये खूबसूरती सिर्फ ब्राह्य दीवारों पर ही नहीं पर गर्भ गृह की छत पर की गई नक्काशी में भी झलकती है।
यकीन नहीं आता तो इन नमूनों पर गौर फरमाएँ।
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देखकर मुझे दिलवारा के मन्दिर याद आ गये। बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंदिलवाड़ा के मंदिरों की तो बात ही क्या ! कलात्मकता की बेजोड़ मिसाल है वो ! माउंट आबू के यात्रा के अनुभवों को बाँटते वक़्त उसकी चर्चा की थी मैंने
हटाएंपत्थरों पर बहती कविता : दिलवाड़ा (देलवाड़ा) के जैन मंदिर
आपकी नजरों से देखा जाये तो पत्थर भी नक्काशी और खंडहर भी महल लगते हैं... ये तो फिर भी अपने आप में भव्य है. इसे हम तक पंहुचाने के लिए धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंखंडहर को महल बनाता तो मेरी लेखनी के बस की बात नहीं पर वीरान पड़े पत्थरो के एकाकीपन में दबे उसके गौरवशाली अतीत को टटोलने का प्रयास जरूर रहता है मेरा।
हटाएंइस मंदिर की भव्यता ने आपका भी दिल जीता जानकर खुशी हई।
इतने सुन्दर कलाकृतियों को हमारे साथ शेयर करने के लिए धन्यवाद मनीष जी।
जवाब देंहटाएंसुनीता जी आपको भी इस मंदिर की दीवारों पर की गई बेहतरीन नक्काशी ने प्रभावित किया ये जानकर खुशी हुई।
हटाएंआपकी इस प्रस्तुति को आज की बुलेटिन बलिदान दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है।कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार !
हटाएंMandiron ke manmohak chitra evam jaankari dene ke liye koto koti dhanyavad.Musafir hoon yaaron blog ke maadhyam se hum ghoomantu na hone ke baavjood bhi paryaapt jaankari aur yaatra ka aanand le paate hain.Is blog ke liye vishesh badhaai.Dhanyavaad.
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा ये जानकर कि आपको मेरे लिखे यात्रा संस्मरण रुचिकर लगते हैं। इसी तरह साथ बने रहें !
हटाएंमैं गया हूँ यहाँ एक साल पहले .. बहुत ही सुन्दर मंदिर है .. शुक्रिया, यादें ताज़ा कराने के लिए :)
जवाब देंहटाएंबिल्कुल रेगिस्तान की वीरानी के बीच इस खूबसूरत मंदिर को देखकर मन प्रफुल्लित हो जाता है।
हटाएंNice pics Manishji.There used to be very beautiful sculptures inside the temple also but that has been replaced now.Do not forget to see PATWON kee Haleli if still at Jaisalmer.
जवाब देंहटाएंइस जानकारी के लिए धन्यवाद परमेश्वरी जी। जैसलमेर से जुड़ी अगली प्रविष्टियों में बड़ा बाग, पटवों की हवेली और गडीसर झील का विस्तार से जिक्र होगा।
हटाएंअभी कुछ दिन पहले जाकर आया हु भाई बेहद सुंदर मंदिर है और ये पोस्ट भी
जवाब देंहटाएंye lodhi rajputo ki riyasat thi jise bhati rajputo ne dhokhe se jeeta tha.. ye bahut sundar hai ye mere purvjo ne bnaya tha.. tysm aapne ise dikhaya
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