वैसे तो इस ब्लॉग पर आप मेरे साथ देश के अधिकांश राज्यों का भ्रमण कर चुके हैं । पर जैसा कि हम सभी के साथ होता है कि जहाँ हम रहते हैं उसके आस पास के इलाके अछूते रह जाते हैं। अब देखिए ना राँची में रहते हुए यूँ तो यहाँ के सारे रमणीक स्थानों को देख चुका हूँ पर आपको कभी अपने साथ नहीं ले गया। राँची से तीस चालिस किमी की परिधि में कई झरने हैं। इनमें दशम जलप्रपात सबसे सुंदर है पर खतरनाक भी। हुंडरू और जोन्हा के झरने भी देखने लायक हैं पर हुंडरू के पास पनबिजली के उत्पादन के बाद से पानी का प्रवाह वैसा नहीं रहा। पर आज मैं आपको किसी निर्झर के दर्शन नहीं करा रहा पर ले चल रहा हूँ पिठौरिया पतरातू घाटी के रास्ते से होते हुए पतरातू बाँध (Patratu Dam) के सुंदर जलाशय में।
पतरातू शहर मुख्यतः अपने ताप विद्युत संयंत्र के लिए जाना जाता रहा है पर जबसे पिठौरिया पतरातू घाटी की नई खूबसूरत सड़क बनी है पतरातू बाँध तक जाने का आनंद पहले से काफी अधिक हो गया है। राँची शहर से पतरातू बाँध की दूरी मात्र 35 किमी है यानि एक घंटे में आराम से आप वहाँ राँची से चल कर पहुँच सकते हैं। तो जाड़े की ऐसी ही एक सुबह अपने कार्यालय के साथियों के साथ मैं पतरातू की ओर निकल पड़ा। राँची में जाड़े की सुबह और रातें भले ठिठुराने वाली होती हों पर इस मौसम में दिन की छटा ही निराली होती है। स्वच्छ गहरा नीला आकाश सूरज की नर्म धूप के साथ अक्सर बाँहें फैलाए हर दिन हमें घर के बाहर निकलने का आमंत्रण देता है। एक बार आप शहर की सीमा से बाहर निकलते हैं और अगल बगल की हरी भरी छटा से झारखंड (झार जंगल खंड हिस्सा) नाम सार्थक हो जाता है
पौन घंटे सीधे सपाट रास्ते पर चलने के बाद घाटी का घुमावदार रास्ता शुरु होता है। सर्प के समान घूमते इन मोड़ों से जब आप घाटी के शिखर पर पहुँचते हैं तो बड़ा ही मनमोहक नज़ारा आपके सामने होता है। सखुआ और साल के जंगलों को समेटे इस घाटी के ठीक पीछे पतरातू जलाशय की नीली जलराशि दिखाई देती है।
ढलान से जलाशय तक पहुँचने में दस पन्द्रह मिनट और लगते हैं।
जलाशय के पास ही हमारी नज़र अनायास ही लाल फूलों से लदे इस वृक्ष की ओर पड़ी और इन्हें करीब से देख के दिल बाग बाग हो गया।
क्यूँ आप इनकी लाली में खुद को खोता नहीं पा रहे ?
कई किमी तक फैले इस डैम के अंदर मल्लाह लकड़ी की नौका लेकर अपनी पतवारें चलाने के लिए तैयार बैठे थे। बीस पच्चीस रुपये प्रति व्यक्ति के हिसाब से आधे घंटे का नौका विहार को कौन छोड़ सकता था ?
पतरातू डैम में नौका विहार, चित्र साभार आनंद त्रिवेदी |
दूर दूर तक जिधर नज़र जा रही थी पानी की गहरी नीली जलधारा दिखाई दे रही थी। जलाशय के पार्श्व से एक दूसरे से सटी कई छोटी पहाड़ियाँ हमें टुकुर टुकुर ताक रही थीं। बाँध के दरवाजे की तरफ कुछ दूरी पर पॉवर प्लांट की चार चिमनियाँ सीना ताने खड़ी थीं। बाँध का चक्कर लगाने के बाद हम जलाशय के दूसरे सिरे की तरफ बढ़ गए।
जलाशय के भीतर थोड़ी थोड़ी दूरी पर कंक्रीट के खंभे बनाए गए थे जो एक गोल चबूतरे तक जा रहे थे। शायद भविष्य में इसके ऊपर पतला सा रास्ता बनाने की सोच हो। बहरहाल घुमक्कड़ों के बजाए उस गोल चबूतरे का आनंद पक्षियों का ये झुंड उठा रहा था।
कैमरे के ज़ूम का प्रयोग कर जब मैंने पक्षियों के क्रियाकलाप का जायज़ा लेना चाहा तो ये तसवीर सामने आई। ये जनाब तो हमारे कैमरे के क्लिक के साथ ही उड़ने को आतुर हो उठे...
तो जब भी राँची आइए पतरातू को भी अपनी घुमक्कड़ी का हिस्सा बनाइए। और चलते चलते एक वैधानिक चेतावनी पिकनिक यानि दिसंबर जनवरी के महिनों में सप्ताहांत में यहाँ जाना उचित नहीं है। क्यूँकि नए साल की खुशियाँ मनाने वालों की भीड़ और शोर गुल आपको प्रकृति को शांत और सुकूनदेह वातावरण में महसूस कर पाने से वंचित कर देगी..आप फेसबुक पर भी इस ब्लॉग के यात्रा पृष्ठ (Facebook Travel Page) पर इस मुसाफ़िर के साथ सफ़र का आनंद उठा सकते हैं।
सेमल के फ़ूल तो बसंत के बाद गर्मियों में फ़ूलते है। लगता है वह चित्र पुराना है या यात्रा तभी की है। :)
जवाब देंहटाएंआपकी बात आंशिक रूप से सही है। यानि यात्रा और चित्र पिछले साल फरवरी के हैं। पर फरवरी के मौसम में यहाँ हल्का जाड़ा पड़ता है और तभी यहाँ पिकनिक का मौसम भी होता है।
हटाएंवाह, रमणीक स्थल..
जवाब देंहटाएंजलाशय के आस पास का इलाका आपको सुंदर लगा जान कर खुशी हुई।
हटाएंकुछ दिनों पहले मैं भी इधर गया था.. काफी शांत और सुकून भरी जगह है..
जवाब देंहटाएंजब से ये सड़क बनी है काफी लोग यहाँ जाने लगे हैं । वैसे कल का क्रिकेट मैच देखने जा रहे हो क्या :)
हटाएंबहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंज्यादा प्रचलित जगहों से ज्यादा शांत और मनोरम ऐसे वर्जिन स्पॉट्स हुआ करते हैं...
अनु
सही कह रही हैं अनु जी ! एक बार जगह ज्यादा मशहूर हो जाती है तो फिर भीड़ , गंदगी और शोर शराबे के भीतर वहाँ की प्राकृतिक सुंदरता छुप सी जाती है।
हटाएंBahut Khoob..... Ek naye sthal parichay pakar accha laga......
जवाब देंहटाएंबहुत शांत जगह दिखाई पड़ती है, आपकी तस्वीरों द्वारा नौका विहार का आनंद लेकर मज़ा आ गया। अनेक आभार।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंmanish,man prasanna ho gaya aapka blog parh kar,kabhi hamare faizabad aayein,aapki nazro se b hum ise dekhein......,hain ye phool palash ke hai na.......
जवाब देंहटाएंअपर्णा बचपन में एक बार फ़ैज़ाबाद गया था। कुछ धु्धली यादें बची हैं। इतना याद है कि आस पास के खेत खलिहानों में मोर बहुतेरे थे तो हमने अपने खेल कूद का समय मोरपंख बटोरने में बिताया था। वैसे क्या है देखने लायक अबके फ़ैज़ाबाद में...?
जवाब देंहटाएंसेमल के फुल या टेसू के फुल ..में इन्हें टेसू के फुल समझती हु जो फरवरी महीने से ही खिलना शुरू करते है ...मजेदार यात्रा
जवाब देंहटाएंदर्शन जी संभवतः आप सही कह रही हैं। आपकी टिप्पणी के बाद नेट पर टेसू के फूल की तसवीरें चित्र से मिलती जुलती दिखीं और जैसा आपने कहा कि ये फरवरी में खिलना भी शुरु कर देते हैं।
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